हाड़ौती का पठार या लावा का पठार कहते हैं - दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग को
इसमें कुल जिले 7 आते है - कोटा, बूंदी, झालावाड़, बाराँ तथा बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ व भीलवाड़ा के कुछ क्षेत्र
यह मालवा के पठार का ही एक भाग है तथा चम्बल नदी के सहारे पूर्वी भाग में विस्तृत है।
इस क्षेत्र में राज्य का लगभग 7% भाग आता है
राज्य की कुल जनसंख्या का 11% भाग यहाँ निवास करता है।
वर्षा : 80 सेमी से 120 सेमी।
राज्य का सर्वाधिक वार्षिक वर्षा वाला क्षेत्र है - दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग
मिट्टी : काली उपजाऊ मिट्टी, लाल और कछारी मिट्टी भी पाई जाती है।
धरातल - पथरीला व चट्टानी है।
जलवायु : अति आर्द्र जलवायु प्रदेश।
फसलें - कपास, गन्ना, अफीम, तम्बाकू, चावल धनिया, मेथी, संतरा ।
वनस्पति - लम्बी घास, झाड़ियाँ, बाँस, खेर, गूलर, सालर, धोंक, ढाक, सांगवान आदि।
यह संपूर्ण प्रदेश चम्बल और उसकी सहायक काली सिंध, परवन और पार्वती नदियों द्वारा प्रवाहित है।
इसका ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है।
इसी कारण चम्बल व इसकी कई सहायक नदियाँ दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हैं।
पठारी भाग अरावली और विंध्याचल पर्वत के बीच संक्रान्ति प्रदेश (Transitional belt) है - दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग
इस भू-भाग के दो भाग हैं - विन्ध्यन कागार भूमि और दक्कन का लावा पठार।
बूंदी व मुकुन्दवाड़ा की पहाड़ियाँ इसी पठारी भाग में हैं।
यह पठारी भाग उत्तर-पश्चिम में अरावली के महान सीमाभ्रंश द्वारा सीमांकित है।
ऊपरमाल का पठार एवं मेवाड़ का पठार इसी के भाग हैं।
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