वन्य जीवों की सुरक्षा व संरक्षण के
संबंध में सबसे पहला लिखित कानून संभवतः ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक
द्वारा बनाया गया था।
वर्तमान युग में भारत में वन्य जीवों की
सुरक्षा हेतु प्रथम संहिताबद्ध कानून 1887 में वन्य
पक्षी सुरक्षा अधिनियम' बनाया गया।
1976 के 42वें
संविधान संशोधन द्वारा वन्य जीव' विषय को
समवर्ती सूची का विषय बना दिया गया।
स्वतंत्रता पश्चात् 23 अप्रैल, 1951 को राजस्थान
में राजस्थान वन्य पशु एवं पक्षी संरक्षण अधिनियम, 1951' लागू किया गया, जिसमें
वन्य जीवों हेतु आरक्षित क्षेत्र घोषित करने की व्यवस्था की गई।
नवंबर, 1955 को प्रथम बार राज्य के पाँच रियासती शिकारगाहों को वन्य जीवों के लिए
आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया।
भारत सरकार द्वारा 9 सितंबर, 1972 को वन्य
जीव सुरक्षा अधिनियम, 1972' लागू किया
गया। राजस्थान सरकार द्वारा इस अधिनियम को 1 सितम्बर, 1973 से लागू किया गया। इस अधिनियम के द्वारा
राज्य में वन्य जीवों के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।
देश में बाघों के संरक्षण हेतु 1 अप्रैल, 1973 से बाघ
परियोजना (Project
Tiger) शुरू की गई।
देश की पहली बाघ परियोजना जिमकार्बेट
नेशनल पार्क में 1973 में
प्रारंभ की गई थी।
देश में वर्तमान में 48 बाघ रिजर्व है।
राजस्थान में अब तीन बाघ परियोजनाएँ
रणथम्भौर, सरिस्का व मुकन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व
संचालित की जा रही हैं।
रणथम्भौर बाघ परियोजना को 1973 में बाघ परियोजना के प्रथम चरण में ही प्रारम्भ कर दिया गया
था।रणथम्भौर परियोजना क्षेत्रफल की दृष्टि से देश की सबसे छोटी बाघ परियोजना है।
सरिस्का बाघ परियोजना 1978-79 में प्रारम्भ की गई।
9 अप्रैल, 2013 को
मुकन्दरा हिल्स को टाइगर रिजर्व भी घोषित किया गया।
वर्तमान भारत में -
राष्ट्रीय पार्क हैं - 103
वन्य जीव अभयारण्य हैं - 535
संरक्षण रिजर्व हैं - 66
सामुदायिक रिजर्व हैं - 26
बायोस्फियर रिजर्व हैं - 18
देश का पहला जन्तुआलय 1855 में मद्रास में स्थापित किया गया।
भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान 1935 में हैली नेशनल पार्क (जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान) के नाम
से स्थापित किया गया था। यह उत्तराखण्ड में स्थित है।
दुनिया के 70 प्रतिशत बाघ अब हमारे देश में है।
सर्वाधिक बाघ (406) कर्नाटक में हैं।
सर्वाधिक एशियाई शेर जूनागढ़ (गुजरात)
में है।
राज्य में
राष्ट्रीय उद्यान – 3
वन्य जीव अभयारण्य – 26
कन्जर्वेशन रिजर्व
– 10
आखेट निषिद्ध क्षेत्र 33
हैं।
जयपुर, उदयपुर, जोधपुर, कोटा व बीकानेर में 5 जन्तुआलय
है।
जयपुर जंतुआलय में वर्तमान में मगरमच्छ
व बाघ के प्रजनन कार्य में सफलता प्राप्त की गई है।
जोधपुर जंतुआलय में गोडावण का प्रजनन
सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
राजस्थान का राज्यपुष्प - रोहिडा -1983 में घोषित। |
राजस्थान का राज्यपशु - चिंकारा व ऊँट
राजस्थान का राज्यपक्षी - गोडावण 1981 में घोषित।
राजस्थान का राज्यवृक्ष - खेजड़ी- 1983 में घोषित।
राष्ट्रीय वृक्ष बरगद - (वट वृक्ष)
राष्ट्रीय पुष्प - कमल,
राष्ट्रीय पशु - बाघ
राष्ट्रीय पक्षा - मोर (पावो
क्रिस्टेटस)
ऊँट भी राजकीय पशुः 30 जून, 2014 को बीकानेर
में हुई कैबिनेट बैठक में ऊँट को राजकीय पशु घोषित किया गया।
चिंकारा वन्यजीव श्रेणी में राजकीय पशु
रहेगा जबकि ऊँट पशुधन श्रेणी में राजकीय पशु रहेगा।
राजस्थान ऊष्ट्रवंशीय पशु (वध एवं
प्रतिषेध और अस्थायी प्रजनन और निर्यात का विनियम) अधिनियम, 2014 को भी मंजूरी दे दी गई।
पूरे राज्य में डेजर्ट नेशनल पार्क ही
एकमात्र स्थल है जहाँ राज्यपशु चिंकारा, राज्य
पक्षी गोडावण,
राज्य वृक्ष खेजड़ी और राज्यपुष्प
रोहिड़ा उपलब्ध है।
राज्य के मृग वन (Deer Park):
प्रदेश मे उपयुक्त स्थलों पर मृगों
(चीतल, चिंकारा आदि) को एक सीमाबद्ध प्राकृतिक
क्षेत्र में रखा गया है, इन्हें ही
मृगवन कहते हैं। ये निम्न
है :-
राज्य के मृगवन व स्थापना वर्ष
1. अशोक विहार, जयपुर - 1886
2. माचिया सफारी पार्क, जोधपुर - 1985
3. चित्तौड़गढ़ मृगवन, चित्तौड़गढ़ - 1969
4. पुष्कर मृगवन, पंचकुण्ड, पुष्कर (अजमेर) - 1885
5. संजय उद्यान, शाहपुरा
(जयपुर) - 1986
6. सजगढ़ मृगवन, उदयपुर - 1984
7. अमृता देवी मुगवन, खेजड़ली
(जोधपुर) - 1998
राज्य के जंतुआलय
राज्य में निम्न 5 जन्तुआलय स्थित हैं - जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, कोटा, उदयपुर
जयपुर : 1876 में सवाई रामसिंह द्वारा स्थापित, यह राज्य का प्रथम व सबसे बड़ा चिड़ियाघर है
राष्ट्रीय उद्यान
राष्ट्रीय उद्यान 3 है -
रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान – सवाईमाधोपुर
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (घना पक्षी अभयारण्य) –
भरतपुर
मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान - कोटा, चित्तौड़गढ़
रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान – सवाईमाधोपुर
1
नवम्बर 1980 को घोषित किया गया
राज्य का सबसे बड़ा व प्रथम
राष्ट्रीय उद्यान
यह राष्ट्रीय उद्यान सवाई माधोपुर जिले के 392 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत है।
इसे 1955 में वन्यजीव
अभ्यारण्य घोषित किया गया।
इसके दक्षिण में
चम्बल तथा उत्तर में बनास नदी है।
मगरमच्छ यहाँ का
दूसरा आकर्षण है।
जोगी महल, गणेश मन्दिर आदि
दर्शनीय स्थल है।
यहाँ तीन झीलें पदम
तालाब, मलिक तालाब व राजबाग झील स्थित है।
'Land of Tiger' के नाम से प्रसिद्ध है
राज्य के प्रथम राष्ट्रीय
उद्यान रणथम्भौर की स्थापना वर्ष 1955 में एक अभयारण्य के रूप में की गई, जिसे 1980 में
राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।
यहाँ पर भारत सरकार द्वारा बाघ परियोजना
1973-74 में प्रारम्भ की गई। (विश्व वन्य जीव कोष के
सहयोग से)
यहाँ के प्रमुख आकर्षण बाघ, मगरमच्छ, सांभर, जंगली सूअर, चिंकारा, मच्छीखोरा
एवं काला गरुड़ हैं।
उद्यान में रणथम्भौर दुर्ग, त्रिनेत्र गणेश मंदिर एवं जोगी महल स्थित है।
राज्य सरकार ने इसे विश्व धरोहर सूची
में शामिल करने के लिए यूनेस्को को प्रस्ताव भेजा है।
उद्यान में पदम तालाब, मलिक तालाब, राजबाग, गिलाई सागर, मानसरोवर
एवं लाहपुर नामक छः झीलें (तालाब) स्थित है।
यहाँ पर विश्व बैंक की
सहायता से वर्ष 1996-97 में इण्डिया ईको इवलपमेन्ट
प्रोजेक्ट प्रारम्भ किया गया। .
यहाँ पर्यटकों के दबाव को कम करने के लिए
टाइगर सफारी पार्क बनाया जायेगा।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (घना पक्षी
अभयारण्य) - भरतपुर
27
अगस्त 1981 को
घोषित किया गया
यह उद्यान नेशनल हाईवे-11 पर भरतपुर के निकट 29 वर्ग किमी.
क्षेत्र
में विस्तृत है। (क्षेत्रफल 28.73 वर्ग किमी.)
इस उद्यान की स्थापना 1956 में की गई, जिसे 1981 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
वर्ष 2004 में इसे रामसर साईट की सूची में सम्मिलित किया गया।
यूनेस्को द्वारा 1985 में विश्व धरोहर का दर्जा पाने वाला यह राज्य का एकमात्र वन्य
जीव संरक्षण स्थल है।
इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर के अन्तर्गत प्राकृतिक परोहर
की सूची में स्थान मिला।
आस्ट्रिया की सहायता से
यहाँ पर 'पक्षी व नमभूमि चेतना
केन्द्र' स्थापित किया गया है।
यहाँ पर लगभग 390 प्रकार के पक्षी मिलते हैं।
शीतकाल में यहाँ साइबेरियन सारस, गोज, व्हाईट
स्टार्क, बीजंस, मेलाह, मेडबल, शावस, टील्स, पीपीटस एवं लैपवीर नामक विदेशी पक्षी साइबेरिया एवं उत्तरी
यूरोप से आते हैं।
यहाँ मुख्यतः धोक, कवम्ब, बेर, खजूर और बबूल के पेड़ पाए जाते हैं।
इसे 1956 में पक्षी
अभयारण्य घोषित किया गया।
1985 में इसे यूनेस्को
की विश्व प्राकृतिक धरोहर सूची में शामिल किया गया।
यह राजस्थान की
नमभूमि भी है।
इसे 1 अक्टूबर,
1981 को 'रामसरसाइट' घोषित किया गया।
इसे 'पक्षियों का
स्वर्ग' कहा जाता है।
यह साइबेरियन
क्रेन(सारस) के आगमन के लिये प्रसिद्ध है।
कदम्ब के वृक्ष
यहाँ बहुतायत से पाये जाते हैं। पानी अजान बाँध से मिलता है।
यहाँ बाणगंगा व
गंभीरी नदी बहती है।
पक्षियों की स्थानीय प्रजातियों में
काल्प. बुजा, अंघल, अंधा बगुला, पीहो, भारतीय सारस एवं कठफोड़वा प्रमुख हैं।
यहाँ चीतल, सांभर, जरख, गीदड़, जंगली
बिल्ली, सियार आदि वन्य जीव मिलते हैं।
उद्यान में 'अजान वांध' स्थित है, इसके निकट पाइथन पाइंट पर अजगर (पाइथन) देखे जा सकते हैं।
अजान बांध से यहाँ
जलापूर्ति की जाती है।
बार हेडेड ग्रीज पक्षी-रोजी पिस्टर
(चिल्लाने वाले) एवं वाल्मीकि द्वारा बताये गये चकवा-चकवी भी यहाँ मिलते हैं।
यह राष्ट्रीय उद्यान प्रसिद्ध पक्षी
विशेषज्ञ डॉ. सलीम अली की कर्मस्थली रहा है। पक्षियों की प्रजातियों पर अपनी
पुस्तक 'स्पीशीज' उन्होंने यहाँ लिखी थी। यहाँ डॉ. सलीम अली इंटरप्रिटेशन सेंटर को
आस्ट्रियन सॉरोस्की की आर्थिक मदद और वर्ल्ड वाइड फण्ड के निर्देशन में एक केन्द्र
की स्थापना हुई है।
मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान - कोटा, चित्तौड़गढ़
9
जनवरी 2012 घोषित
किया गया (मुकन्दरा हिल्स अभयारण्य को
राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा जनवरी, 2012 में मिला।)
राजस्थान की तीसरी बाघ
परियोजना मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान में अप्रैल, 2013 में प्रारम्भ हो गयी है।
क्षेत्रफल 199.55 (वर्ग किमी.) (274 वर्ग किमी.)
इसे टाइगर रिजर्व
बना दिया गया है।
इस अभयारण्य की स्थापना 1955 ई. में कोटा एवं झालावाड़ जिलों के क्षेत्र में की गई (NH-12 पर)।
हाड़ौती के प्रकृति प्रेमी शासक मुकंद
सिंह के नाम पर दर्रा से बदलकर मुकन्दरा हिल्स नाम रखा था।
इस अभयारण्य में गागरोनगढ़ का दुर्ग, रावंठा महल, बाण्डोली
का शिव मन्दिर,
अबला मीणी का महल, भीम चौरी एवं मंदिरगढ़ के अवशेष स्थित हैं।
वन्य जीवों को पास से देखने के लिए
रामसागर, झामरा आदि स्थानों पर अवलोकन स्तम्भ
बनाए गए हैं, जिन्हें रियासती ज़माने में 'औदिया' कहा जाता
था।
यहाँ पर सांभर, नील गाय, चीतल, हिरण, जंगली सूअर
एवं एलेक्जेन्ड्रिया पेराकीट (गागरोनी तोते) प्रमुख वन्य जीव हैं ।
गागरोनी तोते को टुईया तोता भी कहते हैं, जो मानव की बोली की हूबहू नकल उतारता है। इतिहासकारों ने इसे
हीरामन तोता तथा 'हिन्दुओं
का आकाश लोचन'
कहा है।
राज्य के वन्य जीव अभयारण्य
सरिस्का वन्य जीव
अभयारण्य (अलवर)
राष्ट्रीय
मरुद्यान (जैसलमेर, बाड़मेर)
जयसमन्द अभयारण्य (उदयपुर)
तालछापर अभयारण्य (चूरू)
वन विहार अभयारण्य (धौलपुर)
माउण्ट आबू अभयारण्य (सिरोही)
जवाहर सागर अभयारण्य (कोटा, बूंदी)
गजनेर अभयारण्य (बीकानेर)
कुम्भलगढ़ अभयारण्य (राजसमंद, पाली, उदयपुर)
रामगढ़ विषधारी अभयारण्य (बूंदी)
सीतामाता अभयारण्य (प्रतापगढ़ एवं चित्तौड़गढ़)
कनक सागर पक्षी अभयारण्य, दुगारी (बूंदी)
नाहरगढ़ अभयारण्य (जयपुर)
जमवारामगढ अभयारण्य (जयपुर)
भैंसरोडगढ़ अभयारण्य (चित्तौड़गढ़)
शेरगढ़ अभयारण्य (बारां)
बन्द बारेठा अभयारण्य (भरतपुर)
फुलवारी की नाल अभयारण्य (उदयपुर)
बस्सी अभयारण्य (चित्तौड़गढ़)
रावली टाइगढ़ वन्य जीव अभयारण्य
कैला देवी अभयारण्य (करौली)
रामसागर अभयारण्य (धौलपुर
केसरबाग अभयारण्य (धौलपुर)
सज्जनगढ़ अभयारण्य (उदयपुर)
सवाई मानसिंह अभयारण्य (सवाई
माधोपुर)
राष्ट्रीय चम्बल घडियाल अभयारण्य - राजस्थान, मध्यप्रदेश
एवं उत्तर प्रदेश तीन राज्यों में विस्तृत है तथा राजस्थान के 5 जिलों कोटा, सवाईमाधोपुर, करौली, बूंदी एवं धौलपुर में विस्तृत है
सरिस्का वन्य जीव अभयारण्य (अलवर)
यह अभयारण्य जयपुर-अलबर मार्ग पर अलवर
से 35 किमी. की दूरी पर 492 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला है।
इसकी स्थापना 1955 ई. में की गई।
राज्य सरकार ने 1982 ई. में केन्द्र सरकार के पास इसे राष्ट्रीय उद्यान बनाने हेतु
प्रस्ताव भेजा था, जो
विचाराधीन है।
इस अभयारण्य में कासका एवं कांकनवाड़ी
के पठार (दुर्ग) स्थित है।
इस अभयारण्य में वर्ष 1978-79 में बाघ परियोजना प्रारम्भ की गई।
(राजस्थान में दूसरी बाघ परियोजना)
यहाँ पर RTDC की होटल टाईगर डेन स्थित है।
अभयारण्य क्षेत्र में नीलकण्ठ महादेव, गडराजोर का जैन मंदिर, पाराशर
आश्रम, भर्तृहरि की गुफाएँ एवं पाण्डुपोल स्थित
हैं।
यहाँ पर बघेरा, सांभर, चीतल, नील गाय, काला खरगोश
एवं हरे कबूतर भी मिलते हैं। राष्ट्रीय पक्षी मोर सर्वाधिक संख्या में सरिस्का
अभयारण्य में मिलते हैं।
सरिस्का अभयारण्य के भीतर बसे 28 गाँवों को भी अन्यत्र बसाकर बाघों के संरक्षण की योजना है।
राष्ट्रीय मरुद्यान (जैसलमेर, बाड़मेर)
यह अभयारण्य 8 मई, 1981 को जैसलमेर
(1962 वर्ग किमी.) एवं बाड़मेर (1200 वर्ग किमी.) जिलों के 3162 वर्ग किमी.
क्षेत्र में स्थापित किया गया।
क्षेत्रफल की दृष्टि से यह
राज्य का सबसे बड़ा अभयारण्य है।
मरूधान में जैसलमेर से 15 किमी. दूर बाड़मेर मार्ग पर स्थित आकल गाँव (जैसलमेर) में लगभग 18 करोड़ वर्ष पुराने 25 काष्ठ जीवाश्म मिले हैं।
(आकल बुड फोसिल्स पॉर्क)
राज्य में सर्वाधिक संख्या
में गोडावण पक्षी यहाँ पर स्वछन्द विचरण
करते हैं, अत: इसे 'गोडावण की
शरणस्थली' भी कहा जाता है।
जयसमन्द अभयारण्य (उदयपुर)
यह अभयारण्य 1955 में उदयपुर नगर से 50 किमी. दूर
जयसमन्द झील के निकटवर्ती 52 वर्ग किमी.
क्षेत्र में बनाया गया है।
शीतकाल में यहाँ 112 प्रजातियों के पक्षी आते हैं।
यह बहोरा पक्षी के आश्रय स्थल के रूप
में विशेष पहचान रखता है। यहाँ पर चितकबरे हिरण, सांभर, जंगली सूअर, चीता, तेंदुआ, काला भालू, चकवा-चकवी
आदि वन्य जीव मिलते हैं।
तालछापर अभयारण्य (चूरू)
1971 में चूरू जिले की सुजानगढ़ तहसील के 8 वर्ग किमी. क्षेत्र में
स्थापित यह अभयारण्य काले हिरणों एवं
प्रवासी पक्षी कुरजां के लिए प्रसिद्ध है।
अभयारण्य में तालछापर नामक झील है।
वर्षाकाल में यहाँ पर 'मोचिया साइप्रस रोटन्डस' नामक नर्म
घास उगती है। 6
महाभारत काल में छापर 'द्रोणपुर' के नाम से
जाना जाता था,
जहाँ पर गुरु द्रोणाचार्य का
आश्रम था।
वन विहार अभयारण्य (धौलपुर)
यह अभयारण्य धौलपुर से 20 किमी. दूर रामसागर झील के निकट 25 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। (स्थापना 1955 ई. में)
यहाँ के प्रमुख वन्य जीव रीछ, शेर, चीता, सांभर, चीतल, बघेरा एवं नीलगाय हैं। तालाब ए शाही झील व चम्बल नदी की निकटता से यह अभयारण्य
पक्षियों की उत्तम आश्रय स्थली है।
माउण्ट आबू अभयारण्य (सिरोही)
यह अभयारमा सिरोही जिले के माउण्ट आबू
क्षेत्र में 328
वर्ग किमी. में 1960 में स्थापित किया गया है।
यहां की प्रमुख विशेषता जंगली मुर्गे
एवं 'आबू एन्सिस डिकिल्पटेरा' नामक बनस्पति है। यहाँ पर उगने वाली विशेष वास को स्थानीय भाषा
में 'कारा' कहते हैं।
यहाँ के प्रमुख बन्य जीव रीछ, जरख, नीलगाय, भेड़िया, शेर, चीता, तेंदुआ, चिंकारा, चीतल, जंगली सूअर, तीतर एवं
बटेर हैं।
इस अभयारण्य में प्राकृतिक रूप से उगे
फलों के बाग पाए जाते हैं।
जवाहर सागर अभयारण्य (कोटा, बूंदी)
यहाँ बाँस के सघन बन पाए जाते हैं। (153 वर्ग किमी. क्षेत्र)
1975 ई. में स्थापित इस अभयारण्य में कोटा जिले के जवाहर सागर बांध का निकटवर्ती
क्षेत्र सम्मिलित है।
अभयारण्य का प्रमुख
उद्देश्य घड़ियालों का संरक्षण व मगरमच्छों का प्रजनन विकसित कर उनकी संख्या में
वृद्धि करना है।
यह एक जलीय अभयारण्य हैं।
यहाँ पर कोटा बाँध, गैपरनाथ का मंदिर एवं गरडिया महादेव स्थित है।
गजनेर अभयारण्य (बीकानेर)
जैसलमेर मार्ग पर बीकानेर
से 32 किमी. की दूरी पर स्थित इस अभयारण्य का प्रमुख आकर्षण
बटबड़ पक्षी है जिसको स्थानीय भाषा में रेत का तीतर एवं वैज्ञानिक नाम 'इम्पीरीयल सेण्ड गाउज' कहते हैं। अन्य महत्वपूर्ण
वन्य जीव चिंकारा, बारहसिंघा, काले हिरण एवं नीलगाय हैं
कुम्भलगढ़ अभयारण्य (राजसमंद, पाली, उदयपुर)
इस अभयारण्य की स्थापना राजसमन्द, पाली एवं उदयपुर जिलों में 1971 में की गई है। यह अभयारण्य सांभर, रीछ, भालु, बारहसिंघा एवं जंगली
भेड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। . कुम्भलगढ़ दुर्ग, जैन तीर्थ रपाकपुर एवं मूंछला महावीर इसी क्षेत्र में स्थित है।
रामगढ़ विषधारी अभयारण्य (बूंदी)
इस अभयारण्य की स्थापना बूंदी जिले के
रामगढ़ विषधारी क्षेत्र में 1982 ई. में की
गई। कुल क्षेत्रफल 307 वर्ग किमी
यहाँ का प्रमुख आकर्षण जंगली कुत्ते
हैं। इनके अलावा बाघ,नीलगाय, हिरण, बधेरा, जंगली मुर्गे आदि वन्य जीव
मिलते हैं।
सीतामाता अभयारण्य (प्रतापगढ़ एवं
चित्तौड़गढ़)
यह अभयारण्य चित्तौड़गढ़ एवं प्रतापगढ़
जिलों में स्थित है, जो 1979 ई.में 423 वर्ग किमी. क्षेत्र में स्थापित किया गया है।
यहाँ का प्रमुख आकर्षण उड़न
गिलहरियाँ (रेड पलाइंग स्कविरल पेटोरिस्टा एल्बीवेन्टर) तथा उड़न
छिपकलियाँ हैं।
यह अभयारण्य सागवान के बों के लिए जाना
जाता है। इस अभयारण्य में एण्टीलोप प्रजाति का दुर्लभ वन्य जीव 'चौसिंघा' (भेड़ल)
राज्य में सर्वाधिक संख्या में मिलता है।
बघेरा, सांभर, नीलगाय, जरख, चिकारा, बंदर, सियार, मगरमच्छ, उल्लू एवं तेंदुआ अन्य
महत्त्वपूर्ण बन्य जीव है।
उड़न गिलहरी महआ के वृक्ष
में रहती है, इनके पैर पैराशूट की आकृति
में होते हैं और ये दिन में नहीं देख सकतीं। महुआ की पत्तियाँ इनका मुख्य भोजन
है। आरामपुरा क्षेत्र में ये बहुतायत में पाई जाती हैं।
आयुर्वेद के अनुसार हिमालय के बाद
सर्वाधिक औषधियाँ इस अभयारण्य में मिली है।
यहाँ पेंगोलिन (आडा हुला) भी पाया जाता
है।
इसे 'चीतल की मातृभूमि' कहा आता
है।
यहाँ जाखन नदी पर, जाखम बांध बना है।
यहाँ पर गर्म व ठण्डे पानी
के दो झरने अजस बहते हैं।
कनक सागर पक्षी अभयारण्य, दुगारी (बूंदी)
बूंदी जिले में 'कनक सागर झील के निकटवर्ती 72 वर्ग किमी. क्षेत्र में इस
अभयारण्य की स्थापना 1987 में की गई।
यहाँ के प्रमुख वन्य जीव हंस, सारस, जलमुर्गी, गैरेट, बगुला, स्पूनविल, चमगादड़
एवं डवन है
राष्ट्रीय चम्बल घडियाल अभयारण्य
इसकी स्थापना वर्ष 1978 में राजस्थान, मध्यप्रदेश
एवं उत्तर प्रदेश राज्यों में स्थित चम्बल नदी के कुल 280
वर्ग
किमी. लम्बे क्षेत्र में की गई है।
राजस्थान में कोटा, सवाईमाधोपुर, करौली, बूंदी एवं धौलपुर जिलों की चम्बल का क्षेत्र इसमें शामिल किया जाता
है।
इस अभयारण्य में घड़ियालों
के अलावा मगरमच्छ, कलुआ, मछलियाँ एवं गंगाई डोल्फिन (शिशुमार) का संरक्षण
किया जाता है।
चम्बल के तटों पर ऊदबिलाव, नदीय टन, जरख, जंगली सूअर, रोल, गोह एवं सर्प को संरक्षण दिया जा रहा है।
मध्यप्रदेश सरकार ने इसे यूनेस्को की
विश्व धरोहर सूची में शामिल करवाने हेतु प्रयास किया है
नाहरगढ़ अभयारण्य (जयपुर)
1980 में जयपुर में स्थापित इस अभयारण्य का क्षेत्रफल लगभग 52 वर्ग
किलोमीटर है। यहाँ पर एक जैविक उद्यान भी स्थापित किया गया है। (राज्य का प्रथम
जैविक उद्यान)
यहाँ के प्रमुख वन्य जीव काला हिरण, जंगली भेड़िया, सेही, पैन्धर, स्वाहपोश
इत्यादि है। यहाँ पर शेर सफारी का विकास किया जा रहा
जमवारामगढ अभयारण्य (जयपुर)
1982 में जयपुर जिले में स्थापित इस अभयारण्य का क्षेत्रफल लगभग -300 वर्ग किमी. है।
यहाँ पर चिंकारा, काला हिरण, लोमड़ी, तेंदुआ, लंगर, स्याहपोश एवं प्रवासी जंगली चिड़ियाएँ मिलती है।
यह जयपुर रियासत का शिकारगाह रह चुका
है।
भैंसरोडगढ़
अभयारण्य (चित्तौड़गढ़) -
इस
अभयारण्य की स्थापना 1983 ई. में
चित्तौड़गढ़ जिले के लगभग 230 जर्ग किमी. क्षेत्र में गई
है।
यहाँ पर घड़ियाल, चिंकारा एवं चीतल विचरण करते हैं।
वामनी नदी इस अभयारण्य से
गुजरती है।
शेरगढ़ अभयारण्य (बारां)
बारा जिले में परवन नदी के किनारे 1983 में लगभग 99 वर्ग किमी.
क्षेत्र में स्थापित किया गया है।
यहाँ पर चीता, तेंदुआ, जंगली सूअर, चीतल एवं सांपों को संरक्षण दिया जा रहा है।
बन्द बारेठा अभयारण्य
(भरतपुर)
बयाना क्षेत्र में 1985 में लगभग 200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में
स्थापित किया गया यह अभयारण्य पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है।
फुलवारी की नाल अभयारण्य (उदयपुर)
वर्ष भर फूलों से मुखरित रहने के कारण
फुलवारी की नाल के नाम से प्रसिद्ध है।
यह अभयारण्य 1983 ई. में उदयपुर जिले के 493 वर्ग किमी.
क्षेत्र में स्थापित किया गया।
यहाँ के प्रमुख वन्य जीव वाघ, बघेरा, चीतल, सांभर एवं हिरण हैं।
मानसी-वाकल नदी इसी अभयारण्य से निकलती
है।
यह अभयारण्य महाराणा प्रताप
की कर्मभूमि रहा है।
बस्सी अभयारण्य (चित्तौड़गढ़)
इसकी स्थापना 1988 ई. में 138 वर्ग किमी. क्षेत्र में की
गई है।
यहाँ पर बाघ स्वच्छन्द
विचरण करते हैं।
यहाँ अरावली व विंध्याचल
पर्वत मालाओं का संगम स्थल माना जाता है
तेंदुए, जरख, गीदड़, जंगली बिल्ली, मगरमच्छ आदि प्रमुख रूप से
यहाँ पाए जाते हैं।
रावली टाइगढ़ वन्य जीव
अभयारण्य
इस अभयारण्य की स्थापना 1983 ई. में अजमेर, पाली तथा राजसमन्द जिलों के
463 वर्ग किमी. क्षेत्र में की गई है।
यहाँ पर बोरा, खरगोश. तेंदुए, रोल, जरख, नीलगाय एवं गीदड़ मिलते हैं
कैला देवी अभयारण्य (करौली)
1983 में स्थापित किया गया यह अभयारण्य करीली जिले के 676 वर्ग
किमी. क्षेत्र में फैला है।
धोकड़ा के वनों वाले इस
अभयारण्य में बघेरा, रीछ, जरख, सांभर एवं
चीतल मिलते हैं।
बाघ यहाँ से विलुप्त हो गए हैं।
रामसागर अभयारण्य (धौलपुर)
1955 में स्थापित किये गये इस अभयारण्य का क्षेत्रफल 34 वर्ग किमी. है
यहाँ पा गीदड़ एवं भेड़िये
बहुतायत में मिलते हैं।
यह अभयारण्य देशी-विदेशी
प्रवासी पक्षियों की शरण स्थली है।
केसरबाग अभयारण्य (धौलपुर)
इस अभयारण्य की स्थापना 1955 में कुल 15 वर्ग किमी.
क्षेत्र में की गई है।
यहाँ तेंदुए, जरख और गीदड़ों की प्रधानता है।
सज्जनगढ़ अभयारण्य (उदयपुर)
सज्जनगढ़ के निकट 5.2 वर्ग किमी. क्षेत्र में 1987 में स्थापित किया गया।
यह क्षेत्रफल की दृष्टि से
राज्य का सबसे छोटा अभयारण्य है।
यहाँ पर सांभर, चीतल, चिंकारा, नीलगाय एवं जगली सूअर मिलते हैं।
उदयपुर से 5 किमी. दूर सज्जनगढ़ महल के चारों ओर फैला है, सीमा पर पक्की दीवारें हैं। यहाँ 114 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं।
सवाई मानसिंह अभयारण्य
सवाई माधोपुर जिले में 128 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य का निर्माण 1984 में किया गया।
इसे रणथम्भौर में बढ़ते
बाघों के भविष्य के आश्रय स्थल के रूप में विकसित किया गया है।
TQ
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ऐसी अद्भुत जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए
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