पशु सम्पदा




राज्य में विभिन्न आर्थिक संसाधनों में पशुपालन एवं पशु उत्पाद प्रसंस्करण से लगभग 9-10 प्रतिशत राजस्व की प्राप्ति होती है। 
राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान लगभग 10.21 प्रतिशत है। 
शुष्क क्षेत्र में पशुपालन व्यवसाय का योगदान 50 प्रतिशत तक है। 
पशुपालन क्षेत्र की विकास दर (4-6 प्रतिशत) कृषि की तुलना में हमेशा उच्च रही है। 
इस क्षेत्र में 90 प्रतिशत श्रम महिलाओं द्वारा किया जाता है और राज्य के लगभग 70 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों की आय का प्रमुख स्त्रोत पशुपालन है।
यह व्यवसाय महिला सशक्तिकरण का प्रमुख आधार है। 
राजस्थान में देश के कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 11.62 प्रतिशत तथा ऊन का लगभग 30 प्रतिशत उत्पादन हुआ है।
राज्य की इस महत्त्वपूर्ण पशुसम्पदा का आंकलन करने हेतु हर पाँचवे वर्ष राजस्व मंडल, अजमेर द्वारा पशु संगणना की जाती है। 
भारत में प्रथम पशुगणना दिसम्बर, 1919 से अप्रेल, 1920 के मध्य हुई थी। उस समय राजस्थान की कुछ देशी रियासतों यथा - जयपुर, बीकानेर, जोधपुर, बूंदी, टोंक, किशनगढ़ आदि में भी पशुगणना प्रथम बार की गई। 
स्वतंत्र राजस्थान में 1951 में पशुसंगणना की गई। 
देश के कुल पशुधन का 11.27 प्रतिशत पशुधन राजस्थान में उपलब्ध है। 
यहाँ पर पशुधन घनत्व 169 प्रति वर्ग किलोमीटर है। 
सर्वाधिक पशु घनत्व दौसा व राजसमंद (दोनों में 292) तथा न्यूनतम पशु घनत्व जैसलमेर में 83 है। 
वर्तमान में प्रदेश में प्रति हजार जनसंख्या पर पशुओं की संख्या 842 हो गई है।
दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से हमारे देश का विश्व में प्रथम स्थान है। संयुक्त राज्य अमेरिका दूसरे व चीन तीसरे स्थान पर है। 
प्रदेश में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन क्रमशः जयपुर, श्रीगंगानगर व अलवर जिले में होता है एवं बाँसवाड़ा जिले में न्यूनतम दुग्ध उत्पादित होता है। 
देश में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 322 ग्राम प्रतिदिन थी

दुग्ध उत्पादन 
राजस्थान का देश स्थान  - उत्तरप्रदेश के बाद द्वितीय 
राजस्थान का देश के कुल उत्पादन में भाग -11.62%

ऊन उत्पादन 
राजस्थान का देश स्थान  -प्रथम
राजस्थान का देश के कुल उत्पादन में भाग -30.%

अंडा उत्पादन 
राजस्थान का देश स्थान  -प्रथम-आंध्रप्रदेश राजस्थान 14वें स्थान पर 
राजस्थान का देश के कुल उत्पादन में भाग -1.68%
मांस उत्पादन 
राजस्थान का देश स्थान  -2.68% 
राजस्थान का देश के कुल उत्पादन में भाग -प्रथम-उत्तरप्रदेश राजस्थान 12वें स्थान पर 

ऊन  - हमारे प्रदेश में जोधपुर जिला राज्य का सर्वाधिक ऊन उत्पादक जिला है। इसके बाद क्रमशः बीकानेर व नागौर का स्थान है। झालावाड़ जिले में सबसे कम ऊन उत्पादित होती है। 

अंडा - भारत विश्व में अंडा उत्पादन में चीन व यूएसए के बाद द्वितीय तथा मांस उत्पादन में चीन, यूएसए, ब्राजील, रूसी संघ व जर्मनी के बाद छठे स्थान पर है। 

भारत में विश्व का 10.71 प्रतिशत पशुधन है।

भारत के पास विश्व की 56.1% भैंसे, 12.9% गौ पशु, 13.7% बकरियाँ, 5.9% भेड़ें व 1.4% ऊँट है। 

गौवंश में भारत का विश्व में ब्राजील के बाद द्वितीय व भैंसवंश में प्रथम स्थान है। विश्व में बोवाइन (गौपशु+भैंस+याक+मिथुन) पशुधन संख्या की दृष्टि से भारत का प्रथम स्थान है। 

बकरी वंश में चीन के बाद द्वितीय तथा भेड़ में चीन व ऑस्ट्रेलिया के बाद तृतीय स्थान है। 
ऊँट की दृष्टि से भारत का सोमालिया, सूडान, केन्या, नाइजर, चाड़, मोरिटोनिया, पाकिस्तान, माली, यूथोपिया व यमन के बाद 11वाँ स्थान है। 

कुक्कुट (Chicken) की दृष्टि से चीन, यूएसए, इंडोनेशिया, ब्राजील व ईरान के बाद भारत विश्व में छठे स्थान पर है। 

राजस्थान में पशु संपदा / पशुधन
भारत राजस्थान की जीडीपी में पशुपालन एवं पशु उत्पाद का योगदान 10.30% है।
राज्य में पशु गणना हर 5 वर्ष राजस्व मंडल अजमेर द्वारा की जाती है। अक्टूबर 2012 में 19वी पशु गणना की गई ।
भारत में प्रथम पशुगणना 1919 में आयोजित की गई।
19वीं पशुगणना के अनुसार कुल 577. 32 लाख पशुधन है जो देश के कुल पशुधन का 11. 27% है ।
राज्य में पशु घनत्व 169 प्रति वर्ग किलोमीटर है।
सर्वाधिक पशु घनत्व दौसा व राजसमंद में (292) न्यूनतम पशु घनत्व जैसलमेर में (83) है ।
राजस्थान में 20 वी पशुगणना जुलाई 2017 से प्रारंभ की गई है।

पशु गणना 2017 के महत्वपूर्ण आंकड़े
   पशु             जनसंख्या (लाख में)        कुल पशुधन का %
1.   गाय               133.24                                 23.08%
2.   भैंस               129.76                                 22.48%
3.   बकरी              216.66                                37.53%
4.   भेड़               90.80                                   15.73%
5.   ऊंट               3.26                                     0.56%
6.   खच्चर            0.03                                     0.21%
7.   गधा              0.81    
8.   कुक्कुट           80.24                                   49.94%
9.   कुत्ता            5.70                                     54.29%

गाय-
राज्य में सर्वाधिक गौवंश क्रमशः उदयपुर व चित्तौड़गढ़ में तथा न्यूनतम धौलपुर में है।
देश में सर्वाधिक गौवंश मध्यप्रदेश में है। 
देश में राजस्थान का स्थान पाँचवाँ। 

राजस्थान में गाय की विभिन्न नस्लें
गीर
अन्य नाम - रेंडा व अजमेरी। 
 मूल स्थान-गुजरात का गिर वन व काठियावाड़
अधिक दूध के लिए प्रसिद्ध।
यह अजमेर भीलवाड़ा किशनगढ़ चित्तौड़गढ़ बूंदी आदि में पाई जाती है।

थारपारकर- यह जैसलमेर जोधपुर बाड़मेर में सांचौर में पाई जाती है। इसका मूल स्थान मालानी गांव जैसलमेर है।

नागौरी- यह नागौर जोधपुर बीकानेर नोखा आदि में पाई जाती है। इसका मूल स्थान नागौर जिले का सुहालक प्रदेश है। नागौरी बैल जोड़ने हेतु प्रसिद्ध है।

राठी-
इसे राजस्थान की कामधेनु भी कहा जाता है।
यह बीकानेर जैसलमेर श्रीगंगानगर चूरू आदि में पाई जाती है ।यह लाल सिंधी व साहिवाल की मिश्रित नस्ल है जो दूध देने में अग्रणी है

कांकरेज- बाड़मेर सांचौर नेहड़ क्षेत्र में पाई जाती है ।इसका मूल स्थान गुजरात का कच्छ का रण है। बोझा ढोने व दुग्ध उत्पादन हेतु प्रसिद्ध है। बेल अधिक बोझा ढोने एवं तीव्र गति के लिए प्रसिद्ध है।

हरियाणवी- सीकर झुंझुनू जयपुर गंगानगर हनुमानगढ़ आदि में पाई जाती है इसका मूल स्थान रोहतक हिसार में गुड़गांव हरियाणा है । यह दुग्ध भार वाहन दोनों दृष्टियों से उपयुक्त है।

मालवी- झालावाड़ डूंगरपुर बांसवाड़ा कोटा से उदयपुर में पाई जाती है। मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र इसका मूल स्थान है मुख्यतया भारवाही नस्ल है। सांचौर उदयपुर पाली सिरोही में पाई जाती है। अलवर भरतपुर में हल जोतने हेतु प्रसिद् है।

सांचोरी- सांचौर उदयपुर पाली सिरोही में पाई जाती है।
मेवाती- अलवर भरतपुर मैं पाई जाती है।

विदेशी नस्लें
जर्सी गाय यह नस्ल मूलतः अमेरिकी है ।यह सर्वाधिक दूध देने हेतु प्रसिद्ध है।
होलिस्टिन गाय होलिस्टिन गाय का मूल स्थान होलैंड व अमेरिका है। यह भी अधिक दूध देती है।
रेड डेन गाय रेड डेन का मूल स्थान डेनमार्क है

भैंसे
राज्य का देश में उत्तरप्रदेश के बाद दूसरा स्थान है।
राज्य में भैंस प्रजनन केंद्र वल्लभनगर (उदयपुर) है।

भैसों की नस्लें
1. मुर्रा राजस्थान में सर्वाधिक संख्या वाली नस्ल, भेस की सर्वोत्तम नस्ल।
2. जाफराबादी सर्वाधिक शक्तिशाली नस्ल।
3. मेहसाणी मूल स्थान मेहसाणा।
4. भदावरी मूलस्थान उत्तरप्रदेश।

भेड़-
देश में भेड़ों की संख्या के आधार पर राज्य का तीसरा स्थान है
सर्वाधिक भेड़ें बाड़मेर में और न्यूनतम बांसवाड़ा में पाई जाती हैं

भेड़ों की नस्लें
चोकला भेड़ झुंझुनू ,सीकर ,चूरू, बीकानेर व जयपुर जिले में यह पाई जाती है ।इससे छापर एवं शेखावाटी के नाम से भी जाना जाता है। इसे भारत की मेरिनो कहा जाता है ।इससे प्राप्त हुई फाइन  मध्यम किस्म का है।
मालपुरी भेड़ यह जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर ,बूंदी ,अजमेर ,भीलवाड़ा में पाई जाती है ।उन मोटी होने के कारण गलीचे के लिए उपयुक्त है। इसे देसी नस्ल भी कहा जाता है।
सोनाड़ी भेड़ उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ ,बांसवाड़ा भीलवाड़ा में पाई जाती है । इसका उपनाम चनोथर भी है है।
पूगल भेड़ बीकानेर के पश्चिमी भाग व जैसलमेर ,नागौर में पाई जाती है।
मगरा भेड़ इसे बीकानेरी चोकला भी कहा जाता है ।यह बीकानेर जैसलमेर और नागौर जिले में पाई जाती है।
नाली भेड़ यह गंगानगर झुंझुनू सीकर बीकानेर चूरू में पाई जाती है ।इसकी ऊन घने व लंबे रेशे वाली होती है।
मारवाड़ी भेड़ जोधपुर बाड़मेर नागौर पाली सिरोही में पाई जाती है।
जैसलमेरी भेड़ यह जैसलमेर जोधपुर बाड़मेर में पश्चिमी भाग में पाई जाती है। सर्वाधिक ऊन इस नस्ल की भेड़ों से प्राप्त होती है।
भेड़ों की विदेशी नस्लें
रूसी मैरिनो भेड़ टोंक, सीकर, जयपुर में बहुतायत में पायी जाती है।
रेडबुल भेड़   टोंक 
कोरिडेल भेड़ टोंक  में बहुतायत में पायी जाती है।
डोर्सेट भेड़ चित्तौड़गढ़ में बहुतायत में पायी जाती है।

बकरी-
राजस्थान का देश में प्रथम स्थान है।
नागौर जिले का वरुण गांव बकरियों के लिए प्रसिद्ध है।
सर्वाधिक बकरियां बाड़मेर जोधपुर में जबकि न्यूनतम बकरियां धौलपुर में पाई जाती हैं।

बकरी की नस्लें
मारवाड़ी या लोही बकरी राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों जैसे जोधपुर पाली नागौर बीकानेर जालौर जैसलमेर बाड़मेर आदि में पाई जाती है । इसके शरीर से प्राप्त होने वाले बाल गलीचे हुए नंदा बनाने के काम आते हैं।
जखराना या अलवरी- मूल स्थान बहरोड़ (झखराना गांव )अलवर । यह अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध है।
बारबरी- यह बांसवाड़ा धौलपुर भरतपुर अलवर करौली सवाई माधोपुर में पाई जाती है । अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध।
सिरोही- यह अरावली पर्वतीय क्षेत्र में पाई जाती है। मांस के लिए उपयुक्त।
परबतसर- यह परबतसर नागौर अजमेर जयपुर में पाई जाती है।
जमुनापारी- यह हाड़ौती क्षेत्र कोटा बूंदी झालावाड़ में पाई जाती है ।यह अधिक मांस को दूध देने हेतु प्रसिद्ध है।
शेखावटी- सीकर सीकर झुंझुनू में पाई जाती है। बिना सिंग वाली नस्ल हैं।

ऊँट
भारत में राजस्थान का प्रथम स्थान
बाड़मेर बीकानेर चूरू में सर्वाधिक
नाचना ऊँट अपनी सुंदरता एवं बोझा ढोने के लिए प्रसिद्द
केंद्रीय ऊँट अनुसंधान संसथान जोड़बीड़ (बीकानेर) में है ।

मुर्गी पालन
सबसे उन्नत नस्ल की मुर्गियाँ अजमेर में पायी जाती है ।
कड़कनाथ योजना बांसवाड़ा में मुर्गी पालन के लिए चलायी गयी योजना।
नस्लें असील, बरसा, टेनी, वाइट लेगहॉर्न,इटेलियन।
राजकीय कुक्कुट प्रशिक्षण केंद्र अजमेर में है ।
राज्य कुक्कुट फार्म जयपुर में है ।

भेड़ व ऊन विकास 
भारत में भेड़पालन व ऊन उत्पादन की दृष्टि से राजस्थान का विशेष महत्त्व है। 
राज्य का ऊन उत्पादन में देश में प्रथम स्थान है। 

भेड़ प्रजनन केन्द्रों की स्थापना : 
भेड़ों के नस्ल सुधार हेतु भेड़ मेढ़ों के पालने एवं प्रदेश के भेड़ पालकों को प्रजनन हेतु उपलब्ध करवाए जाने के लिए पशुपालन विभाग के अधीने फतेहपुर (सीकर) में भेड़ प्रजनन फार्म कार्यरत है। इसकी एक इकाई बाँकलिया (नागौर) में स्थापित की गई है।
केन्द्रीय भेड़ व ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, मालपुरा (टोंक): 
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा यह केन्द्र सन् 1962 में स्थापित किया गया था। इसका मरु क्षेत्रीय परिसर बीछवाल (बीकानेर) में है।
केन्द्रीय ऊन विकास बोर्डः 1987 में जोधपुर में केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड स्थापित किया गया है। 
भेड़ व ऊन प्रशिक्षण संस्थान, जयपुर : भेड़ व ऊन संबंध तकनीकी प्रशिक्षण के लिए जयपुर में भेड़ व ऊन प्रशिक्षण संस्थान संचालित किया जा रहा है। 
केन्द्रीय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला, बीकानेर: 
राजस्थान में विभिन्न प्रकार की भेड़ों से प्राप्त ऊन का वैज्ञानिक विश्लेषण व गहन अध्ययन करने तथा नमूनों की जाँच करने हेतु 1965 में इस प्रयोगशाला की स्थापना की गई। 

कुक्कुट
सर्वाधिक कुक्कुट सम्पदा अजमेर में तथा न्यूनतम बाड़मेर में है।
मुर्गियों की नस्लें
देशी नस्लें- वनराजा, ग्रामप्रिया, कृष्णा जे, नन्दनम, ग्रामलक्ष्मी। 
संकर प्रजाति- कैरी श्यामा, कैरी निर्भीक, हितकारी व उपकारी। 

मत्स्य पालन 
मत्स्य उत्पादन में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है तथा ताजा जल में मछली के उत्पादन में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। 
भारत में सर्वाधिक मछली उत्पादन क्रमशः आंध्रप्रदेश व पश्चिम बंगाल में होता है। राजस्थान में केवल अंतर्देशीय जलक्षेत्रों में ही मत्स्यपालन किया जाता है। 
यहाँ मुख्यतः कतला, रोहू व मृगल आदि देशी प्रजाति की मछलियाँ तथा कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प एवं ग्रास कार्प आदि विदेशी प्रजाति की मछलियाँ पाली जाती हैं। मत्स्यपालन में प्रशिक्षण हेतु मत्स्य प्रशिक्षण विद्यालय, उदयपुर में कार्यरत है। विभिन्न सर्वेक्षण एवं अनुसंधान कार्यों हेतु मत्स्य सर्वेक्षण एवं अनुसंधान कार्यालय, उदयपुर में स्थापित है।
राष्ट्रीय मत्स्य बीज उत्पादन फार्म कासिमपुरा (कोटा) तथा भीमपुरा (बाँसवाड़ा) में कार्यरत हैं


डेयरी विकास 
वर्तमान में राजस्थान में डेयरी विकास कार्यक्रम सहकारिता के आधार पर गुजरात की आणंद सहकारी डेयरी संघ की पद्धति (अमूल पद्धति) पर क्रियान्वित किया जा रहा है।
सन् 1970 में राजस्थान सहित 10 राज्यों में 'ऑपरेशन फ्लड' कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया, जिसके सूत्रधार स्व. डॉ. वर्गीज कूरियन थे। 
ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य दुग्ध उत्पादन को बढ़ाना, दुग्ध उत्पादकों को दूध का उचित मूल्य दिलवाना तथा उपभोक्ताओं तक अच्छी किस्म के दूध का वितरण सुनिश्चित करना था। इससे भारत में श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई।
सन् 1972-73 में राज्य में डेयरी विकास विभाग के तहत् जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघों की स्थापना की गई। वर्ष 1975 में विश्व बैंक सहायता कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य में राजस्थान राज्य डेयरी विकास निगम की स्थापना की गई जिसे वर्ष 1977 में राजस्थान सहकारी डेयरी फैडरेशन में स्थानान्तरित कर दिया गया।

वर्तमान में प्रदेश में डेयरी विकास कार्यक्रम का संस्थागत ढाँचा निम्न प्रकार है: 
शीर्ष स्तर : राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन (RCDF)  
जिला स्तर : जिला दुग्ध उत्पादक संघ
प्राथमिक स्तर

शीर्ष स्तर : राजस्थान सहकारी डेयरी फेडरेशन (RCDF) : 
राज्य के पशुपालकों को उनके दूध का उचित मूल्य दिलाने व उपभोक्ताओं को शुद्ध दुग्ध उपलब्ध कराने हेतु शीर्ष संस्था के रूप में 1977 में स्थापित । राज्य में दुग्ध विकास कार्यक्रम के संचालन का दायित्व इसी पर है। RCDF 'सरस' ब्रांड से दुग्ध व दुग्ध उत्पाद उपलब्ध करवाता है। 
जिला स्तर : जिला दुग्ध उत्पादक संघ : 
ग्रामीण अंचल में डेयरी परियोजनाओं की सुनिश्चित क्रियान्विति हेतु जिला स्तर पर जिला दुग्ध उत्पादक संघ स्थापित किए गए। राज्य में 21 जिला दुग्ध उत्पादक संघ हैं, जो RCDF से सम्बद्ध हैं। ये प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों से दुग्ध संकलित कर उसका विधायन करते हैं एवं दुग्ध तथा उसके उत्पादों का विपणन करते हैं। 
प्राथमिक स्तर : 
प्राथमिक सहकारी दुग्ध उत्पादक समितियाँ दुग्ध उत्पादकों से दूध एकत्रित कर जिला दुग्ध उत्पादक संघ को उपलब्ध कराती हैं । दुग्ध प्रसंस्करण एवं विपणन का कार्य RCDF के अधीन डेयरी संयंत्र व अवशीतन केन्द्रों द्वारा सम्पन्न किया जाता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन राज्य सूची का विषय है। इसलिए इसके विकास की समग्र जिम्मेदारी राज्य की ही है। 
ऑक्सीटोसिनः यह इंजेक्शन लगाकर पशुपालक दुधारू पशुओं से दूध निकालता है। यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
बरसीमः रबी में बोई जाने वाली दलहनी चारा फसलों में बरसीम का प्रमुख स्थान है। यह पशुओं के लिए उत्तम और पौष्टिक हरा चारा प्रदान करने के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाती है। इसके लिए मटियार दुमट मिट्टी सर्वोत्तम रहती है। बरसीम फसल की उच्च गुणवत्ता के कारण इसे 'चारे की फसलों को राजा' कहा जाता है। 
रिजका (लूसर्न): रिजका चारे की एक महत्त्वपूर्ण दलहनी फसल है जो जून माह तक हरा चारा देती रहती है। 

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी): 
आणंद, गुजरात में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड 1965 में स्थापित किया गया था और इसे 1987 में एनडीडीबी अधिनियम के तहत एक सांविधिक निकाय घोषित किया गया है। यह देश में सहकारिता की तर्ज पर डेयरी विकास की गति में तेजी लाने के उद्देश्य से एक प्रमुख संस्थान है। 
संकर प्रजनन (Cross Breeding): पशुओं की नस्ल सुधार हेतु एक नस्ल की मादा पशुओं का अन्य उत्तम नस्ल के नर पशुओं से प्रजनन कराना। 
चयनित प्रजनन ( Selective Breeding): पशुओं की नस्ल सुधार हेतु देशी नस्ल की मादा पशुओं का उसी नस्ल के चुने हुए उत्तम नर पशुओं से प्रजनन कराना। 
श्वेत क्रांति- ऑपरेशन फ्लड के कार्यक्रमों से दुग्ध उत्पादन में हुई आशातीत वृद्धि ही श्वेत क्रांति कहलाती है। 
बीकानेर एशिया की ऊन की सबसे बड़ी मंडी है। 
राज्य का एकमात्र पक्षी चिकित्सालय जयपुर में सांगानेरी गेट के पास जौहरी बाजार में सन् 1953 में स्थापित किया था। 
चेवणी : बकरी के मांस को इस नाम से भी जाना जाता है। बकरी को 'गरीब की गाय' कहते हैं। 
आइबोमिक्स : काजरी के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार रासायनिक मिश्रण, जिसे पानी में मिलाकर भेड़-बकरी को पिलाने से उनके दूध में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। यह अकाल में चारे के अभाव के संकट से उबरने में सहायक होता है।
तरड़िया रोग भेड़ों में पाया जाने वाला रोग।
वरमूल डेयरी, जोधपुर - Western Rajasthan Milk Union Ltd.
उरमूल डेयरी, बीकानेर - Uttari Rajasthan Milk Union Ltd. 
गंगमूल डेयरी, श्रीगंगानगर - GangaNagar Milk Union Ltd.

राजस्थान में गौवंश की प्रमुख दुधारू नस्ले -  गीर, थारपारकर एवं राठी 
प्रमुख भारवाही नस्लें - मालवी नागौरी
प्रमुख दुधारू एवं भारवाही (दोनों) नस्लें हैं - कांकरेज एवं हरियाणवी 
बहरोड़ (अलवर) पशु मेले में मुर्रा नस्ल की भैंसों का क्रय-विक्रय मुख्य रूप से होता है।
लूणियावास (जयपुर) ग्राम पंचायत के भावगढ़ बंधा में गधों एवं खच्चरों का विख्यात मेला लगता है। 
गोमठ (फलौदी) का ऊँट सवारी के लिए उत्तम है। ऊँट पालक जाति 'रेबारी' कहलाती है। ऊँट की कूबड़ में एकत्रित वसा रेगिस्तान में उसकी ऊर्जा का स्रोत है। ऊँट को रेगिस्तान का जहाज कहते हैं। 
ठप्पा रोग (Black Quarter): भैंस में पाया जाने वाला रोग।
गरिमा- विश्व की प्रथम क्लोन्ड भैंस।  
महिमा- विश्व की प्रथम क्लोन्ड कटड़ी (भैंस की बच्ची)।
विश्व वेटरनरी दिवस- 24 अप्रैल। 
भारतीय गायों को 'Tea cup cow' जबकि बकरी को 'गरीबों की गाय' कहा जाता है।
सर्वाधिक भेड़ें ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती है। 
वैज्ञानिक नाम - 
भैंस का वैज्ञानिक नाम 'बुबेलस' है। 
गाय का वैज्ञानिक नाम 'बॉस इंडिसस' है। 
भेड़ का वैज्ञानिक नाम 'ओविस एरोज' है। 
भारत में सर्वाधिक दूध देने वाली बकरी 'बारबरी' है। 

भारत में सर्वाधिक दूध देने वाली भैंस 'मुर्रा' है। 
सूअर का मांस 'पोर्क' कहलाता है। 
"भैसों की गर्भावधि 310 दिनों, बकरी की 150 दिनों तथा ऊँट की 365 से 400 दिनों की होती है

प्रमुख पशु मेले
श्री मल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा (बाड़मेर) 
मुख्य रूप से क्रय- विक्रय गौवंश  - थारपारकर, काँकरेज 
चैत्र कृष्णा 11 से चैत्र शुक्ला 11 (मार्च-अप्रैल) 
यह मेला लूनी नदी के किनारे भरता है।

श्री बलदेव पशु मेला, मेड़तासिटी (नागौर) 
मुख्य रूप से क्रय- विक्रय गौवंश  - नागौरी 
चैत्र शुक्ला 1 से पूर्णिमा तक (मार्च-अप्रैल)

श्री वीर तेजाजी पशु मेला, परबतसर (नागौर) 
मुख्य रूप से क्रय- विक्रय गौवंश  - नागौरी
श्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद अमावस्या (अगस्त) 

श्री रामदेव पशुमेला, मानासर (नागौर) 
मुख्य रूप से क्रय- विक्रय गौवंश  - नागौरी 
मार्गशीर्ष शुक्ला 1 से माघ पूर्णिमा (जनवरी-फरवरी) 

श्री गोमतीसागर पशु मेला, झालरापाटन (झालावाड़)। 
मुख्य रूप से क्रय- विक्रय गौवंश  - मालवी 
वैशाख सुदी 13 से ज्येष्ठ बुदी 5 तक (मई) 

श्री चन्द्रभागा पशुमेला, झालरापाटन (झालावाड़) 
मुख्य रूप से क्रय- विक्रय गौवंश  - मालवी 
कार्तिक शुक्ला 11 से मार्गशीर्ष कृष्णा 5 तक (नवम्बर-दिसम्बर) 

श्री गोगामेड़ी पशु मेला, गोगामेड़ी (हनुमानगढ़)
श्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद पूर्णिमा तक (अगस्त-सितम्बर) 

श्री जसवंत पशु मेला, भरतपुर
मुख्य रूप से क्रय- विक्रय गौवंश  - हरियाणवी 
आश्विन शुक्ला 5 से 14 तक (सितम्बर-अक्टूबर) 

श्री कार्तिक पशु मेला, पुष्कर (अजमेर)
कार्तिक शुक्ला 8 से मार्गशीर्ष कृष्णा 2 तक (नवम्बर)

श्री महाशिवरात्रि पशु मेला, करौली
मुख्य रूप से क्रय- विक्रय गौवंश  - हरियाणवी
माघ पूर्णिमा से फाल्गुन कृष्णा सप्तमी (फरवरी)





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Milan Tomic

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