राजस्थान के इतिहास
में सर्वाधिक शौर्य का प्रतीक चित्तौड़गढ़ है चित्तौड़गढ़ लम्बे समय तक मेवाड़ की
राजधानी रहा। बप्पा रावल ने यहाँ गुहिलवंश का शासन स्थापित किया।
मातृकुण्डिया - चित्तौड़गढ़ जिले की राशमी पंचायत समिति में हरनाथपुरा गांव के पास चन्द्रभागा
व बनास नदी के किनारे है यह तीर्थ मेवाड़ का हरिद्वार' कहा जाता है। यहाँ पवित्र जल में अस्थियाँ
प्रवाहित की जाती
है। यहाँ प्रसिद्ध लक्ष्मण झूला (हरिद्वार की भाँति) भी है।
समिद्धेश्वर मंदिर - इसे मोकलजी का मंदिर भी कहते हैं।चित्तौड़गढ़ दुर्ग मे है, यह शिव मंदिर 11वीं शताब्दी मे बनवाया गया, मालवा के परमार राजा भोज द्वारा। (यह नागर शैली में निर्मित है) महाराणा मोकल
ने 1428 ई. में इसका जीर्णोद्धार करवाया (सूत्रधार जैता के
निर्देशन में)।
सांवलिया जी मंदिर, मंडफिया
चित्तौड़गढ़ के मण्डफिया गाँव में सांवलिया जी का विश्वविख्यात मंदिर स्थित
है। यहाँ काले पत्थर की श्रीकृष्ण मूर्ति है। भक्त लोग इन्हें सांवलिया सेठ कहते
हैं । जलझूलनी एकादशी के मेले में सांवलिया
जी की प्रतिमा को
चाँदी के भव्य रथ में बैठाकर पास में स्थित सरोवर में स्नान कराने हेतु ले जाया
जाता है।
मीरा मंदिर
मीरां बाई का यह
मंदिर चित्तौड़गढ़ दुर्ग में इन्डो-आर्य शैली में निर्मित्त है।
रैदास की छतरी
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
में मीरां के मंदिर के सामने संत रैदास की छतरी स्थित है।
शृंगार चँवरी
शान्तिनाथ जैन
मंदिर जिसे महाराणा कुंभा के कोषाधिपति के पुत्र वेलका ने बनवाया था। यह
चित्तौड़गढ़
किले में ही स्थित
है।
सतबीस देवरी
11वीं सदी में चित्तौड़गढ़ दुर्ग के अंदर बना एक भव्य जैन मंदिर, जिसमें 27 देवरियाँ होने के कारण
शम्मका 'सतबीस देवरी' कहलाता है।
चितौड़गढ़ का कुंभ
श्याम मंदिर
8वीं शती में चितौड़गढ़ दुर्ग में कुंभ श्याम मंदिर व कालिका माता (मूल रूप से
सूर्य मंदिर) जैसे विशालप्रतिहारकालीन मंदिरों का निर्माण हुआ। ये दोनों देवालय
मेवाड़ में मंदिर निर्माण के वास्तुशिल्प इतिहास में रेखांकित किये जाने वाले कोष
चिन्ह के समान हैं। ये दोनों विशाल मंदिर महामारू शैली के हैं।
महाराणा कुंभा ने 15वीं शती में कुंभ श्याम मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था।
तुलजा भवानी मंदिर
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
में स्थित मंदिर है, जिसका निर्माण उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज के दासी
पुत्र बनवीर ने
कराया था।
असावरी माता का
मंदिर
चित्तौड़गढ़ की
भदेसर पंचायत समिति के पास निकुंभ में असावरी माता (आवरी माता) का मंदिर है
जहाँ लकवे के
मरीजों का इलाज किया जाता है।
बाड़ोली के शिव
मंदिर
उत्तरगुप्तकालीन यह
मंदिर परमार राजा हुन ने बनवाया था। यह बामनी और चंबल नदी के संगम क्षेत्र मैं
राणा प्रताप सागर बाँध के निकट चित्तौड़गढ़ के भैंसरोड़गढ़ में स्थित है। इन
मंदिरों को सर्वप्रथम
प्रकाश में लाने का
कार्य 1821 में जेम्स टॉड ने किया। इनका निर्माण 8वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य हुआ। यह 9 मंदिरों का समूह है। इसमें सबसे प्रमुख मंदिर घाटेश्वर महादेव के नाम से
विख्यात है। ये
मंदिर
गुर्जर-प्रतिहार कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
पद्मिनी महल
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
में सूर्य कुण्ड के दक्षिण में तालाब के किनारे रानी पद्मिनी के महल स्थित है।
नगरी (माध्यमिका)
बेड़च नदी के
किनारे स्थित राजस्थान का प्राचीन कस्बा, जो चित्तौड़ से 13 किमी उत्तर में हैं।
चूलिया प्रपात
चित्तौड़गढ़ के
चूलिया गाँव में चम्बल नदी पर 60 फीट ऊँचा जलप्रपात
है।
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