भीलवाड़ा



मध्यकाल में यह क्षेत्र मेवाड़ रियासत के अधीन था, जो बाद में शाहपुरा की स्वतंत्र रियासत के रूप में गठित हुआ। 
भीलवाड़ा जिले के माण्डलगढ़ में मेवाड़ महाराणा संग्रामसिंह (राणा सांगा) की समाधि है। 
मराठों के विरुद्ध राजपूताने के शासकों को संगठित करने हेतु हुरड़ा स्थान पर उनका सम्मेलन हुआ था। हुरड़ा भीलवाड़ा जिले में ही है। 
राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया में मेवाड़ एवं शाहपुरा रियासत के संयुक्त राजस्थान में विलय के बाद सन् 1949 में यह एक स्वतंत्र जिले के रूप में गठित हुआ। 

शाहपुरा का रामद्वारा - शाहपुरा (भीलवाड़ा) में है l रामस्नेही सम्प्रदाय का प्रधान मठ शाहपुरा में है। रामद्वारा परिसर में ही दक्षिण की तरफ ग्राम पंक्तिवार छतरियाँ निर्मित्त हैं। उत्तर की तरफ शाहपुरा के दिवंगत राजाओं की छतरियाँ भी हैं। प्रतिवर्ष चैत्र
कृष्णा प्रतिपदा से पंचमी तक (मार्च-अप्रैल) शाहपुरा में फूलडोल का उत्सव बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। 

सवाई भोज मंदिर - भीलवाड़ा के आसींद में खारी नदी के तट पर है l यह गुर्जर जाति के लोगों के लिए विशेष श्रद्धा का केन्द्र देवनारायण मंदिर है। यह मंदिर चौबीस बगड़ावत भाइयों में से एक सवाई भोज को समर्पित है। 

हरणी महादेवी का मंदिर - भीलवाड़ा से 6 किमी दूर है। प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर यहाँ विशाल मेला लगता है। यहाँ भगवान महावीर, जगद् गुरु शंकराचार्य, गुरु नानकदेव, रामचरण महाराज, भगवान साईनाथ तथा श्री झूलेलाल की प्रतिमाएँ भी स्थापित है। 

तिलस्वाँ मंदिर -भीलवाड़ा में माँडलगढ़ के निकट है। 

धनोप माता का मंदिर - भीलवाड़ा के धनोप गाँव में है। धनोप माता राजा धुंध की कुलदेवी थी। यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र सुदी एकम से चैत्र सुदी दशमी तक मेला आयोजित होता है। 

बाईसा महारानी का मंदिर - भीलवाड़ा के गंगापुर में है l यह मंदिर ग्वालियर के राजा महादजी सिंधिया की पत्नी महारानी गंगाबाई की स्मृति में बनवाया गया। महारानी गंगाबाई उदयपुर के महाराणा व उनके उमराव देवगढ़ राव के मध्य सुलह करवाने उदयपुर गई थी। वापस लौटते समय यहाँ उनका देहान्त हो गया था। इस मंदिर में गंगाबाई की मूर्ति स्थापित है। यहाँ उनकी छतरी भी है।

मंदाकिनी मंदिर - भीलवाडा जिले के बिजोलिया में है। यहाँ तीन मंदिर- महाकालेश्वर, हजारेश्वर व उण्डेश्वर मंदिर है व एक मंदाकिनी जलकुण्ड है। 

गाडोली महादेव - भीलवाड़ा जिले के जहाजपुर में है। गाडोली महादेव अकेले ऐसे महादेव है  जो पूर्ण रूप से परिधानों में सजाए जाते हैं। देश का शायद यह पहला शिव मंदिर है जहाँ फाल्गुन के अलावा भाद्रपद की चतुर्दशी को भी महाशिवरात्रि मनाई जाती है।

देवतलाई के देवनारायण - भीलवाड़ा जिले की कोटड़ी तहसील के देवतलाई गाँव में है। देवनारायण मंदिर सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है। एक ही परिसर में ईसाई, बौद्ध, मुस्लिम, जैन सहित अन्य धर्मों के करीब 70 मंदिर है। 

धानेश्वर या धाणी-भाटा - भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा कस्बे से 30 किमी. दूर खारी व मानसी नदी के संगम पर है।  धानेश्वर को लघु पुष्कर कहा जा सकता है। 

बागोर गुरुद्वारा - भीलवाड़ा जिले में बागौर ग्राम में है। सिक्खों के 10वें गुरु गोविंद सिंह मार्च, 1707 में अपनी दक्षिण यात्रा के समय बागौर के प्राचीन गढ़ पर 17 दिन तक रूके थे। उसी की याद में बागोर में गुरुद्वारे का निर्माण करवाया गया। 

माण्डल - इस कस्बे में प्रसिद्ध प्राचीन स्तम्भ मिंदारा, जगन्नाथ कछवाहा की बत्तीस खंभों की छतरी एवं मेजा बाँध (कोठारी नदी पर) प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। यहाँ होली के तेरह दिन पश्चात् रंग तेरस पर नाहर नृत्य का आयोजन होता है। 

बिजोलिया - स्वतंत्रता पूर्व देश के पहले संगठित किसान आन्दोलन के लिए प्रसिद्ध है।  बिजोलिया कस्बे में प्राचीन मंदाकिनी मंदिर एवं बावड़ियाँ हैं। 

मेनाल - मांडलगढ़ कस्बे के निकट हैं। यह स्थान नीलकण्ठेश्वर महादेव (महानाल देव) के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ एक बारहमासी झरना भी बहता है तथा मेनाल नदी पर मेनाल जल प्रपात स्थित है। यहाँ से कुछ दूर बीगोद के निकट तीन नदियों बनास, बेड़च व मेनाल का त्रिवेणी संगम है।

बारहदेवरा - जहाजपुर कस्बे में है।  इस तीर्थस्थल में 12 लघुदेवालय बने हुए हैं जो 12वीं शताब्दी की स्थापत्य कला जहाजपुर के परिचायक हैं। 

लव गार्डन - भीलवाड़ा में है। इस पार्क का निर्माण वर्ष 1987 में प्रारंभ हुआ

चमना बावड़ी - शाहपुर (भीलवाड़ा) में है। इस विशाल तिमंजिली बावड़ी जिसका निर्माण वि.सं. 1800 में राजा उम्मेदसिंह प्रथम ने चमना नामक गणिका की इच्छा पर करवाया था। 

बागोर - कोठारी नदी के तट पर है। बागोर एक मध्यपाषाण युगीन पुरातात्विक स्थल है। बस्ती से एक किमी पूर्व में 'महासतियों का टीला' नाम का स्थल पाषाणकालीन अवशेषों के कारण विश्वविख्यात है। बागोर अभ्रक बहुल क्षेत्र के मध्य स्थित है और इसके आसपास अभ्रक की महत्त्वपूर्ण खदानें है। 

सीतारामजी की बावड़ी - भीलवाड़ा में  है। इस बावड़ी में एक गुफा बनी हुई है जिसमें बैठकर रामस्नेही सम्प्रदाय के प्रवर्तक स्वामी रामचरणजी ने 36 हजार पदों की रचना की तथा रामस्नेही सम्प्रदाय की स्थापना की। 

बत्तीस खंभों वाली छतरी, मांडल - यह छतरी 'आमेर के जगन्नाथ कछवाहा' की स्मृति में शाहजहाँ द्वारा निर्मित्त है। जगन्नाथ कछवाहा का मांडल में मेवाड़े सेना के विरुद्ध युद्ध में निधन हो गया था। 
माण्डलगढ़ का दुर्ग - भीलवाड़ा में है l
अमरगढ़ की छतरियाँ  - भीलवाड़ा में है l
बनेड़ा एवं बदनोर के महल -  - भीलवाड़ा में है l
मगरोप एवं हमीरगढ़ (बाकरोल) का दुर्ग  - भीलवाड़ा में है l
छावन माता का मंदिर - भीलवाड़ा में है l
ऊंडेश्वर महादेव का मंदिर - भीलवाड़ा के मांडलगढ़ में है l
नांदशा के यूप स्तम्भ - भीलवाड़ा में है l
बनेड़ा की चोखी बावड़ी - भीलवाड़ा में है l

बाईराज की बावड़ी - भीलवाड़ा में है l


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Milan Tomic

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