राजस्थान की जलवायु


जलवायु    

किसी भू- भाग पर लम्बी समयावधि के दौरान विभिन्न समयों में विविध वायुमंडलीय दशाओं की औसत अवस्था को उस भू-भाग की जलवायु कहते हैं । 

तापक्रम, वायुदाब, आर्द्रता, वर्षा, वायुवेग आदि जलवायु के निर्धारक घटक हैं। 

धरातल पर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और प्राणियों के वितरण को जलवायु ही निर्धारित करती है। 

भारत की जलवायु मानसूनी जलवायु है। 

राजस्थान की जलवायु मानसूनी जलवायु का ही एक अभिन्न अंग है। राज्य के पश्चिमी भाग (61% भू-भाग) में मरुस्थलीय जलवायु की दशाएँ पाई जाती हैं। 

मरुस्थलीय जलवायु राज्य के 12 मरुस्थलीय जिलों - जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, गंगानगर, जोधपुर, हनुमानगढ़, चुरु, जालौर, पाली, नागौर, सीकर एवं झुंझुनूं में पाई जाती है। इनके पड़ौसी जिलों में भी इस जलवायु का व्यापक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। 

राजस्थान के थार मरुस्थल में विश्व के अन्य मरुस्थलों की भाँति जलवायु संबंधी दशाएँ अधिक कष्टप्रद व असहनीय  नहीं है। 

राज्य के कुछ भागों में अर्द्ध शुष्क जलवायु दशाएँ दृष्टिगोचर होती हैं कुछ जिलों यथा बाराँ, झालावाड़ एव बाँसवाड़ा आदि में आर्द्ध जलवायु पाई जाती है। 

राज्य का अधिकांश भाग कर्क रेखा के उत्तर में उपोष्ण कटिबन्ध में स्थित है। 
केवल डूंगरपुर एवं बाँसवाड़ा जिले का कुछ भाग ही ऊष्ण कटिबन्ध में स्थित है। 

यहाँ शुष्क जलवायु पाई जाती है जिसमें वाष्पीकरण की मात्रा वर्षण से अधिक होती है और जल का अभाव हमेशा बना रहता है। 

राजस्थान में अरावली पर्वत श्रेणियों ने जलवायु की दृष्टि से राजस्थान को दो भागों में विभक्त कर दिया है। 

अरावली के पश्चिम में अतिशयताएँ, ग्रीष्मकालीन तीव्र प्रचण्ड धूल भरी आंधियाँ, शुष्क गर्म झुलसा देने वाली हवाएँ, आर्द्रता की कमी एवं अकाल की अवस्थाएँ मिलती है। यहाँ वर्षा की मात्रा केवल अत्यंत कम ही नहीं होती बल्कि बड़ी अनियमित भी होती है। यहाँ अधिकतम दैनिक तापान्तर पाए जाते हैं, जिनकी मात्रा 15° सेल्सियस से भी अधिक होती है।  रातें अत्यधिक ठंडी होती हैं। औसत वार्षिक तापमान लगभग 38° सेल्सियस होता है। 
अरावली पर्वत श्रृंखलाएँ अरब सागर से उठने वाली दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं के चलने की दिशाओं के अनुरूप (समानान्तर) होने के कारण मार्ग में बाधक नहीं बन पातीं। अत: मानसूनी पवन घाटियों से होकर सीधी निकल जाती है और वर्षा नहीं कर पातीं। इस प्रकार पश्चिम क्षेत्र अरावली का वृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण अत्यल्प वर्षा प्राप्त करता है। 

अरावली के पूर्वी भाग में तापक्रम में प्रायः एकरूपता, अपेक्षाकृत अधिक आर्द्रता एवं सामयिक वर्षा देखने को मिलती है। इस प्रकार इस पूर्वी भाग में आई जलवायु पाई जाती है। 
राजस्थान की जलवायु के संबंध में निम्न राजस्थानी कहावत प्रसिद्ध है  

राजस्थान की जलवायु की विशेषताएँ
राज्य की लगभग समस्त वर्षा (90% से भी अधिक) गर्मियों में (जून के अंत से जुलाई, अगस्त व मध्य सितम्बर तक) दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं से होती है। 
शीतकाल (दिसंबर-जनवरी) में बहुत कम वर्षा उत्तरी पश्चिमी राजस्थान में भूमध्य सागर से उत्पन्न पश्चिमी विक्षोभों से होती है, जिसे 'मावठ' कहते हैं। 
राज्य में वर्षा का वार्षिक औसत लगभग 58 से. मी. है। 
वर्षा की मात्रा व समय अनिश्चित व अनियमित। 
वर्षा की अपर्याप्तताः वर्षा के अभाव में आए वर्ष अकाल व सूखे का प्रकोप रहता है।
वर्षा का असमान वितरण है। 
दक्षिणी पूर्वी भाग में जहाँ अधिक वर्षा होती है वहीं उत्तरी पश्चिमी भाग में नगण्य वर्षा होती है

राजस्थान में जलवायु के आधार पर शुष्क, उपआर्द्र, आर्द्र एवं अतिआर्द्र जलवायु, चारों प्रकार की जलवायु की स्थितियाँ पाई जाती हैं।

तापमान की अतिशयताएँ
ग्रीष्म ऋतु का औसत तापमान 35° से 40° से सेल्सियस रहता है जबकि सर्दी में 12 से 17°C रहता है। 
क्षेत्रवार तापमान में अधिक अंतर देखने को मिलते हैं। 

ग्रीष्म ऋतु में दोपहर में तापमान कुछ स्थानों पर कई बार 48° से 50° से. तक पहुँच जाता है जबकि सर्दियों में हिमांक बिंदु से नीचे चला जाता है। इसके विपरीत रात्रि में बालू मिट्टी के जल्दी ठण्डी हो जाने के कारण तापमान कम हो जाते हैं और रातें सुहावनी हो जाती हैं। 

आर्द्रता में अन्तर
राज्य में हवाओं की दिशा ऋतु अनुसार परिवर्तित होती रहती है साथ ही राज्य में भिन्न-भिन्न धरातलीय उच्चावच भी पाये जाते हैं। इन सभी कारणों से यहाँ अलग-अलग ऋतुओं में तथा अलग-अलग स्थानों पर वायु की आर्द्रता में काफी अन्तर पाया जाता है। 
पश्चिम में बिलोचिस्तान के पठार से आने वाली स्वभाव से शुष्क व गर्म पवनें भी इस प्रदेश की जलवायु को प्रभावित करती हैं तथा यहाँ के वातावरण को गर्म कर देती है जिससे यहाँ आर्द्रता प्रतिशत कम हो जाता है एवं वर्षा की संभावना कम हो जाती है। 

राज्य की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक 
राज्य की अक्षांशीय स्थितिः कर्क रेखा राज्य के दक्षिणी भाग से होकर गुजरती है। अतः राज्य का अधिकांश भाग उपोष्ण कटिबंध में आने के कारण यहाँ तापान्तर अधिक पाये जाते हैं।
समुद्र तट से दूरी: समुद्र तट से अधिक दूरी होने से यहाँ की जलवायु पर समुद्र की समकारी जलवायु का प्रभाव नहीं पड़ता। अत: तापमान में महाद्वीपीय जलवायु की तरह विषमताएँ पाई जाती हैं।

धरातल
राज्य का लगभग 60-61% भू-भाग मरुस्थलीय है, जहाँ रेतीली मिट्टी होने के कारण दैनिक व मौसमी तापांतर अत्यधिक पाये जाते हैं। 
गर्मी में गर्म व शुष्क 'लू' व धूलभरी हवाएँ चलती है तथा सर्दी में शुष्क व ठण्डी हवाएँ चलती हैं जो रात के तापमान को हिमांक बिंदु से नीचे ले जाती है। 

अरावली पर्वत श्रेणी की स्थितिः अरावली पर्वतमाला की स्थिति दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर है जो कि अरब सागर से आने वाली दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी पवनों के समानान्तर है इस कारण ये मानसूनी पवनें यहाँ बिना वर्षा किए आगे उत्तरी भाग में बढ़ जाती हैं। फलतः राज्य का पश्चिमी भाग प्रायः शुष्क रहता है जहाँ बहुत कम वर्षा होती है। साथ ही बंगाल की खाड़ी से. आने वाली मानसूनी पवनें संपूर्ण गंगा-यमुना के मैदान को पार कर यहाँ पहुँचती हैं जो अपनी आर्द्रता को बहुत कम कर चुकी होती हैं तथा अरावली पर्वतमाला के बीच में पड़ने के कारण राज्य के पूर्वी भागों में हो वर्षा करती है। पश्चिमी व उत्तर-पश्चिमी भाग वृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण सूखा रह जाता है। 

समुद्र तल से ऊँचाई: राज्य के दक्षिणी एवं दक्षिणी-पश्चिमी भाग की ऊँचाई समुद्र तल से अधिक है। अत: इस भू-भाग में गर्मियों में भी शेष भागों की तुलना में तापमान कम पाया जाता है। 
माउण्ट आबू पर ऊँचाई के कारण गर्मी में भी तापमान अधिक नहीं हो पाता तथा सर्दी में जमाव बिदुं (0) से भी नीचे पहुँच जाता है। इसके विपरीत मैदानी भागों की समुद्र तल से ऊँचाई कम होने के कारण वहाँ तापमान में अंतर अधिक पाये जाते हैं।

जलवायु के आधार पर राज्य में मुख्यतः तीन ऋतुएँ पाई जाती हैं: 
ग्रीष्म ऋतु - मार्च से मध्य जून तक
वर्षा ऋतु - मध्य जून से सितम्बर तक 
शीत ऋतु - नवम्बर से फरवरी तक।

ग्रीष्म ऋतु (Summer Season)
ग्रीष्म ऋतु में सूर्य के उत्तरायण (कर्क रेखा की ओर) होने के कारण मार्च में तापमान बढ़ना प्रारंभ होने के साथ ही ग्रीया ऋतु का प्रारंभ होता है। 

मार्च में सूर्य विषुवत रेखा पर सीधा चमकता है। धीरे-धीरे वह कर्क रेखा की ओर बढ़ता है एवं तभी से राजस्थान में ग्रीष्म ऋतु की शुरूआत हो जाती है। 

सूर्य के कर्क रेखा की ओर बढ़ने पर राज्य में भी तापमान बढ़ने लगता है तथा वायुदाब भी धीरे-धीरे कम होने लगता है। 

जून में सूर्य के कर्क रेखा पर लम्बवत होने के कारण तापमान उच्चतम होते हैं। इस समय संपूर्ण राजस्थान का औसत तापमान 38° सेल्सियस के लगभग होता है 

परन्तु राज्य के पश्चिमी भागों- जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर व फलोदो तथा पूर्वी भागों व धौलपुर में उच्चतम तापमान 45°-50° सेल्सियस तक पहुँच जाते हैं। इससे यहाँ निम्न वायुदाब का केन्द्र उत्पन्न हो जाता है परिणामस्वरूप यहाँ धूलभरी आँधियाँ चलती हैं। 

सर्वाधिक आँधियाँ गंगानगर जिले में आती हैं। 
धरातल के अत्यधिक गर्म होने एवं मेघरहित आकाश में सूर्य की सीधी किरणों की गर्मी के कारण पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वाली तेज गर्म हवायें, जिन्हें यहाँ 'लू' कहते हैं चलती हैं। 

तेज गर्मी के कारण स्थानीय वायु भँवर बन जाते हैं जो रेतभरी आँधियों के साथ मिलकर भयंकर रूप धारण कर लेते है। इन्हें स्थानीय रूप से 'भभूल्या' कहते हैं। 

यहाँ चलने वाली आँधियों से कहीं-कहीं वर्षा भी हो जाती है। अरावली पर्वतीय क्षेत्र में ऊँचाई के कारण अपेक्षाकृत कम तापमान (30° सेल्सियस) रहता है। रात्रि में मरुस्थलीय रेत के शीघ्र ठण्डी हो जाने के कारण तापमान 14-15°C तक रह जाता है। जिससे गर्मी के मौसम में भी इस मरु प्रदेश की रातें शीतल एवं सुहावनी होती है। 

मरुस्थलीय क्षेत्र में दैनिक तापांतर अधिक 32-33° तक पाये जाते हैं। ग्रीष्म ऋतु में राज्य में आर्द्रता कम पाई जाती है। दोपहर के समय यह लगभग 10% तक या इससे भी कम रह जाती है।

वर्षा एवं पवनें
मानसूनी पवनें तीव्र गर्मी के कारण राजस्थान के उत्तरी व पश्चिमी क्षेत्रों में आगे चली जाती हैं। इसी कारण राज्य के पश्चिमी भाग में औसतन 20 सेमी. ही वर्षा हो पाती है। राज्य में सर्वाधिक वर्षा (80 से 100 सेमी वार्षिक) दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग में होती है। 
राज्य के पूर्वी मैदानी भाग में वर्षा का सामान्य औसत 50 से 75 सेमी, वार्षिक होता है।

ग्रीष्म ऋतु में राजस्थान में सूर्य की तीव्र किरणों, अत्यधिक तापमान, शुष्क व गर्म हवाओं, वाष्पीकरण की अधिकता के कारण आर्द्रता की कमी हो जाती है। कभी-कभी चक्रवातों के कारण या स्थानीय संवहनीय हवाओं के कारण कहीं-कहीं छुट-पुट बौछारें हो आद्रता में कुछ वृद्धि हो जाती है। 
कभी-कभी राज्य के कुछ भागों में चक्रवातीय वर्षा के साथ-साथ ओलावृष्टि भी हो जाती है। परन्तु कुल मिलाकर ग्रीष्म ऋतु के दौरान इस प्रदेश में मौसम असहनीय रहता है। दिन में तेज गर्मी व गर्म हवाओं  के कारण सड़कें सूनी सी हो जाती हैं। 

(2) वर्षा ऋतु
मध्य जून के बाद राजस्थान में मानसूनी हवाओं के आगमन से वर्षा होने लगती है, फलस्वरूप तापमान में कुछ कमी हो जाती है परन्तु आर्द्रता के कारण मौसम ऊमस भरा हो जाता है।

इस समय राज्य के अधिकांश भागों का सामान्य तापमान 18° से 30° से.ग्रेड हो जाता है।

अप्रैल से जून तक के अत्यधिक तापमान की वजह से वायुदाब कम होने के कारण उत्तर-पश्चिम एवं पश्चिमी भारत में एक न्यून वायुदाब केन्द्र उत्पन्न हो जाता है जबकि हिंद महासागर एवं बंगाल की खाड़ी में अथाह जल की उपस्थिति से कम तापमान के कारण वायुदाब अधिक होता है। 
पवनें सदैव अधिक वायुदाब वाले स्थानों से निम्न वायुदाब वाले स्थानों की ओर बहती हैं। फेरल के नियम के अनुसार इस ऋतु में पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपने प्रवाह की दिशा के दाहिनी ओर मुड़ जाती हैं। इस समय विषुवत रेखा के दोनों ओर शांत हवा की पेटी ''डोलड्रम' (Doldrum) पर व्यापारिक हवाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती हैं जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग के अत्यधिक न्यून दाब केन्द्रों की ओर आकृष्ट होकर अपने प्रवाह की दिशा के दाहिनी ओर मुड जाती हैं तथा इससे इनके प्रवाह की दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर हो जाती हैं। इसलिए इन्हें दक्षिण-पश्चिमी हवाएँ कहते हैं। 
विषुवत्तीय क्षेत्र के महासागरों के ऊपर होकर आने के कारण ये हवाएँ आर्द्रता से परिपूर्ण हो जाती हैं। इसी कारण ये मानसूनी पवनें कहलाती हैं। चूकि ये जल भरी हवाएँ हर वर्ष वर्षा ऋतु में ही प्रवाहित होती हैं, अत: इन्हें दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाएँ (South-West Monsoon) कहते हैं। 
भारतीय महाद्वीप की त्रिभुजाकार आकृति के कारण ये दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनें दो भागों में बँट जाती है- 
1 बंगाल की खाड़ी की मानसूनी पवनें एवं 
2 अरब सागरीय मानसूनी पवनें। 
राज्य की लगभग अधिकांश वर्षा, इन्हीं मानसूनी पवनों की एक शाखा 'बंगाल की खाड़ी के मानसून' से होती है। यहाँ आने वाली बंगाल की खाड़ी की मानसूनी पवनें गंगा-यमुना के सम्पूर्ण मैदान को पार कर यहाँ आती हैं। अत: यहाँ आते-आते उनकी आर्द्रता बहुत कम रह जाती है इस कारण राजस्थान में वर्षा की कमी रह जाती है। अरावली पर्वत होने के कारण ये राज्य के पूर्वी व दक्षिणी-पूर्वी भाग में ही वर्षा करती हैं तथा राज्य के उत्तर व पश्चिमी भाग में अरावली का वृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण बहुत कम मात्रा में वर्षा कर पाती हैं। इस मानसूनी हवाओं को यहाँ 'पुरवाई (पुरवैया) कहते हैं। 

दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी पवनों की दूसरी शाखा अरब सागर की मानसूनी हवाएँ तीन शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं। 
प्रथम शाखा केरल के मालाबार तट पर वर्षा करती है। 
दूसरी शाखा नर्मदा घाटी की तरफ प्रवाहित होकर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश व कर्नाटक के कुछ भागों में वर्षा करती है। 
तीसरी शाखा कच्छ सौराष्ट्र में प्रवेश कर अरावली पहाड़ियों के समानान्तर आगे बढ़ जाती है तथा हिमाचल में धर्मशाला स्थान के आसपास हिमालय के पर्वतों से टकराकर वहाँ वर्षा करती हुई वापस लौट जाती हैं तथा लौटते हुए वर्षा करती हुई राजस्थान में आती है तथा राज्य के उत्तरी-पश्चिमी भागों में थोड़ी बहुत वर्षा करती हैं। ये हवाएँ अरावली पर्वत के समानान्तर चलने के कारण अवरोधक के अभाव में यहाँ बहुत कम वर्षा कर आगे बढ़ जाती हैं।

राज्य में वर्षा की अवधि अपेक्षाकृत कम है। 
यहाँ मानसून सामान्यत: जून माह के अंतिम सप्ताह में प्रवेश करता है तथा अगस्त माह तक विदा भी हो जाता है। 
सितम्बर में यहाँ वर्षा बहुत कम होती है। 
वर्ष भर की वर्षा का 90 प्रतिशत भाग जुलाई-अगस्त में ही प्राप्त होता है। 
शीत ऋतु में कभी-कभी पश्चिमी विक्षोभों से वर्षा होती है जिसे हम 'मावठ' कहते हैं।
राज्य में वर्षा का वितरण: राजस्थान में वर्षा का सामान्य औसत 57-58 सेमी. है परन्तु यह सभी क्षेत्रों में समान नहीं है। कुछ क्षेत्रों में वर्षा 100 सेमी से भी अधिक हो जाती है तो कुछ क्षेत्रों में 20 सेमी. से भी कम। 

वर्षा की असमानता के आधार पर हम राज्य को निम्न भागों में बाँट सकते   हैं
अधिक वर्षा वाले क्षेत्र 
मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र 
न्यून वर्षा वाले क्षेत्र 
वर्षा के अभाव वाले क्षेत्र

राजस्थान को अरावली पर्वतमाला की मुख्य जल विभाजक रेखा के सहारे-सहारे गुजरने वाली 50 सेमी समवर्षा रेखा लगभग दो भिन्न-भिन्न जलवायु प्रदेशों में विभक्त करती है। 

इस समवर्षा (50 सेमी) रेखा के पश्चिमी भाग में वर्षा का अभाव न्यूनता, सूखा, आर्द्रता की कमी, वनस्पति की न्यूनता एवं जनसंख्या घनत्व में कमी पाई जाती है। इस पश्चिमी रेगिस्तानी भू-भाग में वर्षा का औसत 50 सेमी. से भी कम 10-20 सेमी. तक रहता है। 

इसके विपरीत इस समवर्षा रेखा के पूर्वी भाग में अधिक आर्द्रता, अधिक वर्षा, कृषि की अपेक्षाकृत ठीक स्थिति एवं आबादी की गहनता आदि विशेषताएँ पाई जाती है। सिरोही का पहाड़ी भू-भाग, दक्षिण पश्चिम राजस्थान एवं दक्षिण-पूर्वी पठारी भाग में वर्षा का औसत 100 सेमी से भी अधिक रहता है। 

वर्षा की मात्रा राज्य में उत्तर-पूर्व से उत्तर-पश्चिम एवं पूर्व से पश्चिम की ओर कम होती जाती है। पिछले कुछ वर्षों से राज्य में पश्चिमी भाग में भी वर्षा की मात्रा बढ़ी है तथा कभी-कभी वहाँ बाढ़ के हालात भी बन जाते हैं। जबकि मेवाड़ क्षेत्र में वर्षा की मात्रा पूर्व की अपेक्षा कम होने लगी है।

मानसून के प्रत्यावर्तन का समय
23 सितम्बर को सूर्य विषुवत रेखा पर लम्बवत् होता है जो इसके बाद दक्षिणायन होकर मकर रेखा की ओर खिसकने लगता है जिससे उत्तरी गोलार्द्ध में तापमान कम होने लगता है एवं दक्षिण गोलार्द्ध में तापमान में वृद्धि होने लगती है। अक्टूबर से दिसम्बर के प्रारम्भ तक यह स्थिति रहती है। इस समय भारतीय महाद्वीप में मानसून का प्रत्यावर्तन का समय होता है। सितम्बर में सूर्य के दक्षिणायन होने के साथ ही वायुमण्डलीय दशाओं में परिवर्तन हो जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में बना न्यून दाब क्षेत्र कमजोर हो जाता है। तापमान तुलनात्मक दृष्टि से कम होने लगता है। इसी समय हिन्द महासागरीय क्षेत्रों में न्यून दाब केन्द्र बन जाते हैं इसके परिणामस्वरूप मानसूनी हवाएँ जो दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर चलती थी, अपनी दिशा परिवर्तित कर विपरीत दिशा अर्थात् उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर कर लेती हैं। इसीलिए इस काल को लौटते हुए मानूसन का काल (मानसून के प्रत्यावर्तन का समय) कहते हैं। यह काल अक्टूबर से नवम्बर माह के अंत तक रहता है।

(3) शीत ऋतु
22 दिसम्बर को सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा पर लम्बवत चमकने लगता है। फलस्वरूप उत्तरी गोलार्द्ध में तापमान में अत्यधिक कमी हो जाती है। राजस्थान के कुछ रेगिस्तानी क्षेत्रों में रात्रि का तापमान शून्य या इससे भी कम हो जाता है। दिन के तापमान भी बहुत कम हो जाते हैं। कई बार तापमान के शून्य या शून्य से नीचे जाने पर फसलों पर पाला पड़ जाने से वे नष्ट हो जाती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में यह शीत ऋतु का समय होता है। 

राजस्थान में दिसम्बर से फरवरी अंत तक का काल शीत ऋतु का कालं होता है। इस ऋतु में सबसे अधिक ठण्ड, न्यूनतम तापमान एवं शीत लहर का प्रकोप रहता है । इस ऋतु में उत्तरी एवं मध्य एशिया में सभी जगह तापमान बहुत कम होने से उच्च वायुदाब केन्द्र विकसित हो जाते हैं तथा दूसरी ओर हिन्द महासागर में निम्न वायुदाब केन्द्र बन जाते हैं फलस्वरूप हवाएँ उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की (उच्च वायुदाब केन्द्र से निम्न वायुदाब केन्द्र की ओर) चलने लगती हैं। मध्य एशिया एवं भूमध्य सागरीय क्षेत्रों से आने वाली ये हवाएँ अपने साथ कुछ आर्द्रता भी लाती हैं। शीत ऋतु में राजस्थान में कभी-कभी भूमध्य सागर से उठे इन पश्चिमी वायु विक्षोभों (शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों)के कारण वर्षा हो जाती है, जिसे 'म्रावट '/ मावठ कहते हैं। यह वर्षा रबी की फसल के लिए बहुत लाभदायक होती है। इस ऋतु में कभी-कभी उत्तरी भाग से आने वाली ठण्डी हवाएँ शीत लहर का प्रकोप डालती है। 

यहाँ जनवरी माह में सर्वाधिक सर्दी पड़ती है। जनवरी माह में राज्य के सभी क्षेत्रों में तापमान समान नहीं रहता है। उत्तरी एवं उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों में जहाँ कई बार तापमान शून्य डिग्री से नीचे तक पहुँच जाता है वहीं दक्षिणी राजस्थान में तापमान अपेक्षाकृत अधिक रहता है। कई बार हिमालयी क्षेत्रों में बर्फ गिरने के कारण अत्यधिक शीत लहरें यहाँ आकर तापमान को शून्य से भी नीचे गिरा देती हैं जिससे यहाँ 'पाला' (Frost) पड़ने के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। 
शीत ऋतु में इस प्रदेश में आर्द्रता बहुत कम रहती है। प्रातः काल निम्न तापमान के कारण कई बार घना कोहरा छा जाता है। 
शीत ऋतु दिसम्बर से फरवरी तक प्रभावी रहती है। 

राज्य में कम वर्षा के कारण
बंगाल की खाड़ी का मानसून राजस्थान में प्रवेश करने से पूर्व गंगा के मैदान में अपनी आर्द्रता लगभग समाप्त कर चुका होता है। 
अरब सागर से आने वाली मानसूनी हवाओं की गति के समानान्तर ही अरावली पर्वत श्रेणियाँ हैं, अतः हवाओं के बीच अवरोध न होने से वे बिना वर्षा किये आगे बढ़ जाती हैं। 
मानसूनी हवाएँ जब रेगिस्तानी भाग पर आती हैं तो अत्यधिक गर्मी के कारण उनकी आर्द्रता घट जाती है, जिससे वे वर्षा नहीं कर पाती। 
इसके अलावा उन्हें रोकने के लिए कोई ऊँची पर्वतमाला अवरोध उत्पन्न नहीं करती, फलत: वे बिना वर्षा किये ऊपर चली जाती है।

जलवायु प्रदेश 
जलवायु प्रदेश वे क्षेत्र विशेष हैं, जिनमें जलवायु के सभी तत्त्वों के लक्षण वर्णित क्षेत्र में सामान्यतः समान रहते हैं। 
वर्षा, तापमान, वाष्पीकरण, वनस्पति आदि आधारों पर विभिन्न भूगोलवेत्ताओं ने राज्य के जलवायु प्रदेशों को विभाजित किया है। 

भारतीय मौसम विभाग ने तापक्रम, वर्षा व आर्द्रता के आधार पर राज्य को निम्न जलवायु प्रदेशों में बाँटा है- 
शुष्क जलवायु प्रदेश (उष्ण कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेश :Arid Climatic Region):
अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश ' (Semi-Arid Climatic Region): 
उपआर्द्र जलवायु प्रदेश (Sub Humid Climatic Region) : 
आर्द्र जलवायु प्रदेश (Humid Climatic Region): 
अति आर्द्र जलवायु प्रदेश (Very Humid Climatic Region): 

शुष्क जलवायु प्रदेश (उष्ण कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेशArid Climatic Region

क्षेत्र : जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर, दक्षिणी गंगानगर, हनुमानगढ़ तथा बीकानेर व जोधपुर का पश्चिमी भाग। 
औसत वर्षा : 0-20 से. मी. तथा औसत तापमान ग्रीष्म ऋतु में 34°- 40° सेल्सियस तथा शीत ऋतु में 12-16° सेल्सियस पाया जाता है। यहाँ वाष्पीकरण की दर वर्षा की मात्रा से अधिक रहती है। 
यह महान् भारतीय मरुस्थल का पश्चिमी क्षेत्र है। गर्मियों में दिन का तापमान 48°-49° सेल्सियस तथा सर्दियों में रात्रि में न्यूनतम तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। अतः दैनिक एवं वार्षिक तापान्तर अधिक पाये जाते हैं। 
यह भाग प्राकृतिक वनस्पति रहित प्रदेश है। वनस्पति बहुत न्यून मात्रा में कँटीली झाड़ियों के रूप में मिलती है। 
कठोर व शुष्क जलवायु, बालुकास्तूपों से परिपूर्ण। 
गर्म व शुष्क जलवायु के कारण रेत भरी आंधियाँ व लू चलती हैं। 

अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश ' (Semi-Arid Climatic Region)
क्षेत्र : चूरू, गंगानगर, हनुमानगढ़, द. बाड़मेर, जोधपुर व बीकानेर का पूर्वी भाग तथा पाली, जालौर, सीकर, नागौर व झुंझुनूं का पश्चिमी भाग।
औसत वर्षा : 20-40 से. मी. व औसत तापमान ग्रीष्म ऋतु में 30°-36° सेल्सियस तथा शीत ऋतु में 10°-17° सेल्सियस होता है। 
वर्षा अनियमित, अनिश्चित एवं असमान होती है। 
कांटेदार झाड़ियां व घास की प्रधानता। कृषि व पशुपालन मुख्य कार्य।
वनस्पति के रूप में आक,खेजड़ी, रोहिड़ा, बबूल, कँटीली झाड़ियाँ, फोग आदि वृक्ष, सेवण व लीलाण घास आदि अर्द्धमरुस्थलीय वनस्पति पाई जाती है। 
आंतरिक प्रवाह क्षेत्र होने के कारण खारे पानी की झीलें पाई जाती हैं। 

उपआर्द्र जलवायु प्रदेश (Sub Humid Climatic Region) 
क्षेत्र : अलवर, जयपुर, अजमेर जिले, पाली, जालौर, नागौर व झुंझुनूं का पूर्वी भाग तथा टोंक, भीलवाड़ा व सिरोही का उत्तरी पश्चिमी भाग। 
औसत वर्षा : 40-60 से. मी. तथा औसत तापमान ग्रीष्म ऋतु में 28°-34° सेल्सियस तथा शीत ऋतु में 12°-18° सेल्सियस रहता है। 
पतझड़ वाली वनस्पति जैसे- नीम, बबूल, आम, आँवला, खेर, हरड़, बहड़ आदि वृक्ष पाये जाते हैं। यहाँ जौ, चना, गेहँ, सरसों, मूंगफली आदि की खेती होती है। 
स्टेपी प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। 

आर्द्र जलवायु प्रदेश (Humid Climatic Region)
क्षेत्र : राज्य का पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र आर्द्र जलवायु क्षेत्र है। 
इसमें शामिल जिले हैं-भरतपुर, धौलपुर, कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, उ.पू. उदयपुर, द.पू. टोंक तथा चित्तौड़गढ़ का उत्तरी भाग। 
औसत वर्षा :60-80 से. मी. तथा औसत तापमान ग्रीष्म ऋतु में 32°-35° सेल्सियस तथा शीत ऋतु में 14°-17° सेल्सियस होता है। 
सघन वनस्पति पाई जाती है। नीम, इमली, आम, शहतूत, गुलाब, गुग्गल, जामुन, पीपल, बरगद, बेर, धोकड़ा आदि वृक्ष बहुतायत से मिलते हैं। 
वनस्पति से धनी इस प्रदेश में पतझड़ वाले वन व वृक्ष पाये जाते हैं। 
मुख्य रूप से चावल, गन्ना, ज्वार, सरसों, मिर्च, अरहर व चना आदि की कृषि की जाती है। 

अति आई जलवायु प्रदेश (Very Humid Climatic Region) 
क्षेत्र : इस जलवायु प्रदेश में द.पू. कोटा, बारा, झालावाड़, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, द.पू. उदयपुर व माउन्ट आबू क्षेत्र हैं। 
औसत वर्षा : 80-150 से. मी. तथा औसत तापमान ग्रीष्म ऋतु में 30°-34° सेल्सियस (माउन्ट आबू पर 25°C) तथा शीतऋतु में 12°-15° सेल्सियस (माउन्ट आबू पर 9-10°C) रहता है। 
इस प्रदेश में वर्षा का औसत सर्वाधिक रहता है। 
घनी मानसूनी सवाना प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। आम, शीशम, सागवान, शहतूत, बाँस, जामुन, खेर आदि वृक्षों की बहुतायत है। यह जलवायु प्रदेश प्राकृतिक वनस्पति की दृष्टि से बहुत धनी है। 

कोपेन के वर्गीकरण के आधार पर राज्य के जलवायु प्रदेशः
प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता डॉ. ब्लादिमीर कोपेन ने वनस्पति के आधार पर विश्व को अनेक जलवायु प्रदेश में विभाजित किया है। उनके वर्गीकरण के आधार पर राज्य को निम्न जलवायु प्रदेशों में बाँटा जा सकता हैं - 
AW (या उष्ण कटिबंधीय आर्द्र) जलवायु प्रदेश
क्षेत्र : बाँसवाड़ा जिला एवं डूंगरपुर जिले का दक्षिणी भाग।
वार्षिक वर्षा एवं तापमान : वार्षिक औसत वर्षा 80 सेमी. या अधिक । 
ग्रीम ऋतु में औसत तापमान 30°--34° सेन्टीग्रेड एवं शीतऋतु में 120 से 15° सेण्टीग्रेड तक 
वनस्पति : घनी प्राकृतिक वनस्पति । 
मानसूनी पतझड़वन एवं सवाना तुल्य घास के मैदानों के समान। 
BShw (या अर्द्ध शुष्क या स्टेपी) जलवायु प्रदेश
क्षेत्र : बाड़मेर, जालौर, जोधपुर, नागौर, चुरू, सीकर, झुंझुनूं आदि जिले।
वर्षा व तापमान : वार्षिक वर्षा 20-40 सेमी., ग्रीष्म ऋतु में 32° से 35° से. एवं शीत ऋतु में 5-10° सेन्टीग्रेड। 
काँटेदार झाड़ियाँ एवं घास व मुख्यत: स्टेपी प्रकार की वनस्पति। 
BWhw (या उष्णकटिबंधीय शुष्क) जलवायु प्रदेश 
क्षेत्र : उत्तरी पश्चिमी जोधुपर जिला, पश्चिमी बाड़मेर, जैसलमेर, पश्चिमी बीकानेर एवं गंगानगर जिले का दक्षिणी-पश्चिमी भाग। 
यह विशाल शुष्क मरुस्थलीय भाग है। 
वर्षा व तापमान : वर्षा का वार्षिक औसत 10-20 सेमी. तथा तापमान ग्रीष्म ऋतु में 35° सेण्टीग्रेड से अधिक तथा सर्दी में 120-18° सेण्टीग्रेड। 
इस क्षेत्र की जलवायु कठोर व शुष्क है यह जलवायु प्रदेश वनस्पति विहीन, बालुका स्तूपों से ढंका हुआ तथा आर्द्रता एवं जल की कमी का क्षेत्र है। 
इस प्रदेश में वाष्पीकरण की दर तीव्र होती है। 
Cwg (या उप आई) जलवायु प्रदेश 
क्षेत्र : अरावली पर्वतमाला के दक्षिणी-पूर्वी एवं पूर्वी भाग जैसे जयपुर जिले का कुछ भाग, अलवर, भरतपुर, सवाई माधोपुर, दौसा, करौली, कोटा आदि जिले। 
वर्षा व तापमान : इस जलवायु प्रदेश में वार्षिक वर्षा का औसत 60-80 सेमी. रहता है। ग्रीष्म ऋतु में तापमान 32°-38°सेण्टीग्रेड तथा शीत ऋतु में 14°-16° सेण्टीग्रेड।
 इस क्षेत्र में चम्बल के बीहड़ पाये जाते हैं। 

थार्नवेट का वर्गीकरण 
कोपेन की तरह ही थानवेट ने वनस्पति, वाष्पीकरण की मात्रा, वर्षा एवं तापमान के मौसमी एवं मासिक वितरण को आधार लेते हुए जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण किया है। इसके वर्गीकरण के आधार पर राजस्थान में निम्न जलवायु प्रदेश पाये जाते हैं

CAW या उप आर्द्र (शुष्क एवं आर्द्र शुष्क) जलवायु प्रदेश :
क्षेत्र : दक्षिण-पूर्वी उदयपुर, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, झालावाड़, बाराँ एवं कोटा। 
DA'w या उष्ण आर्द्र (अर्द्ध शुष्क) जलवायु प्रदेश : 
क्षेत्र : सिरोही, पूर्वी जालौर, अजमेर, पाली दी, चित्तौड़गढ़, सवाई माधोपुर, जयपुर, अलवर, भीलवाड़ा, टोंक, भरतपुर, करौली, सीकर, दौसा, झुंझुनूं आदि जिले। 
DB'w या अर्द्ध शुष्क (मिश्रित) जलवायु प्रदेश :
क्षेत्र : गंगानगर, चुरू, बीकानेर एवं हनुमानगढ़ जिलों के अधिकांश भाग। 
EAd या उष्ण शुष्क (या मरुद्भिद्) जलवायु प्रदेश :
क्षेत्र: बाड़मेंर, जैसलमेर, जोधपुर जिलों का पश्चिमी भाग एवं दक्षिण-पूर्वी बीकानेर जिला आदि

ट्विर्थी का वर्गीकरण 
प्रो. ट्रिवार्थी ने डॉ. कोपेन के वर्गीकरण को संशोधित कर नया जलवायु वर्गीकरण प्रस्तुत किया है जो अधिक सरल एवं आसानी से समझने योग्य है। 
इनके वर्गीकरण के आधार पर राजस्थान में निम्न जलवायु प्रदेश हैं

NAW (उष्ण कटिबंधीय आर्द्र) जलवायु प्रदेश :
क्षेत्र : बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, पूर्वी उदयपुर जिला तथा चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा व कोटा जिले का दक्षिणी भाग। 
Bsh (उष्ण एवं आर्द्ध उष्ण कटिबंधीय स्टेपी तुल्य) जलवायु प्रदेश : 
क्षेत्र : राजसमंद, सिरोही, उदयपुर, जालौर, दक्षिण-पूर्वी बाड़मेर, पाली, जोधपुर, अजमेर, चुरू, झुंझुनूं, नागौर, सीकर, गंगानगर, बीकानेर आदि जिले आते हैं। 
Bwh (शुष्क मरुस्थली) जलवायु प्रदेश : 
क्षेत्र : राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी एवं पश्चिमी जिले यथा गंगानगर का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, बीकानेर, जैसलमेर, उत्तर पश्चिमी बाड़मेर आदि जिलों का पाकिस्तानी सीमा से सटा हुआ क्षेत्र। 
OCaw (अर्द्ध उष्ण आर्द्र) जलवायु प्रदेश : 
क्षेत्र : इस जलवायु प्रदेश में राज्य के पूर्वी एवं दक्षिणी भाग के जिले यथा जयपुर के कुछ भाग, दौसा, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर एवं कोटा जिले आदि शामिल हैं।




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Milan Tomic

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