राजस्थान की अपवाह प्रणाली: नदियाँ
राजस्थान की अधिकांश नदियाँ बरसाती
नदियाँ हैं।
यहाँ वर्षपर्यंत बहने वाली (बारहमासी)
नदियों की बहुत कमी है। केवल चंबल व माही ही वर्षभर प्रवाहित होती है।
अरावली पर्वत श्रृंखला 'भारत के महान जल विभाजक' का कार्य
करती है तथा प्रदेश की अपवाह प्रणाली (नदियों) को निम्न दो भागों में विभाजित करती
है
बंगाल की खाड़ी में जल ले जाने वाली
नदियाँ –
चम्बल, बनास, काली सिंध, पार्वती, बाणगंगा, खारी, बेड़च, गंभीर आदि नदियाँ अरावली के पूर्वी भाग में विद्यमान है। इनमें
कुछ नदियों का उद्गम स्थल अरावली का पूर्वी ढाल तथा कुछ का मध्यप्रदेश का
विन्ध्याचल पर्वत है। ये सभी नदियाँ अपना जल यमुना नदी के माध्यम से बंगाल की
खाड़ी में ले जाती हैं।
अरब सागर में जल ले जाने वाली नदियाँ :
माही, सोम, जाखम, साबरमती, पश्चिमी
बनास, लूनी आदि पश्चिमी बनास बलूनी नदी गुजरात
में कच्छ के रन विलुप्त हो जाती हैं।
आंतरिक जल प्रवाह की नदियाँ –
कुछ छोटी नदियाँ भी हैं, जो कुछ दूरी तक प्रवाहित होकर राज्य में अपने प्रवाह क्षेत्र
में ही विलुप्त हो जाती हैं तथा जिनका जल समुद्र तक नहीं जा पाता है, इन्हें आंतरिक जल प्रवाह की नदियाँ कहा जाता है।
ये नदियाँ हैं - काकनी, काँतली, साबी, घग्घर, मेन्था, बाण्डी, रूपनगढ़
आदि।
राज्य में चुरू व बीकानेर ऐसे जिले हैं, जहाँ कोई नदी नहीं है। गंगानगर में यद्यपि पृथक से कोई नदी नहीं
है लेकिन वर्षा होने पर घग्घर की बाढ़ का पानी सूरतगढ़ व अनूपगढ़ तक तथा कभी-कभी
फोर्ट अब्बास (बहावलपुर, पाकिस्तान)
तक चला जाता है।
राज्य के लगभग 60 प्रतिशत भू-भाग पर आंतरिक जल प्रवाह प्रणाली का विस्तार है।
राज्य में पूर्णतः बहने वाली सबसे लंबी नदी तथा सर्वाधिक
जलग्रहण क्षेत्र वाली नदी बनास है।
राज्य की सबसे लंबी नदी व सर्वाधिक सतही जल वाली नदी
चंबल है।
सर्वाधिक बाँध चम्बल नदी पर बने हुए हैं।
राज्य में कोटा संभाग में सर्वाधिक नदियाँ हैं।
चम्बल नदी पर भैंसरोडगढ़ (चित्तौड़गढ़) के निकट
चूलिया जल प्रपात तथा माँगली नदी पर बूंदी में भीमलत जल प्रपात है।
सर्वाधिक जिलों में बहने वाली नदियाँ: चम्बल, बनास व लूनी। प्रत्येक नदी 6 जिलों में बहती है।
अंतरराज्यीय सीमा (राजस्थान व
मध्यप्रदेश की सीमा) बनाने वाली राज्य की एकमात्र नदी चम्बल है।
माही, सोम और जाखम नदियों
के संगम पर स्थित बेणेश्वर धाम वनवासियों (आदिवासियों) का महातीर्थ है।
सोम नदी के किनारे डूंगरपुर में देव सोमनाथ मंदिर
स्थित है।
राज्य की नदियों का क्षेत्रवार वर्गीकरण
उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान - लूनी, जवाई, खारी, सूकड़ी, बाण्डी (हेमावास, पाली), सागी, जोजड़ी, घग्घर, काँतली, काकनी/;काकनेय (मसूरदी)।
दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान - पश्चिमी बनास, साबरमती, वाकल व सेई।
दक्षिणी राजस्थान - माही, सोम, जाखम, अनास, मोरेन।
दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान - चम्बल, कुनु, पार्वती, काली सिंध, कुराल, आहू, नेवज, परवन, मेज, आलनिया, चाकण, छोटी काली सिंध, बामनी, बनास, बेड़च, गंभीरी, कोठारी, खारी, माशी, मोरेल, कालीसिल, डाई, सोहादरा, ढील।
पूर्वी राजस्थान : साबी, मेन्था, रूपनगढ़, बाणगंगा, रूपारैल, गंभीर, पार्बती।
राज्य की प्रमुख नदियाँ
उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान की मुख्य नदियाँ
लूनी
उद्गम : अजमेर की नाग पहाड़ियाँ ।
प्राचीन नाम
–
लवण्वती,
लवणाद्रि, लवणावरी l
बहाव क्षेत्र
- अजमेर से निकलकर दक्षिणी पश्चिमी
राजस्थान- नागौर,
पाली, जोधपुर, बाड़मेर व
जालौर में
बहकर गुजरात के कच्छ जिले में प्रवेश
करती है, फिर कच्छ केरन' में विलुप्त हो जाती है।
495 किमी लम्बी यह राजस्थान की एक मुख्य नदी है जो पूर्णतया बरसाती
है।
इसके उद्गम स्थल पर इसको सागरमती, फिर गोविन्दगढ़ के निकट पुष्कर से आने वाली सरस्वती नदी मिलने
के बाद में लूनी कहते हैं।
इसका जल बालोतरा (बाड़मेर) तक मीठा व
बाद में खारा है।
इसका प्रवाह अच्छी वर्षा वाले क्षेत्रों
(मध्यवर्ती राजस्थान) से निम्न वर्षा वाले मरु प्रदेश (पश्चिमी एवं दक्षिण-पश्चिमी
राजस्थान) की ओर है।
राजस्थान के सम्पूर्ण अपवाह क्षेत्र का
लगभग 10.4 प्रतिशत भाग लूनी नदी बेसिन का है।
जसवंतसागर बाँध (पिचियाक बाँध, बिलाड़ा, जोधपुर)
में पानी की आवक लूनी नदी से ही होती है। यहाँ से आगे लूनी नदी का पाट चौड़ा हो
जाता है जिससे वर्षा ऋतु में बालोतरा क्षेत्र (बाड़मेर में ) में इसमें बाढ़ आ
जाती है।
सहायक नदियाँ:-
अरावली की पहाड़ियों से निकल कर लूनी
नदी में बायीं ओर से मिलने वाली सहायक नदियाँ - सूकड़ी,
मीठड़ी, बाण्डी, खारी, जवाई, लीलड़ी, गुहिया एवं सागी।
लूनी नदी में दायीं ओर से मिलने वाली
एकमात्र सहायक नदी जोजड़ी है।
लूनी नदी के बहाव क्षेत्र को जालौर में
नेड़ा (रेल) कहते हैं। अजमेर-पुष्कर की पहाड़ियों में अधिक वर्षा होने पर इस नदी
की बाढ़ से बालोतरा (बाड़मेर) इलाके में बाढ़ आ जाती है क्योंकि वहाँ नदी के पाट
से आसपास का धरातल नीचा है।
जवाई
उद्गमः पाली व उदयपुर जिले की सीमा पर
स्थित बाली (पाली) के गोरिया गाँव की पहाड़ियाँ।
बहाव क्षेत्र: यह पाली व जालौर में बहती
है। जालौर में सायला गाँव के पास इसमें खारी नदी मिल जाती है।
बाड़मेर में यह लूनी नदी में मिल जाती
है।
सुमेरपुर (पाली) के निकट इस पर जवाई
बाँध बना हुआ है।
खारी
उद्गमः सिरोही जिले के शेरगाँव की
पहाड़ियाँ।
प्रवाहः सिरोही → जालौर ।
जालौर के सायला गाँव में यह जवाई नदी
में मिल जाती हैं।
सूकड़ी
उद्गम: पाली जिला
प्रवाह : पाली → जालौर → बाड़मेर।
यह बाड़मेर के समदड़ी गाँव में लूनी नदी
में मिल जाती है।
जालौर के बाँकली ग्राम में इस पर बाँकली
बाँध बनाया गया है।
बाण्डी
उद्गम : पाली जिले में। (हेमावास)
प्रवाह : यह पाली में बहकर पाली व
जोधपुर की सीमा पर लाखर गाँव (पाली) में लूनी नदी में मिल जाती है।
सहायक नदी: गुहिया नदी।
सागी
उद्गम: जालौर जिले की जसवंतपुरा की
पहाड़ियाँ।
प्रवाह : जालौर → बाड़मेर।
बाड़मेर में यह गाँधव गाँव के निकट लूनी
नदी में मिल जाती है।
जोजड़ी
उद्गम: नागौर जिले के पोंडलू गाँव की
पहाड़ियाँ।
प्रवाह : नागौर -→ जोधपुर
यह लूनी नदी की एकमात्र सहायक नदी है जो
उसमें दायीं ओर से मिलती है तथा जिसका उद्गम अरावली की पहाड़ियाँ नहीं है। लूनी की
अन्य सभी सहायक नदियाँ अरावली की पहाड़ियों से निकलती हैं एवं लूनी नदी में बांयी ओर से मिलती हैं।
घग्घर
उद्गमः यह हिमाचल प्रदेश में शिमला के
पास शिवालिक की पहाड़ियों से निकलती है।
राजस्थान में यह हनुमानगढ़ जिले की टिब्बी तहसील के
तलवाड़ा गाँव के पास प्रवेश कर हनुमानगढ़ में बहती हुई भटनेर के पास विलुप्त हो
जाती है लेकिन वर्षा ऋतु में यह गंगानगर में सूरतगढ़ व अनूपगढ़ के कुछ गाँवों तक
पहुँच जाती है। इस नदी में अक्सर बाढ़ आती रहती है। कई बार इसको बाढ़ का पानी
फोर्ट अब्बास (पाकिस्तान) तक पहुँच जाता है। यह वैदिक संस्कृति की सरस्वती नदी के
पेटे में बहती है। यह 'मृत नदी' (Dead River) के नाम से भी
विख्यात है।
काँतली
उद्गम स्थल सीकर जिले में खंडेला की पहाड़ियाँ हैं।
इसका बहाव क्षेत्र तोरावाटी कहलाता है।
ताम्रयुगीन प्रसिद्ध गणेश्वर सभ्यता इसी नदी की
द्रौणी में फली-फूली थी।
यह नदी सीकर व झुंझुनूं में बहने के बाद चुरू की सीमा
पर जाकर विलुप्त हो जाती है।
काकनी
जैसलमेर जिले में जैसलमेर शहर से दक्षिण में कोटारी
गाँव इसका उद्गम स्थल है। कुछ दूर बहने के बाद यह काकनेय विलुप्त हो जाती है। अधिक पानी आने पर यह जैसलमेर को 'बुझ' झील में गिरती है।
स्थानीय भाषा में इसे 'मसूरदी नदी' भी कहते हैं।
दक्षिणी-पश्चिमी राजस्थान की नदियाँ:
पश्चिमी बनास
उद्गम - सिरोही के दक्षिण में नया सानवारा' गाँव के निकट अरावली की पहाड़ियाँ।
सिरोही में बहकर यह गुजरात के बनास काँठा जिले में
प्रवेश करती है व फिर लिटिल रन (कच्छ की रन) में विलुप्त हो जाती है।
गुजरात का 'दीसा' नगर इसी नदी पर बसा हुआ है।
इसकी लम्बाई 260 किमी. है।
सहायक नदियाँ: सूकली, सीपू, खारी, सुकेत, सेवरन, बलराम, धारवोल, गोहलन व कूकड़ी।
इसकी मुख्य सहायक सूकली नदी सिरोही जिले में सिलारी
की पहाड़ियों से निकल कर गुजरात में पश्चिमी बनास में मिल जाती है।
साबरमती
साबरमती उदयपुर जिले की कोटड़ी तहसील में अरावली की
पहाड़ियों से निकलकर गुजरात के साबरकांठा जिले में प्रवेश कर गुजरात में बहकर
खम्भात की खाड़ी में गिर जाती है।
गाँधीनगर इसी नदी पर बसा हुआ है।
इसकी सहायक नदियाँ वाकल, सेई, हथमति, मेश्वा, वेतरक और माजम हैं जो सभी डूंगरपुर या उदयपुर से निकलती है।
वाकल
उद्गम : उदयपुर में गोगुन्दा की पहाड़ियाँ।
सहायक नदियाँ : मानसी, पारवी
प्रवाह : उदयपुर में बहकर गुजरात व उदयपुर की सीमा पर
साबरमती में मिल जाती है।
सेई नदी
यह उदयपुर जिले के पादरना गाँव की पहाड़ियों से
निकलकर गुजरात में साबरमती में मिल जाती है।
दक्षिण राजस्थान की मुख्य नदियाँ
माही
उद्गम: मध्यप्रदेश में धार जिले के सरदारपुरा (जिला
अमरोह) के निकट विंध्याचल की पहाड़ियों में मेहद झील से।
बहाव क्षेत्र : यह अपने उद्गम स्थल से उत्तर में बहती
हुई राजस्थान में बाँसवाड़ा के खांदू के पास प्रवेश करती है तथा नरवाली तक बहने के
बाद दक्षिण-पश्चिम दिशा में बाँसवाडा- डूंगरपुर की सीमा बनाती हुई सलकारी गाँव से
गुजरात के महीसागर जिले में प्रवेश करती है (इस नदी पर कड़ाना बाँध यहीं पर बना
हुआ है) व फिर खम्भात की खाड़ी में गिरती है।
राजस्थान में इसके प्रवाह क्षेत्र को छप्पन का मैदान
भी कहते हैं।
यह तीन राज्यों - मध्यप्रदेश, राजस्थान व गुजरात में बहती है।
इसकी कुल लम्बाई 576 किमी है।
इसे वागड़ व कांठल की गंगा तथा दक्षिण राजस्थान की
स्वर्ण रेखा भी कहते हैं।
राजस्थान में इसकी लम्बाई 171 किमी. है।
यह नदी कर्क रेखा को दो बार पार करती है।
इसकी सहायक नदियाँ इरू सोम, जाखम, अनास, हरण, चाप, मोरेन व भादर है।
माही की सहायक इर्रु नदी इसमें माही बाँध के पास ही
मिल जाती है। शेष सहायक नदियाँ माही बाँध के पश्चात् इसमें आकर मिलती हैं।
बेणेश्वर (डूंगरपुर ) स्थान पर माही में सोम एवं जाखम
नदियाँ आकर मिलती है। यहाँ इनके संगम को त्रिवेणी कहते हैं जहाँ हर वर्ष माघ पूर्णिमा को आदिवासियों का
बेणेश्वर मेला (आदिवासियों का कुम्भ) लगता है।
बाँसवाड़ा के बोरखेड़ा ग्राम के पास इस पर माही बजाज
सागर बाँध बनाया गया
सोम
उद्गम तहसील खेरवाड़ा में ऋषभदेव
(उदयपुर) के निकट बीछामेड़ा की पहाड़ियाँ हैं।
यह नदी उद्गम से दक्षिण-पूर्व दिशा में
उदयपुर व डूंगरपुर में बहकर उदयपुर वडूंगरपुर की सीमा बनाती हुई बेणेश्वर स्थान पर
माही में मिल जाती है।
जाखम, टीडी, गोमती व
सारनी इसकी सहायक नदियाँ हैं।
जाखम
यह प्रतापगढ़ जिले में छोटी सादड़ी के
निकट की पहाड़ियों से निकलकर प्रतापगढ़, उदयपुर व
डूंगरपुर में बहकर बेणेश्वर (डूंगरपुर) के पास सोम नदी में मिल जाती है।
सहायक - करमाई, सूकली।
अनास नदी
उद्गम-मध्यप्रदेश में आम्बेर गाँव के
निकट विंध्याचल की पहाड़ियाँ।
यह राजस्थान में बाँसवाड़ा के
मेलेडिखेड़ा गाँव के पास प्रवेश करती है व डूंगरपुर में गलियाकोट के निकट माही में मिल जाती है।
हरण इसकी सहायक नदी है।
मोरेन नदी
यह डूंगरपुर की पहाड़ियों से निकल कर
गलियाकोट के निकट माही में मिल जाती है।
दक्षिण पूर्वी राजस्थान की मुख्य
नदियाँ
चम्बल
उद्गम : मध्यप्रदेश में इन्दौर जिले के
महू के निकट विंध्याचल पर्वत की जानापाव पहाड़ी।
अन्य नाम . (अ)चर्मण्वती, (ब)कामधेनु
बहावक्षेत्र: उद्गम स्थल से 320 किमी उत्तर में बहने के बाद मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की भानपुरा
तहसील के चौरासीगढ़ के निकट से यह राजस्थान की भैंसरोड़गढ़ तहसील में प्रवेश करती
है तथा दक्षिणी पूर्वी राजस्थान चित्तौड़गढ़, कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, करौली व धौलपुर में बहती हुई उत्तर प्रदेश में इटावा जिले के
मुरादगंज के निकट यमुना में मिल जाती है।
यह सवाईमाधोपुर से धौलपुर जिले तक
राजस्थान व मध्य प्रदेश की सीमा बनाती है।
चम्बल यमुना की मुख्य सहायक नदी है।
चम्बल तीन राज्यों - मध्यप्रदेश, राजस्थान व उत्तरप्रदेश में बहती है।
यह राजस्थान व मध्यप्रदेश की 252 किमी सीमा बनाती है।
यह राजस्थान की बारहमासी नदी है
कुल लम्बाई 1051 किमी है। इसमें से राजस्थान में यह केवल 322 किमी बहती है।
यह नदी बीहड़ भूमि एवं कंदराओं के लिए
विख्यात है।
राज्य में मिट्टी का अवनालिका अपरदन
सर्वाधिक इसी नदी से होता है।
सहायक नदियाँ : मध्यप्रदेश में मिलने
वाली : सीवान,
रेतम, शिप्रा, राजस्थान में मिलने वाली: आलनिया, परवन, बनास, काली सिंध, पार्वती, बामनी, कुराल, मेज, छोटी काली सिंध, सीप आदि।
इस पर भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़) के
निकट चूलिया प्रपात है। यहाँ चम्बल लगभग 60 फीट ऊँचाई
से गिरती है।
भैंसरोड़गढ़ के पास इसमें बामनी नदी
मिलती है।
इस नदी पर गाँधी सागर (मध्यप्रदेश में)
तथा राजस्थान में राणाप्रताप सागर, जवाहर सागर
बाँध व कोटा बैराज बने हुए हैं।
सर्वाधिक बीहड़ व कन्दराएँ (Ravines) इसी नदी क्षेत्र में है।
राज्य में सतही जल सर्वाधिक मात्रा में
चम्बल नदी में उपलब्ध है।
यह चौरासीगढ़ (मध्यप्रदेश) से कोटा तक
एक लम्बी गार्ज (Gorge; महाखड्ड
)में बहती हुई आती है।
कुनु (कुनोर)
उद्गमः गुना (मध्यप्रदेश)
प्रवाह : यह मध्यप्रदेश के गुना से
निकलकर बारां जिले के मुसेरी गाँव में प्रवेश करती है। बारां जिले से पुनः यह
मध्यप्रदेश में बहकर करौली की सीमा पर चम्बल में मिल जाती है।
पार्वती
मध्यप्रदेश में विंध्यपर्वत श्रेणी में
सेहोर क्षेत्र से निकलकर राजस्थान में यह बांरा में करयाहाट के निकट छतरपुरा गाँव
में प्रवेश करती है तथा बाराँ व कोटा में बहकर सवाईमाधोपुर व कोटा की सीमा पर पाली
गाँव के निकट चम्बल में मिल जाती है।
सहायकः लासी, बरनी, बैथली, अंधेरी, रेतड़ी, अहेरी, डूवराज, बिलास।
काली सिंध
देवास (मध्यप्रदेश) के पास बागली गाँव
की पहाड़ियों से निकलकर यह नदी झालावाड़ में रायपुर के निकट बिन्दा गाँव में राजस्थान में
प्रवेश करती है। राज्य में यह झालावाड़ तथा कोटा व बाराँ की सीमा पर बहती हुई कोटा
के नानेरा ग्राम के समीप चम्बल में मिल जाती है।
आहू, परवन, आमझर, चौंली, उजाड़ इसकी
सहायक नदियाँ हैं।
राजस्थान में यह 145 किमी बहती है।
कुराल
ऊपरमाल के पठार से निकलकर बूंदी के
पूर्व में बहती हुई चम्बल में मिल जाती है।
आहू
यह सुसनेर (मध्यप्रदेश) के निकट से
निकलकर झालावाड़ में नंदपुर के समीप प्रवेश करती है तथा कोटा व झालावाड़ की सीमा
पर बहती हुई गागरोन (झालावाड़) में काली सिंध में मिल जाती है।
गागरोन का किला आहू व काली सिंध नदियों
के संगम पर स्थित है।
नेवज
मध्यप्रदेश में विंध्यपर्वत के उत्तरी
भाग से निकलकर राजगढ़(मध्यप्रदेश) जिले से होती हुई राजस्थान में झालावाड़ (नीमाज)
जिले में कोलूखेड़ी के निकट प्रवेश करती है व बाराँ तथा झालावाड़ की सीमा पर मवासा
(अकलेरा) के निकट परवन नदी में मिल जाती है।
परवन
मध्यप्रदेश से निकलकर राजस्थान में
झालावाड़ में खारीबोर गाँव के निकट प्रवेश कर झालावाड, कोटा व बाराँ में बहकर कोटा की सीमा पर पलायता (बाराँ) के निकट
कालीसिंध में मिलती है।
बारा जिले में शेरगढ़ अभयारण्य इसी नदी
के पास है।
निमाज (नेवज),धार व छापी इसकी सहायक नदियाँ हैं।
मेज
मेज नदी भीलवाड़ा की मांडलगढ़तहसील से निकलकर बूंदी जिले में बहती हुई
कोटा के भैस खाना के पास बूंदी की सीमा पर चम्बल में मिल जाती है।
बाजन, कुराल व माँगली इसकी सहायक नदियाँ हैं। घोड़ा-पछाड़ नदी माँगली की
सहायक नदी है जो बिजौलिया की झील से निकल कर माँगली नदी में मिलती है।
आलनिया
यह कोटा में मुकुन्दवाड़ा की पहाड़ियों
से निकलकर नोटाना गाँव में चम्बल में मिल जाती है।
चाकण
यह नदी बूंदी जिले के कई छोटे नदी-नालों से मिलकर बनी है जो सवाईमाधोपुर के
करनपुरा गाँव में चम्बल में मिल जाती है।
बूंदी जिले की नैनवा तहसील में इस पर
चाकण बाँध बनाया गया है।
छोटी काली
मध्यप्रदेश से निकलकर झालावाड़ जिले में
मागसी गाँव के पास प्रवेश करती है
एवं मध्यप्रदेश
सिंधी की सीमा पर झालावाड़ के मकेरिया
गाँव के निकट चंबल नदी में मिल जाती है।
बामनी
हरिपुरा (चित्तौड़गढ़) की पहाड़ियों से
निकलकर भैंसरोड़गढ़ के निकट चम्बल में मिलती है।
बनास
उद्गमः राजसमंद में कुंभलगढ़ के निकट
खमनौर की पहाड़ियाँ। (वन की आशा)
यह राजसमंद में कुंभलगढ़ के दक्षिण में
गोगून्दा के पठार से होकर चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक में
बहकर सवाईमाधोपुर की खंडार तहसील में रामेश्वर धाम (पदरा गाँव के निकट ) में चम्बल
में मिल जाती है।
पूर्णतः राजस्थान में बहने वाली यह सबसे
लम्बी नदी है जो 512 किमी लम्बी
है
यह पूर्णतः बरसाती नदी है।
राज्य में इसका जलग्रहण क्षेत्र सर्वाधिक
है।
सहायक नदियाँ -
दायीं तरफ से मिलने वाली नदियाँ-बेडच व
मेनाल।
बायीं तरफ से मिलने वाली नदियाँ-कोठारी, खारी, माशी, डाई, ढील, सोहादरा, मोरेल व
कालीसिल।
टोंक जिले में टोडारायसिंह के पास
बीसलपुरा गाँव में बीसलपुर बाँध इसी नदी पर निर्मित्त है।
भीलवाड़ा में बीगोद के निकट बनास, बेड़च व मेनाल नदियों का त्रिवेणी संगम है। इसी से लगभग 26 किमी. दूर पर्यटन स्थल मैनाल स्थित है। जहाँ मेनाल जल प्रपात (Menal Waterfalls) है।
बेड़च
यह उदयपुर के उत्तर में गोगुन्दा की
पहाड़ियों से निकलती है तथा उदयपुर, चित्तौड़गढ़
में बहती हुई भीलवाड़ा में मांडलगढ़ तहसील में बीगोद
के निकट बनास नदी में मिल जाती है। वहीं मेनाल नदी भी इसमें मिलती है। इनके संगम
स्थल को त्रिवेणी कहते हैं। यह 157 किमी लम्बी
है। यह उदयसागर झील में आकर मिलती है।
प्रारंभ में इसे आयड़ नदी के नाम से तथा
उदयसागर झील के उपरांत इसे बेड़च नदी कहते हैं।
चित्तौड़गढ़ की गंभीरी, गुजरी, ओराई व
वागन नदियाँ इसकी सहायक नदियाँ हैं।
चित्तौड़गढ़ के अप्पावास गांव के निकट
इस नदी पर घोसुण्डा बाँध बना हुआ है।
प्राचीन आहड़ सभ्यता इसी नदी बेसिन में
फली-फूली थी।
गंभीरी
यह बेड़च की सहायक नदी है, जो मुख्यतः चित्तौड़गढ़ जिले में बहती है।
कोठारी
उद्गम : दिवेर (राजसमंद्र)
बहाव क्षेत्रः राजसमंद व भीलवाड़ा जिले
में बहकर नन्दराय (भीलवाड़ा) के निकट बनास में मिल जाती है। इसकी सहायक नदी बहामनी
भीलवाड़ा के चौप्पन गाँव में इसमें मिलती है।
भीलवाड़ा को पेयजल की आपूर्ति करने हेतु
माण्डल से 8 किमी. दूर मेजा बाँध कोठारी नदी पर
निर्मित्त है।
खारी
यह राजसमंद में देवगढ़ तहसील के बिजराल
ग्राम की पहाड़ियों से निकलती है तथा राजसमंद, भीलवाड़ा, अजमेर व
टोंक में बहकर देवली के निकट बनास में मिल जाती है।
मान्सी इसकी सहायक नदी है।
मासी
यह भीलवाड़ा जिले के करनगढ़ के पास से
निकलकर अजमेर जिले की सीमा पर खारी नदी में मिल जाती है।
माशी
यह नदी किशनगढ़ (अजमेर) की पहाड़ियों से
निकलकर अजमेर वाटोंक में बहती हुई टोंक के निकट बनास में मिल जाती है।
बाण्डी इसकी सहायक नदी है
जो जयपुर जिले से निकलकर टोंक जिले में इसमें मिल जाती
है। मामला
मोरेल
जयपुर जिले की बस्सी तहसील के चैनपुरा
गाँव की पहाड़ियों से निकलकर दौसा व सवाईमाधोपुर में बहती हुई करौली के हाड़ोती गाँव के निकट
बनास में मिल जाती है।
दूँढ इसकी मुख्य सहायक नदी है जो जयपुर
से निकलती है।
मोरेल नदी पर दौसा व सवाई माधोपुर की
सीमा पर पीलूखेड़ा (सवाईमाधोपुर) के निकट मोरेल बाँध बनाया गया है।
कालीसिल
यह करौली जिले की सपोटरा तहसील की
पहाड़ियों से निकलकर हाडौती के निकट मोरेल के साथ मिलकर बनास में गिरती है।
डाई नदी
अजमेर जिले की नसीराबाद तहसील में
अरावली की पहाड़ियों से निकलकर अजमेर व टोंक में बहकर बीसलपुर के निकट बनास में
मिल जाती है।
सोहादरा
यह अजमेर जिले से निकलकर
टोंक जिले के ढूंढिया गाँव के पास में माशी में मिल जाती है।
ढील नदी
यह बावली गाँव (टोंक) से
निकलकर सवाईमाधोपुर जिले में बनास में मिल जाती है।
पूर्वी राजस्थान की नदियाँ
साबी नदी -
यह जयपुर व सीकर की सीमा पर सेवर
(जयपुर) पहाड़ियों से निकलकर अलवर जिले की बानसूर, बहरोड़, किशनगढ़ बास, मंडावर व
तिजारा तहसील में बहने के बाद हरियाणा में गुड़गाँव जिले में कुछ दूर तक प्रवाहित
हो कर पटौदी के उत्तर में भूमि में विलीन हो जाती है।
साबी नदी वर्षा ऋतु में अपनी विनाशलीला
के लिए प्रसिद्ध है।
मेन्था -
यह जयपुर जिले के मनोहरपुर से निकल कर
नागौर में प्रवेश कर सांभर झील में गिरती है।
रूपनगढ़ नदी -
यह अजमेर के नाग पहाड़ रिजर्व फोरेस्ट
से निकलकर सांभर झील में गिरती है।
बाणगंगा
उद्गम : जयपुर में बैराठ की पहाड़ियाँ ।
सहायक नदियाँ : गुमटी नाला, सूरी नदी व पलोसन नदी।
इसकी लम्बाई 240 किमी है
यह जयपुर, दौसा व भरतपुर में बहकर उत्तरप्रदेश के फतेहबाद के पास यमुना में मिल
जाती है।
रुपारेल नदी
यह नदी अलवर जिले के थानागाजी रिजर्व
फोरेस्ट की उदयनाथ पहाड़ी से निकलकर अलवर
(वाराह नदी) व भरतपुर में बहकर भरतपुर जिले के कुसलपुर गाँव के
निकट विलुप्त हो जाती है।
गंभीर
उद्गमः करौली तहसील (करौली)
यह करौली, सवाईमाधोपुर व भरतपुर में बहकर उत्तरप्रदेश में प्रवेश करती है ।
पुन: यह नदी धौलपुर में बहकर उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले में यमुना में मिल
जाती है।
पाँचना, सेसा, खेर व
पार्बती इसकी मुख्य सहायक नदियाँ है।
खानवा युद्ध का मैदान इसी नदी के पास
स्थित है।
पार्बती
यह करौली जिले की सपोटरा तहसील के छावर
गाँव की पहाड़ियों से निकलकर धौलपुर में गंभीर नदी में मिल जाती है।
इस नदी पर धौलपुर में अंगाई गाँव के पास
पार्वती बाँध बनाया गया है।
सहायक नदियाँ:- सेरनी, मेंढका।
परीक्षा के दृष्टिकोण से नदियों की लम्बाई
बनास- 480 किमी.
माही- 576 किमी.
लूनी - 350 किमी.
बाणगंगा- 380 किमी.
चम्बल - 965/966 किमी. जिसमें से राजस्थान में लम्बाई है - 153 किमी. या 135 किमी.
नदियों के किनारे/संगम पर बने दुर्ग :
गागरोन का किला (झालावाड़) - आहू व कालीसिंध नदी के
संगम पर
भैंसरोड़गढ़ दुर्ग (चित्तौड़गढ़) - चम्बल व बामनी
नदियों के संगम पर
शेरगढ़ (कोशवर्द्धन) दुर्ग (बाराँ) - परवन नदी के
किनारे
चित्तौड़गढ़ दुर्ग (चित्तौड़गढ़) - गंभीरी और बेड़च
नदियों के संगम स्थल के निकट पहाड़ी पर
मनोहर थाना दुर्ग (झालावाड़) - परवन और कालीखाड़
नदियों के संगम पर
गढ़ पैलेस, कोटा (कोटा दुर्ग)
- कोटा में चम्बल नदी के किनारे
जालौर दुर्ग (सुवर्णगिरी), जालौर - सूकड़ी नदी के किनारे पहाड़ी पर बना हुआ है।
नदियों में या उनके निकट स्थित अभयारण्य :
राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभयारण्य - चम्बल नदी
जवाहर सागर अभयारण्य - चम्बल नदी
शेरगढ़ अभयारण्य (बाराँ) - परवन नदी
बस्सी अभयारण्य (चित्तौड़गढ़) - ओरई व बामनी
(ब्राह्मणी) नदियों का उद्गम
भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़) - चम्बल व बामनी
फुलवारी की नाल - मानसी, वाकल व सोम नदी
नदियों के त्रिवेणी संगम स्थल :
बनास-मेनाल-बेड़च (त्रिवेणी) - बीगोद के पास (भीलवाड़ा) में
माही-जाखम-सोम - बेणेश्वर (डूंगरपुर)
बनास, चम्बल व सीप -
रामेश्वर घाट (स. माधोपुर)
महत्त्वपूर्ण तथ्य :
कांठल : माही नदी के कांठे में स्थित
प्रतापगढ़ का भू भाग।
नाली : हनुमानगढ़ में घग्घर नदी के पाट
को 'नाली' के नाम से जानते हैं।
लिटिल रन : कच्छ की खाड़ी के क्षेत्र का
मैदान 'लिटिल रन' के नाम से जाना जाता है।
सीसारमा व बुझड़ा नदी : उदयपुर की
पिछोला झील को भरने वाली नदी।
राजस्थान में बहने वाली ऋग्वैदिक
नदियाँ - सरस्वती व दृषद्वती।
पन्नालाल शाह का तालाब (खेतड़ी, झुंझुनूं): 1870 में सेठ
पन्नालाल शाह ने बनवाया था। खेतड़ी के राजा अजीतसिंह के आमंत्रण पर पधारे स्वामी
विवेकानन्द को इसी तालाब के किनारे बने आवास में ठहराया गया था।
बाणगंगा को रुण्डित (Beheaded River) नदी भी कहते हैं।
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