प्राचीन समय में बीकानेर रियासत जांगल प्रदेश के नाम से जानी जाती थी। कुछ लोग इसे राती घाटी भी कहते हैं।
जोधपुर नरेश राव जोधा के पुत्र राव बीकाजी ने सन् 1465 में जांगल प्रदेश के अनेक छोटे-छोटे क्षेत्रों एवं कबीलों को करणी माता के आशीर्वाद से विजित कर इस क्षेत्र में राठौड़ राजवंश के शासन की शुरुआत की एवं बीकानेर रियासत की स्थापना की थी।
बीकाजी ने 1588 ई. में बीकानेर शहर को बसाकर उसे अपनी राजधानी बनाया।
यह क्षेत्र जसनाथी सिद्धों का अग्नि नृत्य, बीकानेर की रम्मतें तथा यहाँ की पाटा संस्कृति आदि के लिए अपना विशेष स्थान रखता है।
करणी माता का मंदिर
देशनोक स्थित यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला एवं अत्यधिक संख्या में चूहों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ काबा (मंदिर के सफेद चूहे) के दर्शन को शुभ माना जाता है।
श्रीकोलायत जी
यह कपिल मुनि की तपोभूमि है। इसका महत्त्व गंगा स्नान के बराबर है। जनश्रुति के अनुसार महर्षि कपिल ने यहाँ सांख्य दर्शन का प्रतिपादन किया था। कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ प्रसिद्ध मेला भरता है।
कोलायत में गुरुनानक देव भी पधारे थे अत: कोलायत की मान्यता सिक्ख समुदाय में भी बहुत है। सिक्खों का यहाँ एक बड़ा गुरुद्वारा भी है। कोलायत के पास के गाँव में महर्षि च्यवन तथा दत्तात्रेय की भी तपोभूमि है। इन्हें चाँदी और दियातरा गाँव के नाम से जाना जाता है। कोलायत के मेले में कोलायत झील में दीपदान की परम्परा है।
हेरम्ब गणपति
बीकानेर के तैंतीस करोड़ देवताओं की साल कहा जाता है । इस मंदिर में दुर्लभ हेरम्ब गणपति की प्रतिमा स्थित है। इस मूर्ति की विलक्षण बात यह है कि गणपति मूषक पर सवार न होकर सिंह पर सवार हैं।
भांडासर के जैन मंदिर
बीकानेर में स्थित भांडासर (भाण्डरेश्वर) जैन मंदिर में पाँचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ जी की प्रतिमा है। यह भव्य मंदिर भांडाशाह नामक ओसवाल महाजन ने बनवाया था। इसके निर्माण में पानी की जगह घी का प्रयोग किया गया था।
मुकाम-तालवा (नोखा, बीकानेर)
विश्नोई सम्प्रदाय का प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थान। यहाँ इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक जांभोजी का समाधि मंदिर है।
लालगढ़ पैलेस
महाराजा गंगासिंह द्वारा अपने पिता श्री लालसिंह की स्मृति में लाल पत्थर से निर्मित्त करवाया गया।
इसमें अनूप संस्कृत लाइब्रेरी' एवं 'सार्दुल संग्रहालय' हैं।
देवीकुंड सागर
यहाँ बीकानेर राज परिवार की छतरियाँ (समाधियाँ या स्मारक) हैं।
गंगागोल्डन जुबली
भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड लिनलिथगो ने 5 नवम्बर, 1937 को इसका उद्घाटन किया। इसे बीकानेर म्यूजियम संग्रहालय भी कहते हैं। इसमें सिंधुघाटी सभ्यता से लेकर गुप्तकाल एवं महाराजा गंगासिंहजी तक की कई पुरातात्विक वस्तुएँ संग्रहित हैं।
रामपुरिया हवेली
बीकानेर में स्थित लाल पत्थरों से निर्मित्त इस हवेली का निर्माण स्व. हीरालाल रामपुरिया ने करवाया था। यह हवेली पत्थर पर कोरनी कला का अनुपम उदाहरण है।
अन्य स्थल
शिवबाड़ी मंदिर, गजनेर वन्य जीव अभ्यारण्य, सांडेश्वर जैन मंदिर, सौंथी (प्राचीन संस्कृति के अवशेष
मिले हैं।), डोडा थोरा (प्राचीन लघु पाषाणकालीन अवशेष) आदि।
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