राजस्थान
के भौतिक विभाग या भू-आकृतिक प्रदेश
rajasthan ke bhotik pradesh, राजस्थान के भौतिक विभाग या भू-आकृतिक प्रदेश |
राजस्थान विश्व के
प्राचीनतम भू-खंडों का अवशेष है।
प्राक्- ऐतिहासिक काल या इयोसीन
काल व प्लीस्टोसीन काल में विश्व दो भूखंडों
में विभक्त था-
(i) अंगारालैण्ड व (ii) गौंडवाना लैण्ड,
जिनके मध्य टेथिस सागर
विस्तृत था। (इयोसिनकाल व प्लीस्टोसीन काल
के प्रारंभ तक)
टेथिस महासागर के अवशेष
माने जाते हैं - उत्तरी पश्चिमी मरू प्रदेश व पूर्वी मैदान
गौंडवाना लैण्ड के हिस्से
हैं - अरावली व दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग।
राजस्थान को जलवायु व
धरातल के अंतरों के आधार पर मुख्यत चार
भौतिक विभागों में बाँटा जा सकता है :
(1) उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश (पढने के लिए यहाँ क्लिक करें )
उत्तर-पश्चिमी
मरुस्थलीय भाग
उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय
भाग में कुल 12 जिले आते हैं
जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर,गंगानगर,हनुमानगढ़ नागौर, जालौर,चुरू, सीकर,झंझनँ तथा पाली
जिले का कुछ भाग
राज्य के कुल क्षेत्रफल
का लगभग 61% भाग
उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय भाग में आता है
यह प्रदेश उत्तर-पश्चिम
से दक्षिण-पूर्व में 640 किमी. लम्बा एवं
पूर्व से पश्चिम में 300 किमी. चौड़ा है।
राज्य की कुल जनसंख्या का
लगभग - 40% भाग इसमें निवास करता है
वर्षा : 20 सेमी से 50 सेमी
न्यून वर्षा के कारण इसे
शुष्क बालू का मैदान भी कहते हैं।
तापमान : गर्मियों में
उच्चतम 49° से.ग्रे. तक तथा
सर्दियों में -3° से.ग्रे. तक।
जलवायु : शुष्क व अत्यधिक
विषम।
मिट्टी : रेतीली बलुई।
यह भू-भाग अरावली
पर्वतमाला के उत्तर-पश्चिम एवं पश्चिम में विस्तृत है।
अरावली का वृष्टि छाया
प्रदेश होने के कारण दक्षिणी-पश्चिमी मानसून या अरब सागर व बंगाल की खाड़ी का
मानसून सामान्यतः यहाँ वर्षा बहुत कम करता है।
वर्षा का वार्षिक औसत 20-50 सेमी. है।
यह मरुस्थल ग्रेट
पेलियोआर्कटिक अफ्रीका मरुस्थल का ही एक भाग है जो पश्चिमी एशिया के फिलीस्तीन, अरब एवं ईरान
होता हुआ भारत तक विस्तृत हो गया है।
प्रदेश का
सामान्य ढाल पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर है या उत्तर-पूर्व से
दक्षिण पश्चिम की ओर
इसकी समुद्र तल से
सामान्य ऊँचाई 200 से 300 मीटर है।
रेत के विशाल बालुका
स्तूप इस भू-भाग की प्रमुख विशेषता है।
इस प्रदेश में लिग्राइट, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस व
लाइम स्टोन के विशाल भण्डार मौजूद हैं।
यह टेथिस सागर का अवशेष।
प्रमुख नमक स्त्रोत हैं -
पचपदरा, डीडवाना व
लूणकरणसर।
यह क्षेत्र दो भागों में
बाँटा जा सकता है। 25 सेमी सम वर्षा
रेखा इन दोनों क्षेत्रों को अलग करती है
पश्चिमी विशाल मरुस्थल या
रेतीला शुष्क मैदान (Great
Indian Desert)
(ब) राजस्थान बांगर (बांगड़) या अर्द्धशुष्क मैदान
(अ)पश्चिमी
विशाल मरुस्थल या रेतीला शुष्क मैदान
(Great Indian Desert)
इसमें वर्षा का वार्षिक
औसत 20 सेमी तक रहता
है।
शुष्क बालूका मैदान भी
कहते हैं।
शुष्क बालूका मैदान कहते
हैं - बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, गंगानगर आदि को,
क्योंकि इस क्षेत्र में वर्षा अत्यधिक कम होती है व इसका अधिकांश भाग बालुका
स्तूपों से आच्छादित है।
यह बालुका स्तूपों से ढका
भू-भाग पाकिस्तान की सीमा के सहारे-सहारे गुजरात से पंजाब तक विस्तृत है।
पश्चिमी रेतीले शुष्क
मैदान के दो उपविभाग हैं
बालुकास्तूप युक्त
मरुस्थलीय प्रदेश।
बालुकास्तूप मुक्त (
रहित) क्षेत्र।
बालुकास्तूप
युक्त क्षेत्र में बालू रेत के विशाल टीले पाये जाते हैं जो तेज हवाओं के साथ अपना
स्थान बदलते रहते हैं। ये बालुकास्तूप वायू अपरदन एवं निक्षेपण का परिणाम हैं।
इनका स्थानान्तरण मार्च
से जुलाई माह के मध्य में सर्वाधिक होता है।
इस रेतीले शुष्क मैदान के
बालुकास्तूप युक्त क्षेत्र में निम्न प्रकार के बालूका स्तूपों का बाहुल्य पाया
जाता है
पवनानुवर्ती
(रेखीय) बालुकास्तूप-
ये बालुका स्तूप इस
रेगिस्तानी भू-भाग के पश्चिम तथा दक्षिण भाग में मुख्यत: जैसलमेर, जोधपुर एवं
बाड़मेर में पाये जाते हैं।
इन पर वनस्पति पाई जाती
है।
इन स्तूपों में लम्बी
धुरी वायु की दिशा के समनान्तर होती है।
बरखान या
अर्द्धचन्द्राकार बालुकास्तूप-
चुरू, जैसलमेर, सीकर, लूणकरणसर, सूरतगढ़, बाड़मेर, जोधपुर आदि में।
ये गतिशील, रंध्रयुक्त व
नवीन बालुयूक्त होते हैं,
जो शृंखलाबद्ध
रूप में पाये जाते हैं।
मरु भूमि के उत्तरी भाग
में इनकी बहुलता है।
अनुप्रस्थ
बालुकास्तूप-
बीकानेर, दक्षिण गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू, सूरतगढ़, झुंझुनूं आदि
क्षेत्रों में।
ये बालुकास्तूप पवन की
दिशा के समकोण पर बनते हैं।
ये स्तूप अर्द्ध शुष्क
भागों में अधिक स्थिर रहते हैं तथा मरु भूमि के पूर्वी एवं उत्तरी भागों में अधिक
पाये जाते हैं।
पेराबोलिक
बालुकास्तूप-
ये सभी मरुस्थली जिलों
में विद्यमान हैं।
इनका निर्माण वनस्पति एवं
समतल मैदानी भाग के बीच उत्पाटन (deflation) से होता एवं आकृति महिलाओं के हेयरपिन की तरह
होती है।
ताराबालुका
स्तूप-
मोहनगढ़, पोकरण (जैसलमेर), सूरतगढ़
(गंगानगर)।
इन बालुकास्तूपों का
निर्माण मुख्य रूप से अनियतवादी एवं संश्लिष्ट पवनों के क्षेत्र में ही होता है।
नेटवर्क
बालुकास्तूप-
ये उत्तरी-पूर्वी
मरुस्थलीय भाग- हनुमानगढ़ से हिसार-भिवानी (हरियाणा) तक मिलते हैं।
रेतीले शुष्क मैदान के
पूर्वी भाग में बालुकास्तूप मुक्त प्रदेश भी है जिसमें बालुकास्तपों का अभाव है।
इस क्षेत्र को
जैसलमेर-बाड़मेर का चट्टानी प्रदेश भी कहते हैं।
इस क्षेत्र में जरैसिक
काल एवं टरशियरी व प्लीस्टोसीन काल की परतदार चट्टानों (अवसादी चट्टानों) का
बाहुल्य है।
इयोसीन काल एवं
प्लीस्टोसीन युग में इस क्षेत्र में एक विशाल समुद्र (टेथीस सागर) था, जिसके अवशेष यहाँ
पाये जाने वाले चट्टानी समहों में मिलते हैं।
इनमें चूना पत्थर एवं
बलुआ पत्थर की चट्टानें मुख्य हैं।
जैसलमेर शहर जुरैसिक काल
की बलुआ पत्थर से निर्मितत चट्टानी मैदान पर स्थित है। इन चट्टानों में वनस्पति
अवशेष एवं जीवाष्म (Fossis)
पाये जाते हैं।
जैसलमेर के राष्ट्रीय
मरुउद्यान में स्थित आकल वुड फोसिल पार्क इसका (जीवाश्मों का) अनूठा उदाहरण है।
इस प्रदेश की अवसादी
शैलों में भूमिगत जल का भारी भण्डार है।
लाठी सीरीज क्षेत्र इसी
भूगर्भीय जल पट्टी का अच्छा उदाहरण है। इन्हीं टीयरीकालीन चट्टानों में प्राकृतिक
गैस एवं खनिज तेल के भी व्यापक भण्डार मौजूद हैं।
बाड़मेर (गुड़ामालानी, बायतु आदि) एवं
जैसलमेर क्षेत्र में तेल एवं गैस के व्यापक भण्डारों के मिलने का कारण वहाँ
टर्शियरी काल की चट्टानों का होना माना जाता है।
बेसर श्रेणी, जैसलमेर श्रेणी व
लाठी श्रेणी में मध्यजीवी महाकल्प के जुरासिक कल्प की चट्टाने हैं
(ब) राजस्थान बांगर (बांगड़) या
अर्द्धशुष्क मैदान
राजस्थान बांगर (बांगड़)
या अर्द्धशुष्क मैदान- अर्द्धशुष्क मैदान महान् शुष्क रेतीले प्रदेश के पूर्व में
व अरावली पहाड़ियों के पश्चिम में लूनी नदी के जल प्रवाह क्षेत्र में अवस्थित है। यह आन्तरिक प्रवाह
क्षेत्र है।
इसके उत्तर में - घग्घर
का मैदान है
उत्तर पूर्व में - शेखावाटी का आन्तरिक जल प्रवाह क्षेत्र है
दक्षिण-पूर्व में - लूनी
नदी बेसिन है
मध्यवर्ती भाग में -
नागौरी उच्च भूमि है।
यह संपूर्ण क्षेत्र शुष्क
एवं अर्द्धशुष्क जलवायु के मध्य का संक्रमणीय या परिवर्ती (Transitional) जलवायु वाला
क्षेत्र है।
इस सम्पूर्ण प्रदेश को
निम्न चार भागों में विभाजित करते हैं -
घग्घर का मैदान
लूनी बेसिन या गौड़वाड़
क्षेत्र
नागौरी उच्च भूमि प्रदेश
शेखावाटी आंतरिक प्रवाह क्षेत्र
घग्घर
का मैदान
अर्द्धशुष्क प्रदेश के
उत्तरी भाग में स्थित इस मैदानी भाग का निर्माण मुख्यतः घग्घर वैदिक सरस्वती, सतलज एवं चौतांग
नदियों की जलोढ़ मिट्टी से हुआ है।
यह मुख्यतः हनुमानगढ़ एंव गंगानगर जिलों में विस्तृत है।
इस क्षेत्र में वर्तमान में घग्घर नदी प्रवाहित होती है, जो मृत नदी (Dead River) के नाम से भी जानी जाती है। वर्षा ऋतु में इसमें कई बार बाढ़ आ जाती है, जो हनुमानगढ़ जिले को जलमग्न कर देती है। यह नदी भटनेर के पास रेगिस्तान में लगभग विलुप्त हो जाती है।
यह मुख्यतः हनुमानगढ़ एंव गंगानगर जिलों में विस्तृत है।
इस क्षेत्र में वर्तमान में घग्घर नदी प्रवाहित होती है, जो मृत नदी (Dead River) के नाम से भी जानी जाती है। वर्षा ऋतु में इसमें कई बार बाढ़ आ जाती है, जो हनुमानगढ़ जिले को जलमग्न कर देती है। यह नदी भटनेर के पास रेगिस्तान में लगभग विलुप्त हो जाती है।
लूनी
बेसिन या गौड़वाड़ क्षेत्रः
लूनी एवं उसकी सहायक
नदियों के इस अपवाह क्षेत्र को गौड़वाड़ प्रदेश कहते हैं।
इसमें जोधपुर, जालौर, पाली एवं सिरोही
के क्षेत्र शामिल हैं।
इस क्षेत्र में
जालौर-सिवाना की पहाड़ियाँ स्थित हैं जो ग्रेनाइट के लिए प्रसिद्ध हैं।
इसके अलावा मालाणी
पहाड़ियाँ एवं चूने के पत्थर की चट्टानें भी इस क्षेत्र में पाई जाती हैं । इस
प्रदेश में बालोतरा के बाद लूनी नदी का पानी नमकयुक्त चट्टानों, नमक के कणों एवं
मरुस्थली प्रदेश के अपवाह तंत्र के कारण खारा हो जाता है।
इस क्षेत्र में जसवंतसागर (पिचियाक बाँध), सरदारसमन्द, हेमावास बाँध एवं
नयागाँव आदि बाँध हैं|
नागौरी
उच्च भूमि प्रदेशः
राजस्थान बांगड़ प्रदेश
के मध्यवर्ती भाग को नागौर उच्च भूमि कहते हैं ।
इस क्षेत्र में नमकयुक्त
झीलें, अन्तर्प्रवाह
जलक्रम, प्राचीन चट्टानें
एवं ऊँचानीचा धरातल मौजूद है।
इस क्षेत्र में डीडवाना, कुचामन, सांभर, नावां आदि खारे
पानी की झीलें हैं जहाँ नमक उत्पादित होता है।
इस प्रदेश में गहराई में
माइकाशिष्ट नमकीन चट्टानें हैं, जिनसे केशिकात्व के कारण नमक सतह पर आता रहता है। साथ ही
नदियों द्वारा पानी के साथ नमक के कण बहाकर लाने आदि के कारण इनमें वर्ष-प्रतिवर्ष
नमक उत्पादित होता रहता है।
शेखावाटी
आंतरिक प्रवाह क्षेत्रः
बांगड़ प्रदेश के इस
भू-भाग में चुरू, सीकर, झुंझुनूं व नागौर
का कुछ भाग आता है।
इसके उत्तर में घग्घर का
मैदान तथा पूर्व में अरावली पर्वत श्रृंखला है तथा पश्चिम में 25 सेमी सम वर्षा
रेखा है।
इस प्रदेश में बरखान
प्रकार के बालुकास्तूपों का बाहुल्य है।
इस प्रदेश की सभी नदियाँ
काँतली, मेंथा, रूपनगढ़, खारी आदि आंतरिक जल प्रवाह की नदियाँ हैं, जो वर्षा ऋतु में
इस भाग में बहकर या तो किसी झील में मिल जाती है या मैदानी भाग में विलुप्त हो
जाती हैं।
25 सेमी. की सम वर्षा
रेखा इस प्रदेश को महान शुष्क मरुस्थल से अलग करती है।
मुख्य फसलें : बाजरा, मोठ व ग्वार
वनस्पति : बबूल, फोग, खेजड़ा, कैर, बेर व सेवण घास
आदि।
इंदिरा गाँधी नहर : इस
क्षेत्र की मुख्य नहर व जीवन रेखा। नहर आने के बाद इस क्षेत्र में अन्य फसलें भी
होने लगी हैं।
उपयोगी जानकारी -
थार मरुस्थल थली या शुष्क
बालू का मैदान के नाम से भी जाना जाता है जो 'ग्रेट
पेलियो आर्कटिक अफ्रीकी मरुस्थल' का पूर्वी भाग है।
संपूर्ण थार मरुस्थल का
लगभग 62 प्रतिशत क्षेत्र अकेले राजस्थान में है।
इसे महान् भारतीय मरुस्थल
(Great Indian Desert) या थार का मरुस्थल (Thar
Desert)| भी कहते है।
यह मरुस्थल विश्व का
सर्वाधिक आबादी वाला मरुस्थल है। यही नहीं सबसे अधिक जैव विविधता भी इसी में पाई
जाती है।
यह वनस्पति एवं पशु
सम्पदा की दृष्टि से भी विश्व के मरुस्थलों में सर्वोत्कृष्ट है।
यहाँ का जनसंख्या घनत्व
भी सभी मरुस्थलों में सर्वाधिक है।
इस सम्पूर्ण मरुस्थल में
बालुका-स्तूपों के बीच में कहीं-कहीं निम्न भूमि मिलती है जिसमें वर्षा का जल भर
जाने से अस्थायी झीलों व दलदली भूमि का निर्माण होता है जिसे 'रन'(Rann) कहते हैं।
प्रमुख रन हैं - कनोड़, बरमसर, भाकरी, पोकरण (जैसलमेर), बाप (जोधपुर) तथा
थोब (बाड़मेर)
50 सेमी सम वर्षा रेखा
इसे राज्य के अन्य भागों से अलग करती है।
इस भू-भाग की पश्चिमी
सीमा 'रेडक्लिफ रेखा' है।
इस प्रदेश की प्रमुख नदी
लूनी है, जो नागपहाड़ (अजमेर) से निकलकर नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर व जालौर
में बहकर कच्छ के रन (गुजरात) में विलुप्त हो जाती है।
पश्चिमी शुष्क मरुस्थल का
लगभग 60 प्रतिशत भाग बालुकास्तूपों से आच्छादित है। इन बालुकास्तूपों का अपरदन एवं
स्थानांतरण मार्च से जुलाई तक अत्यधिक होता है।
शुष्क प्रदेश के उत्तर
में पंजाब, उत्तर-पूर्व में हरियाणा, पश्चिम में
पाकिस्तान तथा दक्षिण में गुजरात है।
इस प्रदेश में कहीं-कहीं
चट्टानी सतह व पहाड़ियाँ पाई जाती हैं जैसे- नागौर, बाड़मेर, जालौर, कुचामन, सीकर की
पहाड़ियाँ।
थार मरुस्थल विश्व का
एकमात्र ऐसा मरुस्थल है जिसके निर्माण में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं का मुख्य
योगदान है।
थार का मरुस्थल भारतीय
उपमहाद्वीप में ऋतु चक्र को भी नियंत्रित करता है।
ग्रीष्मकाल में तेज गर्मी
के कारण इस प्रदेश में न्यून वायुदाब केन्द्र विकसित हो जाता है जो
दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाओं को आकर्षित करता है। ये हवाएँ सम्पूर्ण प्रायद्वीप
में वर्षा करती हैं।
यह मरुस्थल विश्व के
मरुस्थलों में सर्वाधिक आबादी, जनसंख्या घनत्व, सर्वाधिक
वनस्पतियुक्त पारिस्थितिकी तथा पशुधन की अधिकता के लिए विख्यात है।
मध्यवर्ती
अरावली पर्वतीय प्रदेश
मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय
प्रदेश में कुल जिले आते हैं - 13
उदयपुर,चित्तौड़गढ़, राजसमंद, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, सीकर, झुंझुनूं, अजमेर,सिरोही, अलवर, तथा पाली व जयपुर
के कुछ भाग
विश्व की प्राचीनतम पर्वत
श्रेणियों में से एक है
अरावली पर्वतमाला
राजस्थान के भू-भाग को दो असमान भागों में विभक्त करती है
माना जाता है कि प्राचीन
काल में अपने उद्भव के प्रारंभ में ये पर्वत श्रेणियाँ काफी ऊँची (वर्तमान हिमालय
से भी अधिक) थी परन्तु धीरे-धीरे अनाच्छादन के परिणामस्वरूप बहुत नीची हो गई हैं।
इन पर्वतों में ग्रेनाइट
चट्टानें भी मिलती है जो सेंदड़ा (ब्यावर) के पास अधिक फैली हुई है।
इन पर्वत श्रेणियों में
प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुकी गहरी घाटियाँ हैं।
दिल्ली के कुछ कह
सुपरग्रुप की चट्टानों में क्वार्टजाइट चट्टानों की बहुलता है।
इसमें अरावली सुपर ग्रुप
कीचट्टानों में नीस, शिष्ट व ग्रेनाइट
चट्टाने अत्यधिक हैं।
राज्य के सम्पूर्ण भू-भाग
का 9% भाग इसके अंतर्गत आता है
राज्य की कुल जनसंख्या का
लगभग 10% यहाँ निवास करता है
वर्षा: 50 सेमी से 90 सेमी होती है।
अरावली पर्वत राज्य में
एक वर्षा (जल) विभाजक रेखा का कार्य करती हैं।
राज्य का सर्वाधिक वर्षा
वाला स्थान है - माउन्ट आबू (लगभग 150 सेमी)
जलवायु : उपआर्द्र जलवायु
मिट्टी : काली, भूरी लाल व
कंकरीली मिट्टी।
अरावली पर्वतमाला का
विस्तार कर्णवत्त रूप में दक्षिण-पश्चिम में गुजरात में खेड़ ब्रह्म, पालनपुर से लेकर
उत्तर-पूर्व में झुंझुनूं खेतड़ी सिंघाना तक श्रृंखलाबद्ध रूप में है, उसके बाद
छोटे-छोटे हिस्सों में दिल्ली तक या रायसीना पहाड़ी तक फैली हुई हैं।
इन श्रृंखलाओं की चौड़ाई
व ऊँचाई दक्षिण-पश्चिम में अधिक है जो धीरे-धीरे उत्तर-पूर्व में कम होती चली जाती
है।
अरावली पर्वत श्रृंखला
गौंडवाना लैंड का अवशेष है।
इनकी उत्पत्ति भूगर्भिक
इतिहास के प्री. केम्ब्रियन कल्प (प्राचीन कल्प) में हुई थी।
अरावली पर्वत प्रारंभ में
बहुत ऊँचे थे परंतु अनाच्छादन के कारण ये आज अवशिष्ट पर्वतों (Residual Mountains) के रूप हैं।
ये अमेरिका के अप्लेशियन
पर्वतों के समान हैं।
अरावली पर्वत श्रेणियों
के बीच-बीच में चारों ओर पहाड़ों से घिरे हुए बेसिन यथा अलवर बेसिन, बैराठ बेसिन, सरिस्का बेसिन, जयपुर बेसिन, पुष्कर बेसिन, उदयपुर बेसिन, राजसमंद बेसिन, ब्यावर बेसिन, अजमेर बेसिन आदि
पाये जाते हैं।
इस क्षेत्र में कई
महत्त्वपूर्ण खनिज बहुतायत से मिलते हैं, जैसे, ताँबा, सीसा, जस्ता, अभ्रक, चाँदी, लोहा, मैंगनीज, पेल्सपार, ग्रेनाइट, मार्बल, चूना पत्थर, पन्ना आदि।
मुख्य नाल व दर्रा -
देसूरी नाल व हाथी दर्रा,
केवड़ा की नाल
(उदयपुर),जीलवाड़ा नाल, सोमेश्वर नाल
आदि।
इस क्षेत्र के पहाड़ी
भागों में भील, मीणा, गरासिया, डामोर आदि
आदिवासी जनजातियाँ रहती हैं।
राज्य की सर्वाधिक ऊँची
पर्वत चोटी 'गुरु शिखर' (1722 मी.) इसी
क्षेत्र (सिरोही) में है। अरावली पर्वत श्रृंखला की कुल लम्बाई 692 किमी है जिसमें
से 550 किमी (80%)लम्बी राजस्थान
में है।
अरावली के ढालों पर मक्का
की खेती विशेषतः की जाती है।
अरावली पर्वत विश्व के
प्राचीनतम वलित पर्वत (Folded
Mountains) हैं।
अरावली पर्वत श्रेणी
राजस्थान की जलवायु को अत्यधिक प्रभावित करती है।
यह उत्तर पश्चिम में
सिन्धु बेसिन और पूर्व में गंगा बेसिन के मध्य महान् जल विभाजक रेखा (क्रेस्ट
लाइन) का कार्य करती है।
इसके पूर्व में गिरने
वाला पानी नदियों द्वारा बंगाल की खाड़ी में तथा पश्चिम में गिरने वाला पानी अरब
सागर में ले जाया जाता है। अरावली पर्वतीय प्रदेश की समुद्र तल से औसत ऊँचाई 930 मीटर
है।
अरावली की मुख्य श्रेणी
क्वार्टजाइट चट्टानों की बनी है।
भूगर्भिक संरचना की
दृष्टि से अरावली पर्वत श्रेणियाँ प्री-- कैम्ब्रिज चट्टानी समूह से सम्बन्धित है।
इन्हें दिल्ली सुपर ग्रुप
एवं अरावली सुपर ग्रुप की चट्टानों के वर्ग में रखा गया है।
ऊँचाई के आधार पर इस
संपूर्ण प्रदेश को निम्न चार भागों में विभाजित किया जाता है। ।1.उत्तर पूर्वी पहाड़ी
प्रदेश
2.मध्यवर्ती अरावली
श्रेणी
3. मेवाड़ का चट्टानी
प्रदेश एवं भोरठ का पठारी क्षेत्र
4. आबू पर्वत खण्ड
उत्तर
पूर्वी पहाड़ी प्रदेश
अरावली पर्वतीय क्षेत्र
का यह भाग जयपुर की सांभर झील के उत्तर-पूर्व में राजस्थान-हरियाणा सीमा तक फैला
हुआ है।
इसमें शामिल की जाती हैं –
जयपुर जिले के उत्तर-पूर्व में स्थित शेखावाटी एवं तोरावाटी क्षेत्र की पहाड़ियाँ, जयपुर एवं अलवर
की पहाड़ियाँ
इस भाग की समस्त पहाड़ियाँ
अपरदित हैं जो क्वार्टजाइट व फाईलाइट शैलों से निर्मित्त हैं।
अरावली पर्वतीय प्रदेश के
इस भाग की औसत ऊँचाई 450 मीटर है जो कुछ स्थानों पर 750 मीटर से भी अधिक तक पहुँच
गई है।
इस भाग की प्रमुख पर्वत
चोटियाँ हैं -
रघुनाथगढ़ चोटी, सीकर (1055 मी.)
खौ चोटी, जयपुर (920 मी.)
बाबाई चोटी, जयपुर (780 मी.)
भैराच चोटी (अलवर, 792 मी.)
बैराठ चोटी, अलवर (704 मी.)
मध्यवर्ती
अरावली श्रेणी :
इस क्षेत्र के दो भाग हैं
–
शेखावाटी या सीकर-झुंझुनूं
की पहाड़ियाँ व
मेरवाड़ा या अजमेर, जयपुर एवं
पश्चिमी टोंक जिले की पहाड़ियाँ
मेरवाड़ा की पहाड़ियों
में प्रमुख चोटियाँ है -
अजमेर स्थित तारागढ़ (872
मी.)
नाग पहाड़ (795 मी.)
मध्यवर्ती अरावली प्रदेश
की औसत ऊँचाई 550 मी. है।
मेवाड़
का चट्टानी प्रदेश एवं भोरठ का पठारी क्षेत्र
इस भू-भाग में उदयपुर, डूंगरपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़ एवं
प्रतापगढ़ तथा सिरोही के पूर्वी भाग की पहाड़ियाँ सम्मिलित की जाती हैं।
आबू पर्वत खण्ड के अलावा
अरावली पर्वत श्रेणी का उच्चतम भाग है -
भोरठ का पठार
भोरठ का पठार स्थित है -
कुंभलगढ़ व गोगून्दा के बीच (उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में) जिसकी औसत ऊँचाई 1225
मीटर है।
राज्य की तीसरी सर्वोच्च
चोटी जरगा (1431 मी.)
भोरठ के पठार का स्वरूप
संश्लिष्ठ गाँठ के रूप में है।
लासड़िया का पठार है - जयसमंद
झील के पूर्व में
इस क्षेत्र की अन्य
चोटियाँ हैं -
गोगून्दा चोटी (840 मी.)
सायरा चोटी (900 मी.)
कोटड़ा चोटी (450 मी.)
आदि ।
इसी क्षेत्र से भारत की
महान् जल विभाजक रेखा उदयपुर से मुड़कर दक्षिण-पश्चिम की ओर चली जाती है।
आबू
पर्वत खण्ड
अरावली पर्वतीय क्षेत्र
का उच्चतम भाग है - आबू पर्वत खंड है (जो सिरोही जिले में है।)
इसकी समुद्रतल से औसत
ऊँचाई 1200 मी. से भी अधिक है।
इसमें ग्रेनाइट चट्टानों
की बहुलता है।
आबू पर्वत खण्ड लगभग 19
किमी. लम्बा एवं 8 किमी.चौड़ा है।
यह एक अनियमित पठार है।
स्थलाकृति की दृष्टि से
इसे एक विशाल 'इन्सेलबर्ग' कहा जा सकता है।
राज्य का सर्वोच्च पठार
है - उड़िया का पठार (ऊँचाई 1360 मीटर) जो आबू पर्वत से सटा हुआ है और सबसे ऊँची चोटी गुरुशिखर के नीचे है।
इसी क्षेत्र में राज्य की
दूसरी सर्वोच्च चोटी सेर (1597 मी.) है
दिलवाड़ा एवं अचलगढ़ चोटी
की उंचाई है - 1380 मी.
जसवंतपुरा की पहाड़ियाँ
हैं - आबू पर्वत खंड के पश्चिम में हैं जिनमें डोरा पर्वत (869 मी.) प्रमुख चोटी
है।
छप्पन की पहाड़ियाँ एवं
नाकोड़ा पर्वत कहा जाता है - सिवाना की ग्रेनाइट पहाड़ियाँ को
जालौर पर्वतीय क्षेत्र की
प्रमुख चोटियाँ हैं - इसराना भाखर (839 मी.), रोजा भाखर (730
मी.), झारोला भाखर (588 मी.) आदि।
पोतवार का पठार है -
अरावली के उत्तरी-पूर्वी छोर पर
उपयोगी जानकारी -
अरावली पर्वतश्रेणी का
स्वरूप अजमेर से सिरोही होते हुए गुजरात तक तानपुरे के समान है।
यह उत्तर-पूर्व में कम
चौड़ी (सँकरी) तथा नीचे से (दक्षिण-पश्चिम में ) अधिक चौड़ी व विस्तृत है।
अरावली श्रेणियों में
मुख्यत: क्वार्टजाइट, नीस, शिष्ट एवं
ग्रेनाइट चट्टानें हैं।
राज्य की सबसे ऊँची पर्वत
चोटी गुरु शिखर - आबू पर्वत पर है
हिमालय एवं नीलगिरी
पर्वतों के मध्य की सबसे ऊँची चोटी है -
गुरु शिखर
इस पर्वतीय क्षेत्र में
वनस्पति पाई जाती है - ढाक,
गूलर, हरड़, आम, जामुन, गुग्गल, शीशम, आँवला, नीम, बहेड़ आदि
छप्पन की पहाड़ियों के
नाम से जानी जाती है - सिवाना (जालौर-बाड़मेर) पर्वतीय क्षेत्र में स्थित गोलाकार
पहाड़ियाँ यहीं नाकोड़ा पर्वत स्थित
है।
जालौर को ग्रेनाइट नगरी
कहा जाता है क्योंकि - यहाँ ग्रेनाइट
चट्टानों का बाहुल्य है।
अरावली पर्वतमाला का
विस्तार उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक अरब सागर से आने वाली दक्षिण पश्चिमी
मानसूनी पवनों की दिशा के समानान्तर है। फलस्वरूप ये पवनें राजस्थान में बिना
वर्षा किये उत्तर दिशा में चली जाती हैं और राज्य का पश्चिमी क्षेत्र सूखा रह जाता
है।
इस प्रदेश में वन्य जीव
अभयारण्यों में विविध जंगली जीव-जंतु पाये जाते हैं जो पर्यटकों के आकर्षण का
केन्द्र हैं।
अरावली पर्वत पश्चिमी
मरुस्थल के पूर्व में विस्तार को रोकता है।
पूर्वी
मैदानी भाग
पूर्वी मैदानी भाग में कुल
जिले आते हैं - 10
जयपुर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, दौसा, सवाईमाधोपुर,टोंक, अलवर व अजमेर के कुछ भाग तथा बाँसवाड़ा के कुछ भाग
यह मैदानी भाग अरावली
पर्वतमाला के पूर्व में स्थित है।
इस मैदान का उत्तरी
पूर्वी भाग गंगा-यमुना के मैदानी भाग से मिला हुआ है।
इसका ढाल पूर्व की ओर है।
इसका क्षेत्रफल है - राज्य
के कुल क्षेत्रफल कालगभग 23% है।
यह मैदानी भाग 50 सेमी. सम वर्षा
रेखा द्वारा पश्चिमी मरुस्थलीय भाग से विभाजित है
जनसंख्या : राज्य की लगभग
39% जनसंख्या यहाँ
निवास करती है।
इस क्षेत्र का जनसंख्या
घनत्व सर्वाधिक है।
वर्षा : 50 सेमी से 80 सेमी वार्षिक के
मध्य।
जलवायु : आर्द्र जलवायु।
मिट्टी : जलोढ़ व दोमट
मिट्टी
छप्पन का मैदान या भाटी
मैदान कहा जाता है - बाँसवाड़ा-प्रतापगढ़-डूंगरपुर के मध्यवर्ती
मैदानी भाग को
यहाँ का मुख्य व्यवसाय है
- कृषि।
मुख्य फसलें - गेहूँ, जौ, चना, ज्वार, मक्का, बाजरा, तिलहन, सरसों, दालें मूंग, उड़द, अरहर, गन्ना आदि |
इस क्षेत्र में कुओं
द्वारा सिंचाई अधिक होती है।
इस प्रदेश का ढाल पूर्व
दिशा में है, अतः सभी नदियाँ
पश्चिम से पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में अपना जल ले जाती हैं।
दक्षिणी मैदानी क्षेत्र
का ढाल पश्चिम में होने के कारण माही नदी खम्भात की खाड़ी में गिरती है।
नहरें : भरतपुर नहर व
गुडगाँव नहर।
चम्बल के बीहड़ व कंदराएँ
(ravines) यहाँ की मुख्य
विशेषता हैं।
चंबल बेसिन का ढाल दक्षिण
से उत्तर की ओर है
बनास बेसिन का ढाल उत्तर
पूर्व व पूर्व की ओर है
माही बेसिन का ढाल पश्चिम
में गुजरात राज्य की तरफ है।
विन्ध्यन पठार व हाड़ौती
का पठार स्थित है – पूर्वी मैदानी भाग की दक्षिणी-पूर्वी सीमा पर ।
इस बेसिन के पश्चिमी भाग
देवगढ़ के आसपास को पीडमांट का मैदान कहते हैं।
पूर्वी मैदानी भाग को
निम्न तीन उप-विभागों में विभाजित किया गया है -
बनास
बेसिन
बनास व उसकी सहायक नदियों
खारी, मोरेल, बेड़च, मेनाल, कोठारी, कालीसिल, माशी आदि द्वारा
सिंचित मैदानी भाग बनास बेसिन कहलाता है
बनास बेसिन का दक्षिणी
भाग कहलाता है - मेवाड़ का मैदान एवं
बनास बेसिन का उत्तरी भाग
कहलाता है - मालपुरा-करौली का मैदान
इस मैदान की अधिकतम ऊँचाई
पश्चिम में राजसमंद की तरफ है जहाँ सबसे ऊँचा भाग देवगढ़ के समीप (582 मी.) स्थित है।
बनास बेसिन में शामिल है
- राज्य के उदयपुर जिले का पूर्वी भाग, पश्चिमी
चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक, राजसमंद का पूर्वी भाग, जयपुर, पश्चिम सवाई
माधोपुर एवं अलवर के दक्षिणी भाग तक है।
बनास बेसिन का
उत्तरी-पूर्वी भाग या मालपुरा-करौली का मैदान कटा-फटा एवं बीहड़युक्त है जिसका ढाल
दक्षिण पूव-एवं पूर्व की ओर है।
इस भाग में बलुई पत्थर के
विशाल जमाव हैं जहाँ से इसका खनन किया जाता है।
यह मैदानी भाग पश्चिम में
50 सेमी. वार्षिक
सम वर्षा रेखा द्वारा पृथक है |
चम्बल बेसिन
चम्बल बेसिन क्षेत्र की
स्थलाकृति उत्खात स्थलाकृति (Badland Topography) है। इसकी संपूर्ण घाटी में नवीन काँपीय जमाव
मौजूद हैं।
इस संपूर्ण क्षेत्र की
स्थलाकृतियाँ पहाड़ों व पठारों से निर्मित्त हैं।
इस बेसिन में विशाल बीहड़
(Ravines) हैं
इस मैदानी क्षेत्र शामिल
हैं - कोटा, बूंदी, टोंक, सवाई माधोपुर एवं धौलपुर
छप्पन बेसिन
माही एवं उसकी सहायक
नदियों द्वारा सिंचित दक्षिणी भाग 'वागड़' नाम से प्रसिद्ध है ।
'छप्पन का मैदान' है - बाँसवाड़ा व प्रतापगढ़ के बीच का क्षेत्र
छप्पन बेसिन में शामिल
हैं - दक्षिण-पूर्वी उदयपुर, दक्षिणी बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ व
डूंगरपुर के क्षेत्र
इस क्षेत्र का ढाल
प्रवणांक अधिक है जो पूर्व से पश्चिम की ओर है।
दक्षिण-पूर्वी
पठारी भाग
हाड़ौती का पठार या लावा
का पठार कहते हैं - दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग को
इसमें कुल जिले 7 आते है - कोटा, बूंदी, झालावाड़, बाराँ तथा बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ व भीलवाड़ा के कुछ क्षेत्र
यह मालवा के पठार का ही
एक भाग है तथा चम्बल नदी के सहारे पूर्वी भाग में विस्तृत है।
इस क्षेत्र में राज्य का
लगभग 7% भाग आता है
राज्य की कुल जनसंख्या का
11% भाग यहाँ निवास करता
है।
वर्षा : 80 सेमी से 120 सेमी।
राज्य का सर्वाधिक
वार्षिक वर्षा वाला क्षेत्र है - दक्षिणी
पूर्वी पठारी भाग
मिट्टी : काली उपजाऊ
मिट्टी, लाल और कछारी
मिट्टी भी पाई जाती है।
धरातल - पथरीला व चट्टानी है।
जलवायु : अति आर्द्र
जलवायु प्रदेश।
फसलें - कपास, गन्ना, अफीम, तम्बाकू, चावल धनिया, मेथी, संतरा ।
वनस्पति - लम्बी घास, झाड़ियाँ, बाँस, खेर, गूलर, सालर, धोंक, ढाक, सांगवान आदि।
यह संपूर्ण प्रदेश चम्बल
और उसकी सहायक काली सिंध,
परवन और पार्वती
नदियों द्वारा प्रवाहित है।
इसका ढाल दक्षिण से उत्तर
की ओर है।
इसी कारण चम्बल व इसकी कई
सहायक नदियाँ दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हैं।
पठारी भाग अरावली और
विंध्याचल पर्वत के बीच संक्रान्ति प्रदेश (Transitional belt) है - दक्षिणी पूर्वी
पठारी भाग
इस भू-भाग के दो भाग हैं
- विन्ध्यन कागार भूमि और दक्कन का लावा पठार।
बूंदी व मुकुन्दवाड़ा की
पहाड़ियाँ इसी पठारी भाग में हैं।
यह पठारी भाग
उत्तर-पश्चिम में अरावली के महान सीमाभ्रंश द्वारा सीमांकित है।
ऊपरमाल का पठार एवं
मेवाड़ का पठार इसी के भाग हैं।
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