प्राचीन काल में देवांश/देनवसा अथवा द्यौसा आदि नामों से प्रसिद्ध था
दौसा क्षेत्र में कछवाहा राज्य के संस्थापक दुलहराय ने सन् 1137 ई. के लगभग यहाँ के बड़गूजरों को पराजित कर अपना शासन स्थापित किया तथा इसे ढूंढाड़ के कछवाहा वंश की प्रथम राजधानी बनाया।
16 अप्रैल, 1991 को जयपुर से पृथक कर दौसा जिले की स्थापना की गई।
15 अगस्त, 1992 को सवाई माधोपुर जिले की महुआ तहसील को भी दौसा जिले में सम्मिलित किया गया। दौसा जिला राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 11 पर स्थित है। दौसा नगर देवगिरि पहाड़ी की तलहटी में बसा हुआ है।
मेंहदीपुर बालाजी
बालाजी का यह प्रसिद्ध मंदिर सिकन्दरा से महुवा के बीच पहाड़ी के पास स्थित है। इसे 'घाटा
मनी मेंहदीपुर' भी कहते हैं। यहाँ स्थित मूर्ति पर्वत का ही एक अंग है।
हर्षत माता का मंदिर, आभानेरी
यह मंदिर 8वीं शताब्दी की प्रतिहार कला का अनुपम उदाहरण है। यह मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का है।
इसे चांद नामक निकुंभ राजा ने बनवाया।
झांझीरामपुरा
झांझीरामपुरा की स्थापना ठाकुर रामसिंह ने की। यहाँ झाझेश्वर महादेव का मंदिर है। यहाँ एक ही
जलहरी में 121 महादेव हैं । यहाँ निर्मित्त गौमुख से सर्दियों में गरम तथा गर्मियों में ठंडा पानी बहता है।
श्रावण मास में यहाँ विशाल मेला भरता है। यहाँ काल बाबा का मंदिर भी स्थित है।
गेटोलाव
दौसा नगर के पास स्थित इस स्थान पर संत दादू के शिष्य सुंदरदास जी की छतरी (स्मारक) है।
भाण्डारेज की बावड़ियाँ
दौसा का भाण्डारेज गाँव प्राचीन कला व संस्कृति की मिसाल है।
आभानेरी
बाँदीकुई के निकट आभानेरी एक प्राचीन नगर है जो निकुंभ क्षत्रियों की राजधानी रहा है। यहाँ 8वीं
सदी के प्रतिहारों के महामारू शैली के मंदिर है।
चाँदबावड़ी (आभानेरी बावड़ी)
बाँदीकुई (दौसा) से 8 किमी. दूर साबी नदी के निकट है इसका निर्माण 8वीं शती में प्रतिहार निकुंभ राजा चाँद ने करवाया।
मांगरेज की बड़ी बावड़ी, दौसा,
यह पाँच मंजिली विशाल बावड़ी है। इसका निर्माण यहाँ के शासक दीपसिंह कुम्भाणी और दौलतसिंह
कुम्भाणी ने करवाया। यह बावड़ी एक गुप्त सुरंग द्वारा भांडारेज के गढ़ से जुड़ी है।
आलूदा का बुबानिया कुण्ड
दौसा के आलूदा गाँव में ऐतिहासिक बावड़ी में बने कुंड बुबानिया (बदली) के आकार में निर्मित्त है।
प्रेतेश्वर भोमियाजी
दौसा दुर्ग में प्रेतेश्वर भोमियाजी का मंदिर है, जो वस्तुतः आमेर के शासक पूरणमल के विद्रोही पुत्र सूजा (सूरजमल) का स्मारक है, जिसकी लाला नरुका ने यहाँ धोखे से हत्या कर दी थी। इन्हें आस-पास के क्षेत्र में प्रेतेश्वर भोमियाजी के नाम से पूजा जाता है।
अन्य स्थल
हींगवा में नाथ सम्प्रदाय का ऐतिहासिक गुरुद्वारा,
नई का नाथ तीर्थ, दौसा का किला,
गुढ़ा का किला,
गीजगढ़ का किला,
हजरत शेखशाह जमाल बाबा की दरगाह (भांडारेज),
बनजारों की छतरियाँ (लालसोट) आदि।
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