राजस्थान के वन




सन् 1949-50 में राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 13 प्रतिशत भाग पर वन थे। 
वनों के सरंक्षण एवं अधिकारिक भू-भाग में वन क्षेत्रों के विस्तार हेतु भारत में सर्वप्रथम 1894 में वन नीति घोषित की गई जिसका मुख्य उद्देश्य राजस्व प्राप्ति व वनों का संरक्षण था। 
स्वतंत्रता पश्चात् 1952 में राष्ट्रीय वन नीति घोषित की गई, जिसके अनुसार देश के कम से कम 33 प्रतिशत भू-भाग पर वनों की आवश्यकता प्रतिपादित की गई। 
दिसंबर, 1988 में देश में संशोधित नई वन नीति बनाई गई, जिसका मुख्य आधार वनों की सुरक्षा, संरक्षण व विकास था। 
राजस्थान में स्वतंत्रता पूर्व 1910 में जोधपुर रियासत में वन संरक्षण की योजना बनाई गई थी। 1935 में अलवर रियासत में वन अधिनियम बनाया गया। 
राजस्थान निर्माण के पश्चात् 1953 में वन अधिनियम पारित किया गया तथा वनों की सुरक्षा हेतु प्रयास किए गए। 
5वीं पंचवर्षीय योजना में सामाजिक वानिकी का प्रादुर्भाव हुआ।
छठी योजना में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम को वन विकास का मुख्य अंग बनाया गया।
राज्य की प्रथम वन नीति 17 फरवरी, 2010 को घोषित की गई। इस नीति के अनुसार राज्य के संपूर्ण भू-भाग के 20 प्रतिशत भाग को वृक्षाच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया है
प्रदेश का 9.59% भू-भाग ही वन क्षेत्र है जिसमें से भी पूर्ण वनाच्छादित क्षेत्र मात्र 4.73% है जबकि राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार राष्ट्र के सम्पूर्ण भू-भाग के क्षेत्र पर वन होने आवश्यक है। 
राजस्थान वन (संशोधन) अधिनियम, 2014 : दिनांक 4 मार्च, 2014 से राजस्थान वन (संशोधन) अधिनियम, 2014 लागू किया गया है।
भारत में कुल वन व वृक्षाच्छादित क्षेत्रफल - 24.16% है।
कुल वन आच्छादित क्षेत्र - 21.34% है
वृक्ष आच्छादित क्षेत्र - 2.82% है। 
देश में वन क्षेत्र की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य मध्यप्रदेश है उसके बाद अरुणाचल प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ का स्थान है। 
प्रतिशत के अनुसार सबसे अधिक वन क्षेत्र मिजोरम में 88.93% है। लक्षद्वीप 84.56% वन क्षेत्र के साथ दूसरे स्थान पर है।

राजस्थान में वन क्षेत्रः
राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 4.73 प्रतिशत (16171 वर्ग किमी.) क्षेत्र पर वनावरण है। 
राज्य में उदयपुर में वनावरण सर्वाधिक 23.25 प्रतिशत है, सिरोही द्वितीय स्थान (17.76 प्रतिशत)पर है। रिपोर्ट के अनुसार न्यूनतम वनावरण जोधपुर में 0.43 प्रतिशत है।
राज्य में वन 9.59, चारागाह 4.94 व बंजर भूमि 6.94 प्रतिशत है।
राजस्थान का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किमी. 
कुल वन क्षेत्र राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 9.59% है 
आरक्षित वन क्षेत्र : 12352.75 वर्ग किमी. (37.63%) 
रक्षित वन क्षेत्र : 18408.37 वर्ग किमी. (56.08%) 
अवर्गीकृत वन क्षेत्र : 2066.73 वर्ग किमी. (6.29%) 
राज्य के कुल वन क्षेत्र में सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला जिला : उदयपुर (3899.16 वर्ग किमी.) 
राज्य के कुल वन क्षेत्र में न्यूनतम वन क्षेत्र वाला जिला का : चूरू (73.73 वर्ग किमी.) सर्वाधिक प्रतिशत वन क्षेत्र वाला जिला : प्रतापगढ़(जिले के भौगोलिक क्षेत्र का 46.76 प्रतिशत) 
न्यूनतम प्रतिशत वन क्षेत्र वाला जिला : चूरू (0.44 प्रतिशत) 
प्रति व्यक्ति वन व वृक्षावरण क्षेत्र 0.036 हैक्टेयर है 
प्रदेश का कुल वनावरण :16171 वर्ग किमी.
प्रदेश का कुल वृक्षावरण :8269 वर्ग किमी. राज्य का कुल वनावरण व वृक्षारोपण क्षेत्र  : 24440 वर्ग किमी. 
राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का कुल वनावरण एवं वृक्षावरण का प्रतिशत :7.14% 
भारत के वन व वृक्षावरण का राज्य में प्रतिशत भाग :3.08% 
राष्ट्रीय उद्यान :
वन्य जीव अभयारण्य बाघ परियोजनाएँ :3 (रणथम्भौर, सरिस्का एवं मुकन्दरा हिल्स)। मुकन्दरा हिल्स 9 अप्रैल, 2013 को टाइगर रिजर्व घोषित। 
महत्त्वपूर्ण पक्षी स्थल :24 
रामसर स्थल :2 (घना पक्षी विहार एवं साँभर झील) 
संरक्षित क्षेत्र (कंजर्वेशन रिजर्व) :10 

वैधानिक दृष्टि से राज्य में वनों की स्थितिः 
प्रदेश में कुल अभिलेखित वन क्षेत्र 32744.49 वर्ग किमी है। 
राजस्थान वन अधिनियम 1953 के प्रावधानों के अनुरूप वैधानिक दृष्टि से उक्त वन क्षेत्र को निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया है:
आरक्षित वन (Reserved)  - लकड़ी काटने व पशु चराई पर पूर्ण प्रतिबंध 
क्षेत्रफल - 12352.75 
प्रतिशत - 37.63% 
रक्षित वन - सीमित मात्रा में सूखी लकड़ी की कटाई व पशुचारण की सुविधा 
क्षेत्रफल  - 18408.37 (Protected)
प्रतिशत - 56.08%
अवर्गीकृत वननिम्न श्रेणी के छितरे वन। पशु चराई व लकड़ी काटने पर प्रतिबंध नहीं।
क्षेत्रफल - 2066.73 
प्रतिशत - 6.29% 
राजस्थान में वनों का वितरण असमान है। 
अधिकतर वन दक्षिणी व दक्षिणी पूर्वी भाग में पाये जाते हैं। यहाँ वन्य जीव संपदा भी प्रचुर मात्रा में हैं। 
राज्य के कुल वन क्षेत्र का लगभग 50 प्रतिशत भाग केवल 8 जिलों- उदयपुर, प्रतापगढ़, चित्तौडगढ़, बाराँ, अलवर, करौली, सिरोही व बूंदी में केन्द्रित है, जबकि राज्य के पश्चिमी भाग में अत्यंत कम वन पाये जाते हैं।

वनों के प्रकार 
शुष्क सागवान वन (Dry Teak Forests)
उष्ण कटिबंधीय शुष्क या मिश्रित पतझड़ वन (Mixed Decidious Forests)
उपोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन (Sub Tropical Evergreen Forests)
शुष्क या मरुस्थलीय वन (Dry Forests)
अर्द्धशुष्क उष्ण कटिबंधीय धोक वन


शुष्क सागवान वन (Dry Teak Forests) : 
शुष्क सागवान वन 75 से 110 से.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 
राजस्थान में मुख्यत: बाँसवाड़ा में ये सघन रूप में पाए जाते हैं। इसके अलावा प्रतापगढ़, दक्षिणी उदयपुर, आबू पर्वत के कुछ भाग तथा बाराँ जिलों में भी सागवान के वन अन्य वृक्षों के साथ मिश्रित रूप में पाए जाते हैं। 
इन वनों का मुख्य वृक्ष देशी सागवान है। इनमें पाए जाने वाले अन्य वृक्ष- बरगद, आम, तेंदू, गूलर, महुआ, साल, खैर आदि हैं। 
शुष्क सागवान वन राज्य के कुल वन क्षेत्र के लगभग 6.86 प्रतिशत भाग में विस्तृत हैं। 

उष्ण कटिबंधीय शुष्क या मिश्रित पतझड़ वन (Mixed Decidious Forests): 
इस प्रकार के वन दक्षिणी एवं दक्षिणीपूर्वी अरावली के मध्यम ऊँचाई वाले ढालों, जहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 80 सेमी. रहता है, में पाए जाते हैं। 
इस प्रकार के वन उदयपुर, बाँसवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़, भीलवाड़ा, सवाई माधोपुर व बूंदी जिलों में सर्वाधिक है तथा जयपुर, अजमेर, भरतपुर, धौलपुर, अलवर आदि जिलों में अत्यधिक कटाई के कारण ये वन बहुत कम मात्रा में रह गए हैं। 
इस प्रकार के वनों के मुख्य वृक्ष - आम, खैर, ढाक, साल, बाँस आदि हैं। 
इन वनों के वृक्ष वर्ष में एक बार (सामान्यतः मार्च अप्रैल में) अपने पत्ते गिराते हैं। 
ढाक या पलास वन सभी नदी घाटियों में जहाँ सागवान के वृक्ष पाये जाते हैं, मुख्य रूप से मिलते हैं। 
राज्य के कुल वनों का 28.38 प्रतिशत क्षेत्र इन वनों से आच्छादित है। 

उपोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन (Sub Tropical Evergreen Forests): 
ये वन केवल आबू पर्वत के चारों ओर 52 किमी. क्षेत्र में लगभग 150 सेमी या अधिक वार्षिक वर्षा व अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 
ये वन सघन तथा वर्ष भर हरे भरे रहते हैं। 
यह वानस्पतिक विविधता की दृष्टि से राज्य का सर्वाधिक सम्पन्न क्षेत्र है। 
यहाँ मुख्यतः सिरस, बाँस, बेल, जामुन, रोहिड़ा आदि वृक्ष पाए जाते हैं। 
इस प्रकार के वनों का क्षेत्र मात्र 0.39 प्रतिशत ही है।

शुष्क या मरुस्थलीय वन (Dry Forests) : 
राज्य के मरुस्थलीय क्षेत्रों, जहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 30 सेमी से
भी कम पाया जाता है, के केवल खारे, दलदली व नमी वाले निचले क्षेत्रों, बस्तियों व कुँओं के आसपास कंटीली झाड़ियों, घास एवं वृक्षों के रूप में इस प्रकार के वन पाए जाते हैं। 
इन वनों की मुख्य वनस्पति खेजड़ी, बबूल, थूहर, केर, कीकर, बेर, फोग व अन्य कंटीली झाड़ियाँ तथा सेवण, धामन, मुरात आदि घास हैं। 
इन वनों के वृक्ष व झाड़ियों की जड़ें मोटी व लम्बी, तने कंटीले, छाल मोटी, पत्तियाँ छोटी, चिकनी व गूदेदार होती है ताकि वाष्पोत्सर्जन कम हो। 
ये वन कुल वन क्षेत्र का मात्र 6.26 प्रतिशत क्षेत्र में विस्तृत है। 
ये वन जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर, नागौर, चुरू, गंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में पाए जाते हैं। 
जिन क्षेत्रों में नहरी पानी आ गया है वहाँ अन्य प्रकार के वृक्ष व फलदार पेड़ पौधे भी पाए जाते हैं। 
मरुस्थलीय क्षेत्रों की शुष्क वनस्पति को मरुद्भिद (Xerophytes) कहते हैं। 
जैसलमेर से पोकरण व मोहनगढ़ तक पाकिस्तानी सीमा के सहारे- सहारे एक चौड़ी भूगर्भीय जल पट्टी, जिसे 'लाठी सीरीज क्षेत्र' कहा जाता है, में उपयोगी सेवण घास अत्यधिक मात्रा में उगती है

अर्द्धशुष्क उष्ण कटिबंधीय धोक वन : 
ये वन अरावली के पश्चिमवर्ती अर्द्धशुष्क क्षेत्रों, यथा सीकर, झुंझुनूं, जालौर, जोधपुर के पूर्ववर्ती भाग, टोंक, सवाईमाधोपुर, जयपुर आदि जहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 30 से 60 सेमी रहता है, में पाए जाते हैं। इनमें मुख्यतः धोकड़ा, बबूल, खेजड़ी, रोहिड़ा, बेर, केर, थूहर, करून आदि वृक्ष व झाड़ियाँ मिलती हैं। 
शुष्क व अर्द्धशुष्क वनों का क्षेत्र राज्य के कुल वनों का लगभग 58.11 प्रतिशत है। 
राज्य में धोकड़ा के वन सर्वाधिक हैं। 
इन वनों का प्रमुख वृक्ष धोकड़ा है। 

अन्य प्रकार के वनः
ढाक पलास वनः 
अपने सुर्ख लाल एवं पीले रंग के कारण ये वन जंगल की ज्वाला के नाम से प्रसिद्ध हैं। 
इनमें मुख्य वृक्ष पलास (ढाक) हैं। 
ये वन मुख्यतः राजसमंद एवं आसपास के क्षेत्रों में पाये जाते हैं। 

सालर वनः 
इस श्रेणी के वन मुख्य रूप से उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, सिरोही, अजमेर, अलवर, जयपुर आदि जिलों में पाये जाते हैं। 
इनमें साल वृक्ष की प्रमुखता होती है।

वानस्पतिक नामः 
सेवण घास-लसियुरूस सिडीकुस
खेजड़ी-प्रोसोपिस सिनेरेरिया
रोहिड़ा-टिकोमेला अण्डलेटा 
धामण घास - Cenchrus Ciliaris

राजस्थान की प्रमुख वनस्पतियाँ 
खेजड़ी (शमी वृक्ष): 
इसे 'रेगिस्तान का कल्पवृक्ष' कहते है।
खेजड़ी को 31 अक्टूबर, 1983 को राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया जा चुका है। 
इसकी फली को सांगरी कहते है जो सुखाकर सब्जी के रूप में प्रयुक्त होती है तथा इसकी पत्तियाँ 'लूम' चारे के रूप में प्रयुक्त होती है। 
शमी को सिन्धी में छोंकड़ा', पंजाबी-हरियाणवी में जाण्टी, कन्नड़ में बन्नी, तमिल में पेयमये व वैज्ञानिक भाषा में प्रोसोपिस सिनेरेरिया कहते हैं। 
विजयदशमी (दशहरा) के दिन शमी का पूजन किया जाता है। 
धोकड़ाः - धोकड़ा का वानस्पतिक नाम 'एनोजिस पंडूला' है। 
कत्था - खैर वृक्ष के तने की छाल व टुकड़ों को उबाल कर प्राप्त किया जाता है। 
यह वृक्ष मुख्यतः उदयपुर, चित्तौड़गढ़, बूंदी, झालावाड़ व जयपुर जिले में मिलता है। 
आँवल झाड़ी की छाल चमड़ा साफ करने (टेनिंग) में प्रयुक्त होती है। यह झाड़ी मुख्यतः पाली, सिरोही, उदयपुर, बाँसवाड़ा व जोधपुर जिलों में मिलती है। 
खस एक विशिष्ट प्रकार की घास है जो शरबत व इत्र बनाने में प्रयुक्त होती है। 
यह टोंक, सवाईमाधोपुर व भरतपुर जिलों में उत्पन्न होती है। 
महुआ: इसके फलों का प्रयोग तेल निकालने व देशी शराब बनाने में होता है। 
यह मुख्यत: उदयपुर, डूंगरपुर व सिरोही जिलों में पाया जाता है। 
महुआ को आदिवासियों का कल्पवृक्ष भी कहते हैं। 
इसका वानस्पतिक नाम 'मधुका लोंगोफोलिया' है। 
बाँस : यह मुख्यतः आबूपर्वत, बाँसवाड़ा, उदयपुर व कोटा में पाया जाता है। 
साल : यह मुख्यतः उदयपुर, चित्तौड़गढ़, सिरोही, अजमेर व अलवर जिलों में पाया जाता है। 
बीड़ : राजस्थान में घास के मैदान या चरागाहों को स्थानीय भाषा में बीड़ कहा जाता है।
रोहिड़ाः  राज्य पुष्प है 
रोहिडा मरुस्थल का सागवान, मारवाड़ टीक आदि नामों से लोकप्रिय है 
रोहिड़ा को राजस्थान की 'मरुशोभा' कहा जाता है। 
चंदन वन : राजस्थान में राजसमंद जिले के हल्दीघाटी (खमनौर) व देलवाड़ा क्षेत्र के वनों में चंदन के पेड़ों की अधिकता होने से चंदन वन के नाम से जाने जाते हैं। 
लीलोण : रेगिस्तानी क्षेत्रों (विशेषकर जैसलमेर आदि) में पाई जाने वाली बहुपयोगी सेवण घास का स्थानीय नाम।

पारिस्थितिकीय तंत्र 
राज्य की जलवायु परिस्थितियों एवं वन-वनस्पति के आधार पर राज्य को निम्न चार मुख्य पारिस्थितिकीय तंत्रों में बाँटा गया हैं - 
पूर्वी मैदानी पारिस्थितिकीय तंत्र 
मरुस्थलीय पारिस्थितिकीय तंत्र
अरावली पर्वत श्रृंखला पारिस्थितिकीय तंत्र
हाड़ौती पठार एवं कंदरा पारिस्थितिकीय तंत्र

वन प्रशिक्षण केन्द्र:-
वानिकी प्रशिक्षण केन्द्र, जयुपर,
मरुवन प्रशिक्षण केन्द्र, जोधपुर ,
राजस्थान वन प्रशिक्षण केन्द्र, अलवर




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Milan Tomic

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