कृषि (Agriculture)
कृषि
ग्रामीण भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ है।
राजस्थान में लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है।
यहाँ कुल कामगारों में से 62 प्रतिशत कामगार जीवनयापन के लिए कृषि व संबद्ध क्षेत्र पर निर्भर
हैं।
कृषि व सम्बद्ध क्षेत्र में फसल, पशुधन, मत्स्य एवं
वानिकी सम्मिलित है।
राज्य अर्थव्यवस्था में कृषि एक
मेरुदण्ड की तरह है।
सतही जल संसाधनों की कमी (देश के जल
संसाधनों का मात्र 1.16%) होने के
कारण यहाँ कृषि मुख्यतः वर्षा पर निर्भर है।
राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 50-60% कृषि के अधीन है, जबकि प्रदेश के कुल कृषित क्षेत्रफल का लगभग 30 प्रतिशत भाग ही सिंचित है।
वर्षा पर अधिक निर्भरता के कारण राज्य
में बोये जाने वाले (कृषित) क्षेत्र तथा कृषि उत्पादन में वर्ष-दर-वर्ष उतार-चढ़ाव
होते रहते हैं। इन्हीं कारणों से राज्य में कृषि को 'मानसून का जुआ' कहा जाता
है।
राज्य का उत्तर-पश्चिमी भाग, जो कुल क्षेत्रफल का लगभग 61% भाग है, मरुस्थलीय
एवं अर्द्धमरुस्थलीय क्षेत्र है, जहाँ
सिंचाई हेतु केवल वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता है। यहाँ के कुछ भागों में अब
इंदिरा गाँधी नहर से सिंचाई प्रारंभ हुई है।
राज्य का शेष पूर्वी एवं दक्षिणी भाग जो
कुल क्षेत्रफल का लगभग 39% है, अरावली पर्वतमाला के पूर्व में स्थित है तथा अत्यधिक उपजाऊ है, परन्तु भू-जल स्तर के नीचे चले जाने के कारण यहाँ भी कुओं से
सिंचाई में असुविधा हो रही है।
राज्य में कृषि की विशेषताएँ:
कृषि प्राथमिक रूप से वर्षा पर निर्भर
है एवं सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण प्रति हैक्टेयर उत्पादकता कम है।
राज्य में सर्वाधिक सिंचाई कुओं व
नलकूपों से होती है।
90 प्रतिशत वर्षा मानसून सत्र में होती है जिसका क्षेत्रीय वितरण
भी अत्यधिक असमान है एवं मानसून की अवधि भी कम है क्योंकि मानसून देर से आता है
एवं जल्दी चला जाता है।
राज्य में कृषि विकास के समक्ष सबसे
बड़ी बाधा वर्षा की अनिश्चितता एवं कमी तथा सिंचाई सुविधाओं की अपर्याप्तता है।
राज्य में वार्षिक औसत वर्षा 575 मिमी है, जिसमें से
लगभग 532 मिमी. वर्षा जून से सितम्बर के मध्य
होती है।
पूर्वी राजस्थान में औसत वर्षा लगभग 704 मिमी है और पश्चिमी राजस्थान में लगभग 310 मिमी है, जो वर्षा
के व्यापक अंतर को दर्शाता है।
राजस्थान में चंबल और माही के अलावा कोई
भी अन्य बारहमासी नदी नहीं है।
राज्य में भू-जल स्थिति बहुत विषम है।
इसकी स्थिति पिछले दो दशकों में बहुत तेजी से बिगड़ी है। राज्य के 249 खंडों में से अधिकांश 'डार्क जोन' में हैं तथा केवल 40 खंड
सुरक्षित श्रेणी में हैं।
सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण अधिकांश
क्षेत्रों में वर्ष में केवल एक ही फसल ली जाती है।
राजस्थान में भारत के कुल कृषित
क्षेत्रफल का लगभग 11 प्रतिशत है
परन्तु सतही जल की उपलब्धता देश की मात्र 1.16 प्रतिशत ही
है।
सूक्ष्म सिंचाई (Micro Irrigation): भारत में 77.75 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सूक्ष्म
सिंचाई की जाती है। राजस्थान 16.85 लाख
हैक्टेयर क्षेत्र में सूक्ष्म सिंचाई के साथ देश में प्रथम स्थान पर है।
राज्य के कुल कृषित क्षेत्रफल का 2/3 भाग (लगभग 65 प्रतिशत)
खरीफ के मौसम में बोया जाता है तथा शेष 1/3 भाग (लगभग 35%) रबी में बोया जाता है।
राजस्थान में तिलहन फसलों में सर्वाधिक
उत्पादन राई व सरसों का, अनाज में
गेहूँ का एवं दालों में सर्वाधिक चने का होता है
जबकि दालों में सर्वाधिक कृषि क्षेत्रफल
मोठ का है तथा तिलहनों में सर्वाधिक क्षेत्र पर राई व सरसों बोई जाती है।
राज्य में बंजर व व्यर्थ भूमि का
सर्वाधिक क्षेत्र जैसलमेर में है।
राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 6.7 प्रतिशत भूमि बंजर व व्यर्थ भूमि है।
बीहड़ भूमि का सर्वाधिक क्षेत्र धौलपुर
में है।
राज्य में खरीफ फसलों में सर्वाधिक
क्षेत्र बाजरे का व रबी फसलों में सर्वाधिक क्षेत्र गेहूँ का रहता है।
राज्य में कुल कृषित क्षेत्रफल सर्वाधिक
बाड़मेर जिले में तथा न्यूनतम राजसमंद जिले में है।
राज्य में खरीफ फसल उत्पादन मुख्यत:
वर्षा पर निर्भर करता है।
राज्य का उत्तर-पश्चिमी भाग जो कुल
क्षेत्रफल का लगभग 61 प्रतिशत है, मरुस्थलीय या अर्द्ध मरुस्थलीय है और वर्षा पर निर्भर है।
राज्य का दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र, जो कुल क्षेत्रफल का लगभग 39 प्रतिशत है, उपजाऊ है।
इस क्षेत्र की मिट्टी काली या बलुई दोमट है।
प्रदेश के कोटा व उदयपुर खंड काठिया
गेहूँ की खेती के लिए बहुत उपयुक्त क्षेत्र है।
राजस्थान को कृषि जलवायवीय दृष्टि से निम्न 10 प्रखंडों में बाँटा
गया है –
1 शुष्क मैदानी पश्चिमी क्षेत्र (IA) - बाड़मेर एवं जोधपुर जिले का कुछ हिस्सा।
2 सिंचित मैदानी उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र
(IB) - श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़।
3 अत्यधिक शुष्क आंशिक सिंचित क्षेत्र (IC) - जैसलमेर, बीकानेर एवं चूरू।
4 आंतरिक जल निकासी शुष्क क्षेत्र (IIA) - नागौर, सीकर, झुंझुनूं
एंव चूरू।
5 लूनी बेसिन का अन्तवर्ती (Transitional) मैदानी क्षेत्र (IIB)- जालौर, पाली एवं सिरोही तथा जोधपुर जिले का कुछ भाग।
6 अर्द्ध शुष्क पूर्वी मैदानी क्षेत्र (IIIA) - जयपुर, अजमेर, दौसा एवं
टोंक।
7 बाढ़ प्रवण पूर्वी मैदान (IIIB) - अलवर, भरतपुर, धौलपुर एवं
सवाईमाधोपुर।
8 उप आर्द्र दक्षिणी मैदानी क्षेत्र IVA) - भीलवाड़ा, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, उदयपुर व सिरोही के कुछ भाग।
9 आर्द्र दक्षिणी मैदानी क्षेत्र (IVB) - बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़
एवं उदयपुर का कुछ भाग।
10 आर्द्र दक्षिणी पूर्वी मैदानी
क्षेत्र (V) -
कोटा, झालावाड़, बून्दी एवं
बारां।
राज्य की प्रमुख फसलें
(1) खरीफ (सावणु),
(2) रबी (उन्हालू) व
(3) जायद फसल
खरीफ (सावणु)
ये फसलें जून-जुलाई में बोई जाती हैं व
सितम्बर-अक्टूबर में काटी जाती हैं।
मुख्य खरीफ फसलें : चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, अरहर, उड़द, मूंग, चवला, मोठ, मूंगफली, अरण्डी, तिल, सोयाबीन, कपास, गन्ना, ग्वार आदि।
खरीफ की फसलें राज्य के कुल कृषि
क्षेत्र का लगभग 60-65 प्रतिशत
में बोई जाती हैं।
इनमें सर्वाधिक क्षेत्र (लगभग 65 प्रतिशत) खाद्यान्न का होता है।
खाद्यान्नों में बाजरे का कृषित
क्षेत्रफल सर्वाधिक है एवं दलहन में मोठ का।
राज्य में लगभग 90 प्रतिशत खरीफ की फसलें बारानी क्षेत्र में पैदा की जाती है, जो पूर्णत: वर्षा पर निर्भर होती हैं।
रबी
(उन्हालू)
रबी की फसलें अक्टूबर-नवम्बर में बोकर
मार्च-अप्रेल में काट ली जाती हैं।
रबी फसलों में सर्वाधिक क्षेत्र गेहूँ
का है।
रबी तिलहनों में मुख्यतः राई व सरसों की
खेती होती है।
रबी फसलों में सर्वाधिक उत्पादन गेहूँ
का एवं उसके बाद राई व सरसों का होता है।
रबी दहलनी फसलें भी मुख्यतः बारानी
क्षेत्रों में बोई जाती है। चने का करीब 15-20 प्रतिशत
क्षेत्र ही सिंचित है। इसलिए चने का अच्छा उत्पादन सर्दी की वर्षा (मावठ) पर ही
निर्भर है।
मुख्य रबी फसलें : गेहूँ, जौ, चना, मसूर, मटर, सरसों, अलसी, तारामीरा, सूरजमुखी, धनिया, जीरा, मेथी आदि।
जायद फसल
राज्य के पानी की उपलब्धता वाले कुछ
क्षेत्रों में एक तीसरी फसल भी मार्च से जून के मध्य ली जाती है, जिसे 'जायद' कहते हैं। इसमें तरबूज, खरबूजा, ककड़ी व सब्जियाँ पैदा की जाती हैं।
राजस्थान की खाद्य फसलें: - अनाजः बाजरा, गेहूँ, ज्वार, मक्का, जौ, चावल, रागी।
दालें: चना, मूंग, उड़द, अरहर, मोठ, चवला, मसूर, सोयाबीन, मटर
प्रमुख व्यावसायिक फसले -
तिलहन : राई व सरसों, तिल, मूंगफली, अरण्डी, सोयाबीन, अलसी, तारामीरा, सूरजमुखी
रेशेदार फसलें: कपास, सन।
मसाला फसलें: धनिया, जीरा, मेथी, सौंफ, मिर्ची, हल्दी, अदरक
औषधीय फसलें: अश्वगन्धा, इसबगोल, सफेद मूसली आदि।
अन्य फसलें: गन्ना, ग्वार, मेंहदी, तम्बाकू, अफीम, गुलाब, फल एवं सब्जियाँ।
मक्का
राजथान में मक्का की सर्वाधिक उत्पादकता चित्तौड़
जिले में है।
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - उदयपुर, भीलवाड़ा, बाँसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले – भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, बाँसवाड़ा, राजसमंद
माही कंचन, माही धवल व सविता
मक्का की मुख्य किस्में हैं।
मक्का को अनाजों की रानी (Queen of Cereals) कहा जाता है।
देश में मक्का के उत्पादन में आंध्रप्रदेश प्रथम, कर्नाटक द्वितीय व महाराष्ट्र तृतीय स्थान पर है।
विश्व में मक्का के उत्पादन की दृष्टि से भारत यूएसए, चीन व ब्राजील के बाद चौथे स्थान पर है।
मक्का की सर्वाधिक उत्पादकता भी क्रमशः अमेरिका, चीन व ब्राजील की ही है।
24° से 30° से.ग्रे. तापमान।
यह गर्म मौसम का पौधा है।
जल की प्रचुर आपूर्ति उपयोगी।
दोमट मिट्टी उपयुक्त।
बाजरा
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I. बाड़मेर II.जोधपुर III. नागौर IV.चुरू
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -I.अलवर, II.जयपुर III.सीकर IV. नागौर
नम व उष्ण मौसम उपयुक्त
मिट्टी- रेतीली दोमट उपयुक्त।
देश में बाजरे के उत्पादन का लगभग 35-40% से अधिक राजस्थान में होता है।
प्रदेश का देश में प्रथम स्थान (उत्पादन
व क्षेत्रफल दोनों में) है।
राज्य के सर्वाधिक कृषि क्षेत्र में
केवल बाजरा बोया जाता है।
भारत में विश्व का सर्वाधिक बाजरा
उत्पादित होता है।
ज्वार
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I. अजमेर II. पाली III. नागौर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -I. नागौर II. अजमेर III. पाली
गर्म जलवायु की फसल।
औसत तापमान - 26° से 30° ।
वर्षा : 35 से 150 से.मी.।
देश में सर्वाधिक उत्पादन क्रमश:
महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु में हुआ है।
राजस्थान में सर्वाधिक उत्पादकता
राजसमंद की है।
ज्वार से अल्कोहल व बीयर तैयार की जाती
है।
चावल
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.बूंदी II. हनुमानगढ़. III. बाँसवाड़ा IV. कोटा
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -I. हनुमानगढ़ II.बूंदी III. बाराँ IV.कोटा
उष्ण व नम जलवायु उपयुक्त।
वर्षा : 50 से 200 से.मी. वार्षिक।
तापमान : 20° से 30° से.ग्रे.।
मिट्टी : काली व चिकनी दोमट।
भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल
उत्पादक देश है
भारत में सर्वाधिक चावल उत्पादन क्रमशः पश्चिमी बंगाल, उ.प्रदेश व आंध्रप्रदेश में होता है।
राजस्थान में चावल की सर्वाधिक उत्पादकता बारा जिले
की है
गेहूँ
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.गंगानगर II. हनुमानगढ़ III. अलवर IV. बाराँ V.बूंदी
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I.गंगानगर II. हनुमानगढ़ III. अलवर IV. बाराँ V. भरतपुर
जलवायु - शीतोष्ण ।
आर्द्रता : 50 से 60%
मिटटी - दोमट
गेहूँ के उत्पादन की दृष्टि से देश में
उत्तरप्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश क्रमशः प्रथम, द्वितीय व
तृतीय स्थान पर है।
गेहूँ के उत्पादन में भारत का चीन के
बाद विश्व में दूसरा स्थान है।
राज्य में गेहूँ की सर्वाधिक उत्पादकता
झुंझुनूं जिले की है।
प्रमुख किस्में-राज 1482, राज 3077,डब्ल्यू एच 147,खरचिया 65,राज 3765।
जौ
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.गंगानगर II.जयपुर III. सीकर IV. भीलवाड़ा
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I.गंगानगर II.जयपुर III. सीकर IV. हनुमानगढ़
जौ की खेती लगभग सभी स्थितियों में की
जा सकती है लेकिन विपरीत परिस्थितियों
जैसे पिछेती बुवाई एवं बारानी स्थिति, कम उर्वरा भूमि, क्षारीय और
लवणीय भूमि में भी
जौ उगाया जा सकता है।
मिट्टी : दोमट व बलुई दोमट।
माल्ट' बनाने के लिए जौ एक प्रमुख खाद्यान है।
बोये गए क्षेत्र एवं उत्पादन दोनों ही
दृष्टि से उत्तरप्रदेश के बाद राजस्थान का दूसरा स्थान।
विश्व में सर्वाधिक जौ रूस में होता है।
कुल अनाज
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.बाड़मेर II.जोधपुर III. जयपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I.अलवर II. गंगानगर III. जयपुर
देश में कुल अनाज उत्पादन में
प्रथम-उत्तरप्रदेश।
कुल अनाज उत्पादन में चीन व अमेरिका के
बाद भारत का तीसरा स्थान।
मोठ
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.चुरू II. बाड़मेर III.बीकानेर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -I.चुरू II. जोधपुर III.बीकानेर
शुष्क जलवायु।
मिट्टी : बलुई व दोमट मिट्टी।
राज्य में दलहनी फसलों में सर्वाधिक
क्षेत्र (लगभग 40%)
में केवल मोठ बोई जाती है। शुष्क
व मरुस्थलीय क्षेत्र की मुख्य फसल। राजस्थान का प्रथम स्थान।
राजस्थान में मोठ की सर्वाधिक उत्पादकता
सिरोही व बाराँ (दोनों की समान 1000) की है।
चना
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I. बीकानेर II. चुरू III. जयपुर IV. जैसलमेर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I. बीकानेर II.जयपुर III. झुंझुनूं IV.चुरू
ठण्डी व शुष्क जलवायु।
मिट्टी : हल्की दोमट
वर्षा: मध्यम
चने की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली
उपजाऊ भूमि उपयुक्त रहती है।
चने की फसल अधिकतर बारानी क्षेत्र में
ली जाती है।
सी 235, आरएसजी 44, अनुभव, वरदान, अर्पण, संगम आदि इसकी उन्नत किस्में है। |
देश में उत्पादन व क्षेत्रफल दोनों की
दृष्टि से राज्य का दूसरा स्थान है। प्रथम स्थान मध्यप्रदेश व तीसरा महाराष्ट्र का
है।
विश्व में भारत में चने का सर्वाधिक
उत्पादन होता है।
मूंग
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.नागौर, II.पाली III. जोधपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I.नागौर, II.जोधपुर III. पाली
शुष्क व गर्म जलवायु ।
दोमट मिट्टी
वर्षा: 25 से 40 सेमी.
वार्षिक।
भारत मूंग का विश्व का सबसे बड़ा
उत्पादक देश है।
राजस्थान में मूंग की सर्वाधिक
उत्पादकता जोधपुर जिले की है।
उड़द
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले -I. भीलवाड़ा I.बूंदी III. अजमेर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I.बूंदी II. भीलवाड़ा III. टोंक
उष्ण कटिबंधीय आर्द्रव गर्मजलवायु।
वर्षा : 40 से 60 से.मी.
वार्षिक।
मिट्टी : दोमट व चिकनी दोमट।
राजस्थान में उड़द की सर्वाधिक
उत्पादकता झुंझुनूं व अलवर जिले (दोनों में समान) की है।
चँवला
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.सीकर II. झुंझुनूं
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I. झुंझुनूं II.सीकर
राजस्थान में सर्वाधिक उत्पादकता बूंदी
जिले की है।
अरहर
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.बाँसवाड़ा II. उदयपुर III.डूंगरपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - 1. उदयपुर II. बाँसवाड़ा III. अलवर
सर्वाधिक उत्पादन व क्षेत्र महाराष्ट्र
में मध्यप्रदेश का द्वितीय व कर्नाटक का तीसरा स्थान ।
राजस्थान में अरहर की सर्वाधिक
उत्पादकता दौसा जिले की है।
मसूर
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.बूंदी II. झालावाड़
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I.बूंदी II. झालावाड़
राज्य में मसूर की सर्वाधिक उत्पादकता
प्रतापगढ़ जिले की है।
अन्य प्रमुख उत्पादक जिला-प्रतापगढ़।
कुल दलहन
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.चुरू II. नागौर III. बीकानेर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -I.बीकानेर II. नागौर III. चुरू
क्षेत्र व उत्पादन दोनों ही दृष्टि से
मध्यप्रदेश प्रथम स्थान पर है। राजस्थान दोनों दृष्टि से दूसरे स्थान पर है। तीसरे
स्थान पर महाराष्ट्र है।
भारत विश्व में दालों का सबसे बड़ा
उत्पादक व उपभोक्ता देश है।
कुल खाद्यान
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.बाड़मेर II. नागौर III. चुरू IV.जोधपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I. अलवर II. जयपुर III. गंगानगर IV.हनुमानगढ़
सर्वाधिक उत्पादन क्रमशः उत्तरप्रदेश, पंजाब व मध्यप्रदेश में हुआ।
राजस्थान का कुल खाद्यान्न के उत्पादन
में देश में चौथा स्थान है।
खाद्यान्न में सर्वाधिक उत्पादकता की
दृष्टि से देश में पंजाब प्रथम व हरियाणा द्वितीय स्थान पर है।
उत्पादकता की दृष्टि से राजस्थान का देश
में 15वाँ स्थान है।
मूंगफली
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले - I.बीकानेर II. जोधपुर III. चुरू IV. जयपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I.बीकानेर II. जोधपुर III. चुरू IV. जयपुर
उष्ण कटिबंधीय जलवायु।
तापमान- 25° से 30° से.ग्रे.।
वर्षा : 50 से 100 से.मी.।
मिट्टी : बलुई व दोमट।
देश में सर्वाधिक उत्पादन क्रमशः गुजरात, राजस्थान व तमिलनाडु में होता है
मूंगफली के उत्पादन व उत्पादकता में
भारत का विश्व में चीन के बाद द्वितीय स्थान है।
राजस्थान में मूंगफली की सर्वाधिक
उत्पादकता बीकानेर जिले की है।
राई व सरसों
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले -I.टोंक II. अलवर III. भरतपुर IV. गंगानगर V.स.माधोपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -I.अलवर II. टोंक III. भरतपुर IV. गंगानगर V.स.माधोपुर
शुष्क व ठण्डी जलवायु
मिट्टी: बलुई व दोमट।
देश के कुल उत्पादन का लगभग 45-50% अकेले राजस्थान में।
राजस्थान का सरसों उत्पादन व क्षेत्रफल
दोनों ही दृष्टि से देश में प्रथम स्थान है।
उत्पादन की दृष्टि से मध्यप्रदेश दूसरे
व हरियाणा तीसरे स्थान पर है।
विश्व में राई व सरसों के उत्पादन में
कनाडा व चीन के बाद भारत का तीसरा स्थान है।
इसकी खली पशुओं को खिलाने के काम में
लायी जाती है।
राजस्थान में राई व सरसों की सर्वाधिक
उत्पादकता हनुमानगढ़ जिले की है।
तिल
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले - I.
पाली II. जोधपुर III. जालौर IV. सिरोही
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I. पाली II. जोधपुर III. जालौर IV.स.माधोपुर
उष्ण व समोष्ण जलवायु।
तापमान-25° से 27° से.ग्रे.।
वर्षा 30 से 100 सेमी.।
मिट्टी : हल्की बलुई दोमट ।
तिल के उत्पादन में विश्व में म्यांमार
के बाद बाद भारत का दूसरा स्थान है। उत्पादन की दृष्टि से पश्चिम बंगाल प्रथम
स्थान पर है राज्य में तिल की सर्वाधिक उत्पादकता धौलपुर जिले की है।
अलसी
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले - I. नागौर II.प्रतापगढ़
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I. नागौर II.प्रतापगढ़
समशीतोष्ण व शीतोष्ण जलवायु
राज्य में अलसी की सर्वाधिक उत्पादकता
नागौर जिले की है।
मिट्टी : दोमट
तारामीरा
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले -I.जयपुर II. नागौर IIl.पाली
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले I.जयपुर II. नागौर IIl.पाली
हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त।
तारामीरा सभी क्षेत्रों में पैदा किया
जा सकता है, इसको अनुपजाऊ व अनुपयोगी भूमि परभी बोया
जा सकता है।
अम्लीय एवं ज्यादा क्षारीय भूमि इसके
लिए बिल्कुल उपयोगी नहीं है।
इसमें तेल की मात्रा लगभग 35 प्रतिशत पाई जाती है।
इसकी आरएमटी-314 किस्म बारानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
सोयाबीन
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले -I. झालावाड़ II. कोटा III. बाराँ IV. प्रतापगढ़ v.चित्तौड़गढ़
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -I. झालावाड़ II.चित्तौड़गढ़ III. कोटा IV. प्रतापगढ़ v.बाराँ
तापमान : 150 से 35° से.ग्रे. .
हाड़ौती क्षेत्र सोयाबीन उत्पादक
क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।
सोयाबीन में सर्वाधिक मात्रा में
प्रोटीन (43%)
तथा तेल 20% होता है।
वर्षा : 75 से 125 सेमी.
वार्षिक।
गहरी दोमट, चिकनी, दोमट
सोयाबीन के उत्पादन व क्षेत्रफल दोनों
ही दष्टि से देश में मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र के बाद राजस्थान का तीसरा स्थान है।
विश्व में अमेरिका, ब्राजील व अर्जेन्टीना के बाद भारत का चतुर्थ स्थान है।
अरण्डी
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले - I. जालोर II. सिरोही III.बाड़मेर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I. जालोर II. सिरोही III.बाड़मेर
उत्पादन में म.प्रदेश व महाराष्ट्र के
बाद राज्य का तीसरा स्थान।
भारत का सोयाबीन के उत्पादन में विश्व
में पहला स्थान।
राज्य में अरण्डी की सर्वाधिक उत्पादकता
गंगानगर जिले की है।
कुल तिलहन
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले -I.टोंक II.जोधपुर III. झालावाड़ IV.अलवर v.बीकानेर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -I.बीकानेर II.जोधपुर III. झालावाड़ IV.टोंक v. झालावाड़
कुल तिलहनों के उत्पादन की दृष्टि से
प्रथम स्थान मध्यप्रदेश का है। राजस्थान द्वितीय व गुजरात तृतीय स्थान पर है।
क्षेत्रफल की दृष्टि से मध्यप्रदेश
प्रथम, राजस्थान द्वितीय व महाराष्ट्र तृतीय
स्थान पर है। गुजरात चौथे स्थान पर है।
तिलहन के उत्पादन में चीन, पाकिस्तान, मलेशिया, नेपाल व इथियोपिया के बाद भारत छठे स्थान पर है।
भारत में जितने क्षेत्र में तिलहनों की
खेती होती है उसके आधे से अधिक भाग में मूंगफली बोई जाती है।
गन्ना
सर्वाधिक क्षेत्र
वाले जिले -I. गंगानगर II.चित्तौडगढ़ III. बूंदी
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -I. गंगानगर II.चित्तौडगढ़ III. बूंदी IV. उदयपुर v.राजसमंद
उष्णकटिबंधीय जलवायु
मिट्टी : बलुई दोमट।
तापमान : 20° से 35° से.ग्रे.
भारत विश्व का ब्राजील के बाद सबसे बड़ा गन्ना
उत्पादक देश है।
गन्ने का सर्वाधिक : क्षेत्र भी ब्राजील में है, भारत का द्वितीय स्थान है।
उत्पादकता की दृष्टि से भारत का चौथा स्थान है
देश में सर्वाधिक क्रमशः उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र व कर्नाटक में होता है।
इसका उपयोग चीनी, गुड़ तथा खाण्डसारी
उद्योग में कच्चे माल के रूप में होता है।
भारत में नकदी फसलों में सर्वाधिक उत्पादन गन्ने का
होता है।
उत्तर प्रदेश को भारत का चीनी का कटोरा' कहते हैं।
कपास
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले -I. हनुमानगढ़ II. गंगानगर III. नागौर IV. भीलवाड़ा V. जोधपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -I. हनुमानगढ़ II. नागौर III. गंगानगर IV. भीलवाड़ा V. जोधपुर
उष्णकटिबंधीय फसल
तापमान : 15 से 25 से.ग्रे.
वर्षा : न्यूनतम 50 से.मी.।
मिट्टी : काली जलोढ़ व गहरी दोमट।
राज्य में कपास का अधिकांश उत्पादन नहरी
सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में होता है।।
राज्य में कपास की सर्वाधिक उत्पादकता
चित्तौड़ जिले में है।
कपास भारत की आदि फसल है।
इसे सफेद सोना (White Gold) भी कहते हैं।,
कपास भारत के सूती वस्र उद्योग का आधार
है।
कपास के क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत
विश्व में प्रथम स्थान पर है।
कपास उत्पादन की दृष्टि से भारत का चीन
के बाद द्वितीय स्थान है। गुजरात का कपास उत्पादन में प्रथम स्थान है। महाराष्ट्र
का द्वितीय व आंध्रप्रदेश का तृतीय स्थान है।
सन
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले -1.बाँसवाड़ा II.स.माधोपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -.स. माधोपुर II चित्तौड़गढ़
अन्य उत्पादक जिले- भीलवाड़ा, बाँसवाड़ा, रासमंद।
तम्बाकू
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले -1. जालोर II.अलवर III. करौली IV.दौसा,V.झुंझुनूं
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -1. जालोर II.झुंझुनूं III. अलवर IV.करौली, V.दौसा
राज्य में तम्बाकू की सर्वाधिक उत्पादकता
झुंझुनू जिले की है
विश्व में तम्बाकू उत्पादन में चीन
प्रथम, ब्राजील द्वितीय व भारत तृतीय स्थान पर
है। तम्बाकू के उत्पादन व क्षेत्र दोनों की दृष्टि से आंध्रप्रदेश प्रथम, गुजरात द्वितीय व कर्नाटक तृतीय स्थान पर है।
ग्वार
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले -I.बीकानेर II. गंगानगर .
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -1. गंगानगर II.बीकानेर
अन्य उत्पादक जिले-हनुमानगढ़, जैसलमेर।
मोटे अनाजों के उत्पादन की दृष्टि से राजस्थान का देश में प्रथम स्थान है।
कर्नाटक द्वितीय व महाराष्ट्र तृतीय स्थान पर है।
जूट व मेस्ता के उत्पादन में पश्चिम बंगाल प्रथम, बिहार द्वितीय व आसाम तृतीय स्थान पर है।
राजस्थान में उद्यानिकी
राजस्थान में उद्यानिकी फसलों-फल, सब्जी, मसाले, फूल, औषधीय
पौधों आदि के विकास की विपुल संभावनाएँ हैं।
फल, सब्जी, मसाला, फूल व औषधीय पौधे आदि फसलों के क्षेत्र, उत्पादन एवं उत्पादकता में सुनियोजित ढंग से वृद्धि के
उद्देश्य से राज्य में वर्ष 1989-90 में पृथक
से उद्यान निदेशालय की स्थापना की गयी।
वर्तमान में राज्य देश में बीजीय मसालों
यथा धनिया, जीरा, एवं मैथी के उत्पादन में प्रथम स्थान पर है।
यहाँ देश के धनिया उत्पादन का लगभग 50%, जीरे का 60%, मैथी का 47% एवं सौंफ का लगभग 16% उत्पादन
होता है।
धनिया के लिए हाड़ौती क्षेत्र व जीरा के
लिए पश्चिमी राजस्थान के जिलों ने विशेष पहचान बनाई है।
फूलों के अंतर्गत विशेष रूप से गुलाब को
बढ़ावा दिया जा रहा है।
राज्य मसालों के अंतर्गत कृषित क्षेत्र
की दृष्टि से संपूर्ण देश में प्रथम है।
मसाला उत्पादन की दृष्टि से राज्य देश
में गुजरात व आंध्रप्रदेश के बाद तीसरे स्थान पर है।
राज्य में फल, सब्जी, मसाला व
फूलों के क्षेत्रफल, उत्पादन व
गुणवत्ता में हुई लगातार वृद्धि के फलस्वरूप राज्य के कुछ जिलों की विशेष पहचान बनी है, जैसे-
झालावाड़ - सन्तरा,
श्रीगंगानगर - किन्नू, मालटा व मौसमी,
बाड़मेर, भीलवाड़ा व सीकर - अनार,
सवाईमाधोपुर - अमरुद,
श्रीगंगानगर व भरतपुर - बेर,
अजमेर, भीलवाड़ा, नागौर, जयपुर व अलवर - आँवला
बागवानी फसलों के सर्वाधिक उत्पादक राज्य
(क्रमशः प्रथम, द्वितीय,तृतीय इस प्रकार हैं)
फल - आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र,उत्तर
प्रदेश
सब्जियाँ - पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, बिहार
सुगन्धित पुष्प - मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान
मसाले - आंध्रप्रदेश, गुजरात,राजस्थान
रोपण फसलें - कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल
लूज फ्लावर - तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्यप्रदेश
कट फ्लावर - पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, महाराष्ट्र
कुल बागवानी फसलें - उत्तरप्रदेश,पश्चिम बंगाल,तमिलनाडु
ईसबगोल एवं सोनामुखी के उत्पादन में हमारा देश संपूर्ण विश्व में प्रथम स्थान पर
है। भारत का सर्वाधिक ईसबगोल राजस्थान (विश्व के ईसबगोल उत्पादन का 40 प्रतिशत से अधिक) में उत्पादित होता है।
अफीम : इसकी खेती चित्तौड़गढ़, कोटा व
झालावाड़ जिलों में की जाती है।
जोजोबा (होहोबा): यह एक नई उद्यानिकी फसल है जो रेगिस्तानी इलाकों में आसानी से
उगाई जा सकती है। इसका वैज्ञानिक नाम Simmondesia Chinensis है। इसका उत्पत्ति स्थान मैक्सिको, कैलिफोर्निया एवं एरिजोना (USA) का सोनारन
रेगिस्तान है।
भारत में यह इजरायल से लाया गया है। यह पौधा 30 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले रेगिस्तानी प्रदेश में आसानी से
उगाया जा सकता है। इसका पौधा झाड़ीनुमा होता है जिसमें 2-3 वर्ष बाद फल लगते हैं।
उपयोग : इसका तेल ह्वेल मछली के तेल के
विकल्प के रूप में प्रयुक्त होता है। जिसका प्रयोग वायुयानों के ईंधन, लुब्रीकेंट, बिजली के
इन्सुलेटर, डिटर्जेन्ट्स, रंग-रोगन, सौंदर्य
प्रसाधन सामग्री,
मोम, आसंजक (Adhesive) के निर्माण
आदि में होता है। इसके तेल का गलनांक व क्वथनांक अत्यधिक होता है।
राजस्थान मे जोजोबा का पौधा सर्वप्रथम
काजरी (जोधपुर)द्वारा इजरायल से 1965 में लाया
गया था। राज्य में इसकी खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 1996-97 में एजोर्प (Association of the
Rajasthan Zozoba Plantation & Research Project) द्वारा इजरायल की तकनीकी मदद से ढंड (जयपुर) एवं फतेहपुर
(सीकर) में जोजोबा फार्म स्थापित किये गये हैं।
राजस्थान में बागवानी फसलों के प्रमुख
उत्पादक जिले
राज्य में कुल बागवानी फसलों में
सर्वाधिक उत्पादन सब्जियों का है।
द्वितीय स्थान फूलों का है।
फसल व प्रमुख उत्पादक जिले इस
प्रकार हैं -
आम - 1.चित्तौड़गढ़, 2. उदयपुर, 3. डुंगरपुर
केला - 1. बाँसवाड़ा, 2. चित्तौड़गढ़
मौसमी, माल्टा, कीनू - 1. श्रीगंगानगर
अंगूर - 1. श्रीगंगानगर, 2. सवाईमाधोपुर
संतरा - 1.झालावाड़, 2. कोटा
सीताफल - 1.राजसमंद
नींबू - 1. भरतपुर, 2. करौली
अनार - 1. हनुमानगढ़, 2. सीकर
अमरूद - 1. सवाईमाधोपुर, 2. कोटा
शहतूत - 1.जयपुर, 2. बाँसवाड़ा
आँवला - 1.अजमेर, 2. नागौर, 3. जयपुर
खरबूजा - 1. पाली, 2. टोंक 1. भरतपुर, 2. जोधपुर, 3. जयपुर
पपीता - 1.बूंदी,2. अलवर, 3. भरतपुर
गुलाब - 1. पुष्कर, 2. हल्दीघाटी (खमनोर)
ग्वार - 1. गंगानगर, 2. बीकानेर, 3. हनुमानगढ़, 4. चुरू, 5. जोधपुर
राज्य में प्रमुख बागवानी फसलों के
क्षेत्रफल एवं उत्पादन की स्थिति
जीरा
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - 1.जोधपुर II. बाड़मेर III. जालोर IV.जैसलमेर v.पाली
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - l जालोर II. जोधपुर lII. बाड़मेर IV. नागौर v.जैसलमेर
जीरे के उत्पादन व क्षेत्र दोनों दृष्टि
से गुजरात देश में प्रथम स्थान पर है। उसके
बाद राजस्थान का स्थान है।
जीरे की उत्पादकता की दृष्टि से गुजरात
के बाद राजस्थान का द्वितीय स्थान है।
जीरा कम समय में पकने वाली मसाले की एक
प्रमुख फसल है।
धनिया
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I. झालावाड़ ll कोटा lII. बाराँ IV.चित्तौड़
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I. झालावाड़ II. बाराँ lll कोटा IV: चित्तौड़गढ़
धनिये के उत्पादन व क्षेत्र दोनों
दृष्टि से राजस्थान देश में प्रथम स्थान पर है।
लेकिन धनिये में राजस्थान का उत्पादकता
की दृष्टि से 8वाँ स्थान है।
सर्वाधिक उत्पादकता आंध्रप्रदेश की है।
ईसबगोल
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I. बाड़मेर II. जालोर III. नागौर IV. जैसलमेर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I. बाड़मेर II. जालोर III. नागौर IV.चित्तौड़
ईसबगोल एक महत्त्ववपूर्ण नकदी फसल हैं।
जीआई2, आर आई 89 इसकी उन्नत किस्में है।
ईसबगोल के उत्पादन में राजस्थान देश में
प्रथम स्थान पर है। |
भारत विश्व में ईसबगोल के उत्पादन में
प्रथम है।
मैथी
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - I.बीकानेर II. सीकर III.चुरू IV. नागौर v. जोधपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I.सीकर II.बीकानेर III. प्रतापगढ़ IV. झुंझुनूं
मैथी मसाले की एक प्रमुख फसल है। इसकी
हरी पत्तियों में प्रोटीन, विटामिन सी
तथा खनिज तत्त्व पाए जाते हैं।
इसके बीज मसाले व दवाई के रूप में
उपयोगी हैं।
भूमि व जलवायु: मैथी को अच्छे जल निकास
तथा पर्याप्त जीवांश पदार्थ वाली सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। परन्तु
दोमट मिट्टी इसके लिए |उत्तम रहती
है। यह ठण्डे मौसम की फसल है
राजस्थान मैथी के उत्पादन में देश में
प्रथम स्थान पर है।
पान मैथी
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - नागौर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - नागौर
नागौर की हरी मैथी (पान मैथी) अपनी
खुशबू के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है।
मिर्ची
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - 1.स. माधोपुर II. जयपुर III. जोधपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले -I.स. माधोपुर II. भीलवाड़ा III. जालोर
मथानिया (जोधपुर) की लाल मिर्ची
प्रसिद्ध है।
देश में आंध्र प्रदेश मिर्च के उत्पादन
व क्षेत्र दोनों दृष्टि से प्रथम स्थान पर है।
सौंफ
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले -I. नागौर II. जोधपुर III. टोंक IV. पाली
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - I. नागौर II. जोधपुर III. दौसा IV. पाली
भारत में सौंफ की खेती मुख्यतः राजस्थान, गुजरात व उत्तरप्रदेश में होती है।
यह मसाले की एक प्रमुख फसल है।
सौंफ शरद ऋतु में बोई जाने वाली फसल है।
शुष्क एवं सामान्य ठंडा मौसम विशेषकर जनवरी से मार्च तक इसकी उपज व गुणवत्ता के
लिए बहुत लाभदायक रहता है।
चूनायुक्त, दोमट व काली मिट्टी उपयुक्त है।
हल्दी
सर्वाधिक क्षेत्र वाले जिले - डूंगरपुर,उदयपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले जिले - डूंगरपुर,उदयपुर
हल्दी की सर्वाधिक उत्पादकता राज्य में
डूंगरपुर में है।
देश में हल्दी के उत्पादन व क्षेत्र
दोनों की दृष्टि से तमिलनाडु प्रथम स्थान पर है।
लहसुन
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले - 1. बाराँ II. कोटा
सर्वाधिक उत्पादन वाले
जिले - I. बाराँ II. प्रतापगढ़
लहसुन के क्षेत्र व उत्पादन दोनों ही
दृष्टि से देश में मध्यप्रदेश प्रथम स्थान पर है
क्षेत्र में राजस्थान द्वितीय स्थान पर
तथा गुजरातं तृतीय स्थान पर है।
यह रबी की एक नगदी फसल हैं। इसमें
विटामिन सी, फास्फोरस व कुछ प्रमुख पौष्टिक तत्त्व
पाए जाते हैं। इसका उपयोग अचार, चटनी व
मसाले के रूप में किया जाता है। इसमें औषधीय गुण भी पाया जाता है।
अजवायन
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले - I. उदयपुर II. चित्तौड़ III. प्रतागपढ़
सर्वाधिक उत्पादन वाले
जिले -
I.प्रतापगढ़ II. उदयपुर
कुल मसाले-
सर्वाधिक
क्षेत्र वाले जिले - I.जोधपुर II. झालावाड़ III. बाड़मेर IV. जालोर
सर्वाधिक उत्पादन वाले
जिले -
I. झालावाड़ II. बाराँ III. कोटा IV.जोधपुर
सर्वाधिक मसाला क्षेत्र राजस्थान में
है। गुजरात व मध्यप्रदेश क्रमशः द्वितीय व तृतीय स्थान पर है। मसाला उत्पादन की
दृष्टि से राजस्थान देश में गुजरात व आंध्रप्रदेश के बाद तीसरे स्थान पर है। |
भारत मसालों का विश्व में सबसे बड़ा
उत्पादक और निर्यातक है।
आलू
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले -I.धौलपुर II. भरतपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले
जिले - I.धौलपुर II. भरतपुर
आलू का सर्वाधिक उत्पादन देश में
उत्तरप्रदेश में होता है।
क्षेत्र भी सर्वाधिक उत्तरप्रदेश में ही
है।
राज्य में आलू की सर्वाधिक उत्पादकता
गंगानगर में है।
प्याज
सर्वाधिक क्षेत्र वाले
जिले -1. जोधपुर II. अलवर III.सीकर IV. नागौर v.जयपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले
जिले - I.जोधपुर II.सीकर III. नागौर IV.अलवर V. झुंझुनूं
प्याज का उत्पादन व क्षेत्र महाराष्ट्र
में सर्वाधिक है।
प्याज के उत्पादन में राजस्थान का छठा व
क्षेत्र में चौथा स्थान है।
प्याज के उत्पादन में भारत का विश्व में
चीन के बाद द्वितीय स्थान हैं लेकिन
क्षेत्र सर्वाधिक भारत में हैं।
प्याज एक नकदी फसल है जो सर्दियों में
उगाई जाती है। इसमें विटामिन सी, फास्फोरस
आदि पोषक तत्त्व पाए जाते हैं।
किस्में: लाल प्याज-पूसा रेड, नासिक रेड, पंजाब रेड
राउण्ड, भी सफेद प्याज-उदयपुर 102, पूसा व्हाइट फ्लेट, पूसा
व्हाइट राउण्ड,
अकोला सफेद। पीली प्याज-अर्ली
ग्रेनो।
मेहन्दी
सर्वाधिक
क्षेत्र वाले जिले - 1. पाली II. जोधपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले
जिले - I. पाली II. जोधपुर
राज्य में मेहन्दी की सर्वाधिक
उत्पादकता नागौर में है।
मटर
सर्वाधिक
क्षेत्र वाले जिले - I.जयपुर II. नागौर III. बूंदी
सर्वाधिक उत्पादन वाले
जिले - I.जयपुर II. नागौर III.बूंदी
मटर के उत्पादन में भारत का विश्व में
प्रथम स्थान है।
मटर के उत्पादन व क्षेत्र में देश में
उत्तरप्रदेश प्रथम स्थान पर है।
अदरक
सर्वाधिक
क्षेत्र वाले जिले - I. उदयपुर II. डूंगरपुर
सर्वाधिक उत्पादन वाले
जिले -I. उदयपुर | II.दूंगरपुर
देश में अदरक के क्षेत्र में ओडिशा व
उत्पादन में आसाम प्रथम है।
राजस्थान के कृषि विकास हेतु प्रयासरत
संस्थाएँ
कृषि विपणन निदेशालय
स्थापना वर्ष - 1980
उद्देश्य - कृषकों को उनकी उपज का उचित
मूल्य दिलवाने तथा उपभोक्ताओं को कृषि जिन्सों (Directorate of Agriculture Marketing)को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने हेतु राष्ट्रीय
कृषि आयोग की सिफारिश पर स्थापित।
इसके द्वारा मण्डी नियमन, एगमार्क एवं व्यावसायिक वर्गीकरण, मण्डी, परिज्ञान, मण्डी समितियों के बजट एवं प्रशासनिक कार्य सम्पादित किए जाते
हैं।
राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड
स्थापना वर्ष - 6 जून 1974
उद्देश्य - किसानों को कृषि उपज का उचित
मूल्य दिलाने के उद्देश्य से कृषि उपज मंडियों की स्थापना, मंडी प्रांगणों व ग्रामीण सम्पर्क सड़कों का निर्माण व रखरखाव
करना।
राजस्थान राज्य भंडारण निगम (Rajasthan State Warehousing Cor.)
स्थापना वर्ष - 30-12-1957
उद्देश्य - कृषि आदानों, उत्पादों एवं कृषि यंत्रों के भण्डारण हेतु वैज्ञानिक पद्धति
से गोदामों व भण्डारगृहों की स्थापना एवं रखरखाव करना।
राज्य कृषि उद्योग निगम (Rajasthan Agro-Industry
Corporation)
स्थापना वर्ष -1965
उद्देश्य - कृषि कार्यों हेतु विभिन्न
औद्योगिक साज-सामान तक किसानों की पहुँच बढ़ाने हेतु प्रोत्साहन के उद्देश्य से
केन्द्र सरकार की सलाह पर गठित।
राजस्थान राज्य बीज एवं जैविक उत्पादन
प्रमाणीकरण संस्था जयपुर
स्थापना वर्ष -1977
उद्देश्य -राज्य में अधिकाधिक कृषि
उत्पादन हेतु सभी प्रकार की अधिसूचित किस्मों के बीजों का प्रमाणीकरण करना।
वर्ष 24 अगस्त, 2005 को इसका
नाम राजस्थान राज्य बीज एवं जैविक उत्पादन प्रमाणीकरण संस्था कर दिया गया है।
पूर्व नामः राजस्थान राज्य बीज
प्रमाणीकरण संस्था।
राज. राज्य सहकारी क्रय विक्रय संघ लि. (RAJFED)
स्थापना वर्ष -26-11-1957
उद्देश्य -प्राथमिक क्रय विक्रय सहकारी
समितियों के माध्यम से राज्य के किसानों को उचित मूल्य पर विभिन्न कृषि आदान
उपलब्ध कराना एवं उनके कृषि उत्पादों की खरीद, बिक्री एवं प्रोसेसिंग की समुचित व्यवस्था कर आवश्यक मार्गदर्शन
करना।
राजस्थान राज्य सहकारी स्पिनिंग व जिनिंग
मिल्स फेडरेशन लि. जयपुर (SPINFED)
स्थापना वर्ष - 7-03-1992
उत्पादन प्रारंभ - 1.4.1993 से
उद्देश्य - गुलाबपुरा, हनुमानगढ़ एवं गंगापुर(भीलवाड़ा) की तीन सहकारी कताई मिलों
(कार्य आरंभ- एवं गुलाबपुरा की सहकारी जिनिंग मिल को मिलाकर स्पिनफेड की स्थापना
की गई। इसका उद्देश्य समन्वित आधार पर कपास केउपार्जन, विधायन, उन्नत
तकनीक के प्रयोग तथा उत्पादित सूत आदि की प्रभावी विपणन व्यवस्था बनाये रखना है।
स्पिनफैड इकाई हनुमानगढ़ व गुलाबपुरा में दिनांक 4.11.2015 से उत्पादन
बंद है।
श्रीगंगानगर कॉटन कॉम्पलैक्स (Sri Ganganagar Cotton
Complex),
स्थापना - 1989 में
उत्पादन प्रारंभ - 1991 में
राज्य के कपास उत्पादक किसानों को कपास
की पैदावार बढ़ाने हेतु प्रेरित करने व सहकारी क्षेत्र में कपास की जिनिंग व
प्रेसिंग से लेकर धागा तैयार करने की गंगानगर प्रक्रिया के संचालन हेतु विश्व बैंक
की आर्थिक सहायता से स्थापित।
तिलम संघ लि.(Raj. State Co-op. Oil Seeds
Growers Federation Ltd.)
स्थापना वर्ष - 3.7.1990
उद्देश्य - राज्य में तिलहन फसलों की
पैदावार बढ़ाने,
सहकारी क्षेत्र में तिलहनों की
खरीद करने तथा विधायन कर उचित मूल्य पर शुद्ध खाद्य तेल उपभोक्ताओं को उपलब्ध
कराना।
इसके अधीन 8 परियोजनाएँ-कोटा, बीकानेर
(विश्व बैंक की सहायता से स्थापित), श्रीगंगानगर, जालौर, मेड़ता
सिटी, फतेहनगर, गंगापुर सिटी व झुंझुनूं (यूरोपियन आर्थिक समुदाय की मदद से) में
स्थापित की गई थी।
वर्तमान में इसकी जालौर, मेड़तासिटी, गंगापुर
सिटी, झुंझुनूं एवं बीकानेर इकाइयों को बंद कर
दिया गया है। बीकानेर इकाई लीज पर दी हुई है।
तिलम संघ के कार्यों में विविधीकरण करते
हुए गेहूँ, सरसों, सोयाबीन, मूंग, ग्वार, चना आदि के
प्रसंस्करित बीजों का उत्पादन व विपणन किया जा रहा है।
राजस्थान उद्यानिकी एवं नर्सरी समिति
(राजहंस):
स्थापना वर्ष -2006-07
उद्देश्य - राज्य में उद्यानिकी विकास
को बढ़ावा देने हेतु उत्तम गुणवत्ता के विकास पौधे के उत्पादन कार्य व आपूर्ति
हेतु राज्य सरकार द्वारा गठित।
राज्य कृषि प्रबंध संस्थान (SIAM:State Institute of
Agriculture Management) - 1993 दुर्गापुरा, जयपुर में स्थापित।
राज्य कृषि प्रबंध संस्थान - 1998 टोंक में स्थापित।
राज्य कृषि प्रबंध संस्थान - कोटा में स्थापित।
राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र - 2000 तबीजी (अजमेर) में स्थापित।
चौधरी चरणसिंह
राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान - (NIAM-National
Institute-of Agriculture Marketing)
स्थापना वर्ष - 8.8.1988 जयपुर में स्थापित
उद्देश्य - यह केन्द्र कृषि विपणन के क्षेत्र में
प्रशिक्षण, परामर्श आदि सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।
कृषि लागत व
मूल्य आयोगः
किसानों को
उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्यों को सुनिश्चित करने हेतु 1965 में कृषि मूल्य आयोग की स्थापना की गई। 1985 में इसे कृषि लागत व मूल्य आयोग (CACP) नाम दिया गया।
एग्रीकल्चर
इंश्योरेन्स कम्पनी ऑफ इंडिया लिमिटेड (AICIL):
AICIL की स्थापना
20 दिसम्बर, 2002 को प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलों को हुए नुकसान से किसानों की
सुरक्षा करने हेतु फसल बीमा के संवर्धन के लिए की गई थी। इसने 1 अप्रैल, 2003 से व्यापार
आरंभ किया। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
राजस्थान
स्टेट सीड्स कार्पोरेशन लि. जयपुरः
अधिसूचित
किस्मों के उत्तम गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन, विधायन, भण्डारण
एवं संरक्षण करने तथा उन्हें उचित मूल्य एवं सही समय पर उपलब्ध करवाने हेतु
राजस्थान स्टेट सीड्स कॉपारेरेशन लिमिटेड की स्थापना राष्ट्रीय बीज परियोजना के
अन्तर्गत दिनांक 28 मार्च, 1978 को कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत हुई। निगम के 22 बीज विधायन केन्द्र हैं।
कृषि व्यवसाय प्रबंधन संस्थान: - इस संस्थान की स्थापना वर्ष 2000 में की गई।
कृषि अनुसंधान केन्द्रः
बेर अनुसंधान केन्द्र एवं खजूर अनुसंधान
केन्द्र, बीकानेर
1978 में स्थापित।
पश्चिमी राजस्थान के लिए 'हिलावी' खजूर की
किस्म उपयोगी सिद्ध हुई है।
‘मेंजुल' किस्म
छुआरा बनाने के लिए उपयोगी है।
केन्द्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र, दुर्गापुरा
(जयपुर): (RARI) Rajasthan Agricultral
Research Institute)
इसकी स्थापना 1943 में की गई थी। यह वर्तमान में SKN कृषि विश्वविद्यालय का संघटक है
केन्द्रीय कृषि फार्म, सूरतगढ़ (गंगानगर) :
यह रूस की सहायता से 15 अगस्त, 1956 को स्थापित
किया गया था।
यह एशिया का सबसे बड़ा फार्म है।
केन्द्रीय कृषि फार्म, जैतसर (गंगानगर) :
सूरतगढ़ कृषि फार्म के अधीन ही कनाडा की
सहायता से स्थापित।
केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीछवाल, बीकानेर
(CIAH-Central Institute
for Arid Horticulture):
इसकी स्थापना 1993 में की गई।
सरसों अनुसंधान निदेशालय सेवर,भरतपुरः
(DRMR-Directorate of Rapseed-Mustard
Research):
20 अक्टूबर, 1993 को
ICAR द्वारा सेवर, भरतपुर में
राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र (NRCRM- National Research Centre on Rapseed-Mustard) की स्थापना की गई। फरवरी, 2009 में इसका नाम बदलकर सरसों अनुसंधान
निदेशालय (DRMR
Directorate of Rapseed-Mustard Research) कर दिया गया।
कृषि विश्वविद्यालय
स्वामी केशवानन्द (राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, (SKRAU),बीछवाल, बीकानेर
राजस्थान राज्य में यह प्रथम कृषि
विश्वविद्यालय 1962
में उदयपुर में स्थापित किया गया
कृषि विश्वविद्यालय स्थापित करने वाला देश का दूसरा राज्य बना। राजस्थान में यह 1964 में बहुसंकाय विश्वविद्यालय के रूप में परिणित हो गया एवं इसका
नाम मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय रखा गया। 1987 में उससे कृषि संकाय अलग कर राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर की स्थापना की गई। 9 जून, 2009 को इसका
नाम स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय रखा गया।
महाराणा प्रताप कृषि व तकनीकी विश्वविद्यालय, उदयपुर
राजस्थान में कृषि शिक्षा व अनुसंधान को
अधिक प्रभावी तरीके से आगे बढ़ाने हेतु
1 नवंबर, 1999 को
स्थापित।
प्रारंभ में इसका नाम कृषि वि.वि.
उदयपुर था। यह राजस्थान का दूसरा कृषि विश्वविद्यालय था।
बाँसवाड़ा, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, राजसमंद व उदयपुर अब इसके क्षेत्राधिकार में है।
श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय
जोबनेर, जयपुर
इसकी स्थापना सितम्बर 2013 में की गई।
इसके अधीन SKN कृषि कॉलेज, जोबनेर तथा
(SKNAU) कृषि महाविद्यालय लालसोट (17 अगस्त, 2007 को
स्थापित),
भरतपुर व फतेहपुर (25 - जुलाई 1947 में
स्थापित सितंबर 2013
को स्थापित) हैं। SKN कृषि कॉलेज राज्य का पहला कृषि महाविद्यालय है।
कृषि विश्वविद्यालय, मंडोर, जोधपुर
14 सितंबर, 2013 को स्थापित
।
कृषि महाविद्यालय मंडोर (जोधपुर) व
सुमेरपुर (पाली) तथा इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर डिप्लोमा, लाडनें, नागौर इसके
अधीन है।
नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही व
पाली जिले इसके क्षेत्राधिकार में आते हैं।
कृषि विश्वविद्यालय, बोरखेड़ा, कोटा
14 सितंबर, 2013 को
स्थापित।
बागवानी व वानिकी महाविद्यालय, झालावाड़ इसके अधीन है। कोटा, बाराँ, बूंदी, झालावाड़, करौली व
सवाईमाधोपुर जिले इसके
क्षेत्राधिकार में है।
MPUAT के संघटक
कॉलेज
राजस्थान
कृषि महाविद्यालय - उदयपुर (RCA- Rajasthan College of Agriculture)
जुलाई, 1955 में स्थापित
राज्य का दूसरा कृषि महाविद्यालय।
डेयरी व फूड साइंस तकनीकी कॉलेज, उदयपुर
(CDFST- College of Dairy
& Food Science Technology):
1982 में डेयरी विज्ञान कॉलेज के रूप में स्थापित।
सन् 1999-2000 से इसका यह नाम रखा गया।
तकनीकी व इंजीनियरिंग महाविद्यालय, उदयपुर (College of Technology & Engineering)।
मत्स्य महाविद्यालय (COF-College of Fisheries), उदयपुर : मार्च, 2010 में
स्थापित।
गृह विज्ञान महाविद्यालय (College of Home Science), उदयपुर : इसकी स्थापना 1966 में की गई।
कृषि नीति के
उद्देश्य
सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने
के लिए खाद्य व पोषण सुरक्षा को उच्च प्राथमिकता देना।
वन चारागाही (Silvi Pastoral) पद्धति के द्वारा चारा फसलों को बढ़ावा, चारा तथा पशु आहार की भंडारण पद्धतियों को प्रोत्साहित करना।
नवीन वैज्ञानिक भू-उपयोग योजना (Land use Planning) तथा समन्वित कृषि प्रणाली (Integrated Farming System)
को अपना कर शुष्क क्षेत्रों को
हरा-भरा बनाना।
साथ ही जल संरक्षण व जल प्रबंधन
प्रणालियों को प्रोत्साहित करना।
कृषि लागत में कमी करना, कृषि उत्पादकता में वृद्धि, ग्रामीण आधारित कृषि प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन (Agro Processing &
Value Addition) और किसानों
को बाजार से जोड़कर कृषि आय बढ़ाना।
विशेष फसलों की एकल, संयुक्त या संविदा खेती (Contract Farming) को प्रोत्साहित करना।
कृषि में पूँजी निर्माण को गति प्रदान
करना व आधारभूत ढाँचे जिसमें सड़क, संचार, भंडार गृह, कोल्ड
स्टोरेज आदि सम्मिलित हैं, का विकास
करना।
रणनीति
राज्य की वर्तमान फसल सघनता 125 प्रतिशत से बढ़ाकर 160 प्रतिशत तक
किए जाने के प्रयास किए जाएंगे।
जल उपभोक्ता संघों और उनके सशक्तिकरण के
माध्यम से भागीदारी आधारित सामुदायिक सिंचाई प्रबंधन को प्रोत्साहन।
मिश्रित खेती/अंतरशस्य फसलों (Inter Cropping) को वर्षा आधारित क्षेत्रों में लोकप्रिय
बनाया जाएगा।
उन्नत कृषि तकनीक विशेषतः संरक्षित खेती, ग्रीन हाउस, पॉली हाउस, शेडनेट, लो टनल आदि
के लिए पर्याप्त सहायता दी जाकर प्रोत्साहित किया जाएगा।
पंचायत स्तर पर किसान सेवा केन्द्र की
स्थापना की जाएगी।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने व
अनुकूलन से संबंधित मुद्दों पर ध्यान दिए जाने हेतु एक जलवायु परिवर्तन और अजैव
दबाव प्रबंध केन्द्र भी स्थापित किया जाएगा। प्रमाणीकरण संस्था तक आसान पहुँच
सुनिश्चित करने के लिए राज्य स्तर पर मानक ब्यूरो स्थापित किया जाएगा।
फलों, औषधीय पादपों, मसालों, फूलों इत्यादि बागवानी उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहित
करने के लिए राज्य बागवानी सहकारी विपणन संघ स्थापित किया जाएगा।
विभिन्न क्रांतियाँ व कल्चर
प्रोटीन क्रांति - दलहन
श्वेत क्रांति - दुग्ध उत्पादन
पीली क्रांति - सरसों
लाल क्रांति - माँस/टमाटर
सुनहरी क्रांति - बागवानी
गुलाबी - क्रांति झींगा उत्पादन
नीली क्रांति - मत्स्य उत्पादन
रजत क्रांति - अण्डा एवं मुर्गी उत्पादन
गोल क्रांति - आलू उत्पादन
ब्लैक क्रांति - वैकल्पिक ऊर्जा
बादामी क्रांति - मसालों का उत्पादन
इन्द्रधनुषी क्रांति - दूसरी कृषि नीति, 2002
भूरी/धूसर क्रांति - उर्वरक उत्पादन
कृष्ण क्रांति - पेट्रोलियम
कृषि से
सबंधित अध्ययन
Apiculture : मधुमक्खीपालन
Pisci Culture : मत्स्य पालन
Sericulture : रेशमकीटपालन
Vermiculture : केंचुआपालन
Horticulture : बागवानी
Floriculture : पुष्पों की खेती
Fruticulture : फलों की खेती
Olericulture : सब्जियों की खेती
Silviculture : वनों का विकास व प्रबन्धन।
Viticulture : अंगूर की खेती।
Monoculture : एक बार में एक ही फसल की कृषि।
Moriculture : मलबरी की कृषि।
Hydroculture
(Hydroponics): पानी में
कृषि या बिना मिट्टी के कृषि
Arboriculture : वृक्षों, झाड़ियों एवं vines की कृषि, प्रबंध एवं अध्ययन।
Aquaculture : जलीय जीवों-मछली, cructaceans, molluscs का पालन व जलीय पौधों की कृषि।
Marineculture : समुद्र में समुद्री जीवों के भोजन हेतु
कृषि।
eculture : टिश्यू से अलग की गई कोशिकाओं की
कृत्रिम माध्यम में वृद्धि कर नये टिश्यू का निर्माण।
Polyculture : एक ही स्थान पर एक साथ एक से अधिक फसलों
की कृषि।
कृषि के प्रकार
मिश्रित कृषि (Mixed Farming): कृषि एवं पशुपालन कार्य एक साथ करना।
शुष्क या बारानी कृषि (Dry Farming): शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल का
सुनियोजित संरक्षण व उपयोग कर कम पानी की आवश्यकता वाली व शीघ्र पकने वाली फसलों
की कृषि करना।
झूमिंग कृषि (Shifting Cultivation) : पहाड़ी व वन क्षेत्रों में वन एवं
पेड़-पौधों को जलाकर जमीन को साफ करना तथा उस पर 2-3 वर्ष खेती करने के पश्चात् उसे छोड़कर किसी अन्य स्थान पर इसी तरह
कृषि कार्य करना। आदिवासी क्षेत्रों में इसे 'वालरा कृषि' कहते हैं।
समोच्च कृषि (Contour Farming) : पहाड़ी क्षेत्रों में समस्त कृषि कार्य
और फसलों की बुवाई ढाल के विपरीत करना ताकि वर्षा से होने वाले मृदा क्षरण को
न्यूनतम किया जा सके।
पट्टीदारखेती (Strip Farming) : ढालू भूमि में मृदा क्षरण को कम करने
वाली (मूंग, उड़द, घास आदि) तथा अन्य फसलों को एक के बाद एक पट्टियों में ढाल के विपरीत
इस प्रकार बोना कि मृदा क्षरण को न्यूनतम किया जा सके।
कृषि वानिकी (Agro Forestry) : कृषि के साथ-साथ फसल चक्र में पेड़ों, बागवानी व झाड़ियों की खेती कर फसल व चारा उत्पादित करना।
रोपण कृषि -
(Plantation
Farming): एक विशेष प्रकार की खेती, जिसमें रबड़, चाय, कहवा आदि बड़े पैमाने पर कार्य एक साथ करना। (मुख्यतः निर्यात
हेतु) उगाये जाते हैं।
रिले क्रॉपिंग (Relay Cropping) : एक वर्ष में एक ही खेत में चार फसलें
लेना l
कुछ
संक्षिप्त नाम
1. SPINFED : Rajasthan State Cooperative Spining & Ginning Mills
Federation Ltd.
2. NABARD : National Bank for
Agriculture & Rural Development
3. CACP : Commission for
AgricultureCost & Prices
4. FCI : Food Corporation of
India
5. NAFED : National Agricultural
Cooperative Marketing Federation of India Ltd.
6. ABMI : Agri-Business
Management Institute
7. IASRI Indian Agricultural
Statistics Research Institute
8. IARI : Indian Agricultural
Research Institute
9. NISAGENET: National Information
System on Agricultural Education Network in India
वायरस जनित (Viral diseases)
तम्बाकू का मोजेक (Tobacco Mosaic)
आलू का पत्ती मुड़न रोग (Leaf roll of potato)
टमाटर का पत्ती मुड़न रोग (Leaf curl of tomato)
भिण्डी का पीतशिरा रोग (Yellow Vein mosaic)
गेंहूँ का टूण्डु रोग (Tundu disease of wheat)
बैक्टीरिया जनित रोग (Bacterial
diseases)
नींबू का केंकर (खर्रा रोग:Citrus canker of lemon)
कपास का जीवाणु अंगमारी/ब्लेक आर्म रोग (Bacterial blight)
चावल का पत्ती चकत्ता (अंगमारी रोग)(Leaf blight of rice)
आलू का विगलन रोग (Ring rot of
potato)
धान का अंगमारी/चित्ती रोग (Blight of paddy)
फफूंदी जनित रोग (Fungal
diseases)
मक्का का ब्राउन स्पॉट रोग
आलू का अंगमारी रोग (Blight of
potato)
बाजरे का हरित बाली/मृदुरोमिल आसिता रोग
अनाजों का चूर्णिल आसिता (छाछ्या) रोग (Green ear/downy mildew disease of bajra) (Powdery mildew of cereals),
ज्वार का तुलासिता रोग (Downy mildew.of jowar)
मूंगफली का टिक्का रोग (Tikka disease of groundnut)
जौ का धारीदार रोग (Stripe disease of
barley),
बाजरे का कण्डुआ रोग (Smut of
bajra)
ज्वार/बाजरे का अरगट रोग (Ergot of jowar/ bajra),
धान का कण्डुआ रोग (False smut of
rice),
गेहूँ का कण्डुआ रोग (Loose smut of
wheat),
जौ का आवृत्त कण्डुआ रोग (Covered smut of barley),
ज्वार का आवृत्त कण्डुआ रोग (Grain smut of Jowar),
अलसी का किट्ट (Rust of
Linseed),
गेहूँ का काला स्तंभ किट्ट रोग (Black/Stem rust),
गन्ने का लाल सड़न रोग (Red rot of sugarcane),
अरहर/कपास/गन्ने का उकठा रोग (Wilt disease),
गेहूँ का बाली सिकुड़न रोग (Ear cockle disease),
गेहूँ व जौ का मोल्या रोग (Molya disease),
सरसों का सफेद किट्ट (White rust of
mustard),
सरसों का तना गलन रोग (Stem rot of mustard)
अन्य रोग : बिल्ट - जीरा, साँगिया
रोग - धनिया, झुलसा - चना
फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट
1.बाल बीविल कीट (कपास)
2.आरा मक्खी व पेंटेड मग (सरसों)
3.हाकमोथ लट - (मूंग)
4. गन्धीबग - (चावल)
बोर्ड
काफी बोर्ड - बंगलौर (कर्नाटक)
रबर बोर्ड - कोट्टायम (केरल)
तंबाकु बोर्ड - गुंटूर (आंध्रप्रदेश)
मसाला बोर्ड - कोच्चि (केरल)
राष्ट्रीय जूट सोई - कोलकाता (पश्चिम
बंगाल)
राष्ट्रीय चाय बोर्ड- कोलकाता (पश्चिम
बंगाल)
कुछ फसलों की विभिन्न किस्में (Varieties)
जौ : ज्योति, राजकिरण
मूंगफली : चन्द्रा
राई व सरसों : पूसा कल्याणी, वरुणा, दुर्गामणि
।
आलू : कुफरी
तम्बाकू : निकोटिना टुबेकम, निकोटिना रास्टिका।
कपास : बीकानेरी, नरमा, गंगानगर
अगेती
ज्वार : राजस्थान चरी, 1 सी.एस.वी. 10
मोठ : जड़िया, ज्वाला।
ग्वार : दुर्गाबिहार, दुर्गापुरा सफेद, दुर्गा जय
खरबूजा: दुर्गापुरा, मधु, एच.एच.
वाई-3
मक्का : माही कंचन, माही धवल, मोती
कम्पोजिट चावल: माही सुगन्धा, बासमती, कावेरी, चम्बल, परमल
गेहूँ : सोना कल्याण, सोनालिका, मैक्सिकन, कोहीनूर, लाल बहादुर, मंगला,गंगासुनहरी
अन्य महत्वपूर्ण जानकारियाँ
सोयाबीन मुख्यत: राज्य के दक्षिण-पूर्वी (हाड़ौती) भाग में उगायी जाती है।
दलहनी फसल होने के कारण सोयाबीन वायुमंडल से नत्रजन भूमि में स्थिर करके भूमि की
उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मदद करता है। गौरव, मोनेटा, टी-1, पंजाब-1, पूसा-16, मैक्स 13 आदि सोयाबीन की मुख्य फसलें है।
कांगणी : कांगणी दक्षिणी राजस्थान के गरीब व आदिवासी बाहुल्य शुष्क
क्षेत्रों की फसल है। कांगणी सूखे की स्थिति में पशुओं के लिए चारा प्रदान करती
है।
चैती (दमश्क) गुलाब : खमनौर (राजसमंद) एवं नाथद्वारा में इसकी
खेती होती है। यह सर्वश्रेष्ठ किस्म का गुलाब है। चैत्र माह में अधिक होने के कारण
इसे चैती गुलाब कहते हैं।
धमासा : एक प्रकार की खरपतवार है जो जयपुर क्षेत्र में बहुतायत से पाई
जाती है।
लीलोण : रेगिस्तानी क्षेत्रों (विशेषकर जैसलमेर आदि) में पाई जाने वाली
बहुपयोगी सेवण घास का स्थानीय नाम।
घोड़ा जीराः पश्चिमी राजस्थान (जालौर-बाड़मेर-जोधपुर के क्षेत्र) में
बहुतायत से उत्पादित ईसबगोल का स्थानीय नाम।
सोजत की मेहंदी के अतिरिक्त लाल सुर्ख रंग के लिए गिलंड (राजसमंद) की मेहंदी
भी विख्यात है।
गोचनी (बेझड़): गेहूँ, जौ व चने
का मिश्रण।
बेर के पेड़ पर लाख के कीड़े एवं शहतूत के पेड़ पर रेशम के कीड़े पाले
जाते हैं।
झालावाड़ को राजस्थान का नागपुर कहा
जाता है क्योंकि वहाँ संतरे की खेती सर्वाधिक होती है।
ईसबगोल की भूसी इसके बीजों से प्राप्त
की जाती है।
भूदान
आंदोलन:
1961 में विनोबा
भावे द्वारा प्रारंभ आन्दोलन जिसमें बड़े भूस्वामियों द्वारा भूमि दान करने पर
भूमिहीनों को बाँटो गई।
अंतरराष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य दिवसः 5 दिसम्बर
संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2015 को international Year or Sair घोषित किया गया है
भारत सरकार व राज्य सरकार द्वारा 5 दिसम्बर, 2015 को
अंतरराष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य दिवस' भोषित किया
गया है।
जैतून उत्पादन के मामले में प्रदेश देश में प्रथम स्थान पर है।
हरित, पीत, नीली व
श्वेत क्रांति के बाद अब प्रोटीन क्रांति लाने हेतु दलहन उत्पादन को बढ़ावा दिया
जाएगा।
सिक्किम को 18 जनवरी, 2016 को देश का पहला जैविक राज्य घोषित किया
गया है।
चावल की उच्च प्रोटीन युक्त किस्म 'हीरा'।
वर्ष 2014 को किसान उत्पादक संगठक वर्ष के रूप में मनाया गया।
'क्रोप केमल': ज्वार की
फसल बहुत ही सूखा सहनशील फसल है अतः इसे 'क्रोप केमल' भी कहते हैं।
वर्मी कल्चरः जैविक कृषि को बढ़ावा देने हेतु केंचुओं के उत्पादन के माध्यम
से कृषि में उपजाऊपन बढ़ाना।
जापानी मशरूम (शिताके ) की कृषि उदयपुर
में : कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से लड़ने में
मददगार व कम तापमान में उगने वाले जापानी मशरूम (शिताके) को देश में तीन स्थानों -
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर, केन्द्रीय खाद्य अनुसंधान संस्थान मैसूर तथा हिमालय जैविकी
संपदा संस्थान,
पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) में
उगाया जाएगा।
भारत का पहला कृषि विश्वविद्यालय:गोविन्द बल्लभ पंत कृषि विज्ञान व तकनीकी विश्वविद्यालय, पंतनगर (उ.प्र.) में 1960 में
स्थापित किया गया था।
इंडिया मिक्स : गेहूँ, मक्का व
सोयाबीन के मिश्रण का आटा।
बीटी कपास : बीटी कपास बेसिलस प्रोन जेन्सिस (विशेष क्रिस्टल प्रोटीन बनाने
वाला) का बीज में प्रत्यारोपण है। इसमें जैव अभियांत्रिक तकनीक से बीज की संरचना
में डी एन ए की स्थिति को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट
और टाक्सीकेंट्स में बदला जाता है ताकि फसल अधिक उपजाऊ और बीमारियों से लड़ने वाली बन सके। इसे
बायोटेक कृषि भी कहते हैं।
ऑर्गेनिक खेती : जैविक खेती को ही ऑर्गेनिक खेती कहा जाता है। इसके अंतर्गत
गोबर खाद, हरी खाद व फसल को कीटाणुओं व बीमारियों
से बचाने के लिए प्राकृतिक विधियों का प्रयोग किया जाता है।
संविदा खेतीः साधारण भाषा में संविदा खेती से तात्पर्य ठेके पर खेती करवाने
से है। इसके तहत किस उपज की कृषि करनी है यह निश्चय करने का अधिकार कम्पनी का होता
है किसान का नहीं। फसल की कीमत फसल होने से पूर्व ही निर्धारित कर ली जाती है
जिससे मूल्यों में कमी के संकट से किसान को मुक्ति मिल जाती है परंतु मूल्य बढ़ने
का फायदा उसे नहीं मिल पाता।
मशरुम
(खुम्बी : Mushroom): यह एक कवक है जिसके फल को सब्जी के रूप में प्रयुक्त किया जाता
है। इसमें प्रोटीन व विटामिन-सी प्रचुरता से होता है। शर्करा व स्टार्च नहीं होने
के कारण इसे Delight
of Diabitic भी कहा
जाता है।
ओरण (बीड़): राजस्थान में साधारण पशुचारण क्षेत्रों (चरागाहों) को इस नाम
से जाना जाता है।
वर्मी कम्पोस्ट : केंचुओं के अवशेष, मल, कोकून आदि से तैयार की गई खाद।
बाणियाँ : कपास को राजस्थान में ग्रामीण भाषा में बाणियाँ कहते हैं।
राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन (RCDF) का सीड मल्टीप्लीकेशन फार्म रोजड़ी (बीकानेर) में स्थित है।
नान्ता कृषि अनुसंधान केन्द्र (जिला कोटा) पर इफ्को द्वारा देश के दूसरे एवं राज्य के पहले
कृषि कियोस्क की स्थापना की गई है।
ड्रिप (बूंद-बूंद) सिंचाई पद्धति : इस पद्धति में छिद्रित पाइप लाइन के
जरिए आवश्यकता नुसार पानी सीधे पौधों की जड़ों में दिया जाता है। साथ ही खाद भी
पानी में मिलाकर घोल के रूप में ड्रिप सिंचाई पद्धति द्वारा दी जा सकती है।
झालावाड़ जिला 'हॉट्रिकल्चर हब' के रूप में
विकसित किया जायेगा।
राइबोजियम : एक प्रकार का सहजीवी सूक्ष्म जीवाणु जो फलीदार पौधों की जड़ों
में ग्रन्थियाँ बनाकर रहता है एवं वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थरीकरण कर नाइट्रेट
अवस्था में पौधों को उपलब्ध कराता है।
पादप क्लीनिक : राज्य सरकार ने राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के मंडोर स्थित
कृषि अनुसंधान केन्द्र में राज्य के पहले पादप क्लीनिक को खोलने की मंजूरी दी है।
अलवर में राज्य की पहली प्याज मंडी तथा छबड़ा में पहली लहसुन मंडी बन गई
है।
विश्व खाद्य दिवस- 16 अक्टूबर।
अतंरराष्ट्रीय मृदा दिवस - 5 दिसम्बर
अंतराष्ट्रीय मृदा वर्ष - 2015
विश्व में हरित क्रांति के जनक - नोरमन बोरलॉग (1943 में
मैक्सिको में शुरूआत, 1970 में नोबल
पुरस्कार से सम्मानित)
भारत में हरित क्रांति के जनक- श्री एम एस स्वामीनाथन ,
भारत में हरित क्रांति का प्रारम्भ- 1966-67 में सर्वप्रथम पंजाब व हरियाणा में।
हरित क्रांति का सर्वाधिक प्रभाव- गेहूँ
व चावल पर।
हरित क्रांति के फलस्वरूप देश में कुल
खाद्यान्न में अंश कम हुआ- दलहन व मोटे अनाज का।
भारत का 'चीनी का
कटोरा'- उत्तरप्रदेश
भारत का धान्य भंडार- पंजाब
केसर का उत्पादन करने वाला एकमात्र भारतीय राज्य- जम्मू-कश्मीर
Nice post
जवाब देंहटाएंभारत मे फसल उत्पादन मे प्रथम राज्य