राजस्थान के प्रमख उद्योग | rajasthan udyog

राजस्थान के प्रमख उद्योग

लघु, कुटीर, खादी ग्रामोद्योग, हस्तशिल्प व हथकरघा उद्योग

लघु एवं कुटीर उद्योग सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों के अनुपूरक है गाँधीजी के अनसार."भारत का मोक्ष उसके कुटीर धन्धों में निहित है।मोरारजी देसाई के अनुसार, "ऐसे उद्योगों से ग्रामीण लोगों को जो अधिकांश समय बेरोजगार रहते है, पूर्ण अथवा अंशकालीन रोजगार प्राप्त होता है।
लघु एवं कुटीर उद्योग राज्य के वृहत् ग्रामीण क्षेत्र की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। 

लघु एवं कुटीर उद्योग की परिभाषा
देश में एम एस एम ई (Micro, Small and Medium Enterprises) क्षेत्र में योगदान व संभावनाओं को देखते हुए 2 अक्टूबर, 57 2006 से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग विकास अधिनियम लागू किया गया। इस अधिनियम में उद्योग शब्द के स्थान पर उद्यम शब्द का प्रयोग किया गया तथा मध्यम उद्योग को पहली बार परिभाषित किया गया।

लघु उद्योग
सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 में लघु उद्योगों को दो भागों में विभक्त किया गया 
1.विनिर्माण उद्यम - वे उद्यम जो किसी वस्तु के उत्पादन अथवा विनिर्माण में संलग्न है।
2. सेवा उद्यम - वे उद्यम जो कोई सेवा प्रदान करने में सक्षम है।

इन दोनों श्रेणियों में उद्यमों को परिभाषित करने का एकमात्र पैमाना कारखाने व मशीनरी में की गई निवेश सीमा है।
वर्तमान में यह निवेश की सीमा इस प्रकार है – 




क्षेत्र
विनिर्माण क्षेत्र                    
सेवा क्षेत्र      
सूक्ष्म उद्यम (Tiny Industry) 
25 लाख तक                     
10 लाख तक 

लघु उद्यम (Small Industry)        
25 लाख से 5 करोड़ तक     
10 लाख से 2 करोड तक
मध्यम उद्यम (Medium Industry)
5 करोड़ से 10 करोड़ तक    
2 करोड़ से  5 करोड़ तक



कुटीर उद्योग (Cottage Industry)
कुटीर उद्योग से आशय ऐसे उद्योग से है जो पूर्णतया या मुख्यतया परिवार के सदस्यों की सहायता से पूर्णकालिक या अंशकालिक व्यवसाय के रूप में चलाया जाता है। इसमें पूंजी निवेश नाम-मात्र का ही होता है तथा उत्पादन प्रायः हाथ से ही किया जाता है। 

प्रशुल्क आयोग 1949-50 के अनुसार, "कुटीर उद्योग धन्धे वे धन्धे हैं जो अंशतः परिवार के सदस्यों की सहायता से आंशिक या पूर्णकालिक कार्य के रूप में किए जाते हैं।

कुटीर उद्योग लगभग पूरी तरह घरेलू उद्योग होते हैं। इसमें किराये के मजदूरों का बहुत कम या बिल्कुल ही प्रयोग नहीं किया जाता है। ये उद्योग कच्चा माल स्थानीय बाजारों से प्राप्त करते हैं और अपना अधिकांश उत्पादन स्थानीय बाजारों में ही बेचते हैं। यह लघु आकार के ग्रामीण, स्थानीय एवं पिछड़ी तकनीक वाले उद्योग होते हैं।

देश की प्रथम औद्योगिक नीति 1948 में घोषित की गई इसमें लघु व कुटीर उद्योगों के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया। 

योजना आयोग ने भी पंचवर्षीय योजनाओं में इनके विकास की संस्तुति की। औद्योगिक (विकास और नियमन) अधिनियम, 1951 में देश की आर्थिक स्थिति सुधारने के आशय से लघु व कुटीर उद्योगों पर जोर दिया गया।

2 अक्टूबर, 2006 से सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (MSMED Act, 2006) लागू किया गया। 

उद्यमों के संबंध में देश में राजस्थान का दसवाँ स्थान है तथा रोजगार के संबंध में ग्यारहवाँ स्थान है। 

एम एस एम ई क्षेत्र में ग्रामीण क्षेत्र में 55.34% तथा शहरी क्षेत्र में 44.66% उद्यम कार्यरत हैं। 

एम एस एम ई क्षेत्र में 31.79% उद्यम विनिर्माण क्षेत्र में तथा 68.21% उद्यम सेवा क्षेत्र में संलग्न थे। 
एम एस एमई क्षेत्र कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है।

राजस्थान के खादी, हथकरघा एवं हस्तशिल्प उद्योग 
कुल खादी व सूती खादी का सर्वाधिक उत्पादन जयपुर में होता है
ऊनी खादी का सर्वाधिक उत्पादन बीकानेर में होता है
खादी राजस्थान का एक परम्परागत घरेलू उद्योग है खादी हथकरघों पर तैयार की जाती है। 
इसमें लोगों को अंशकालिक एवं पूर्णकालिक रोजगार मिलता है। 
गाँधीजी के ग्रामीण अर्थव्यवस्था के स्वावलम्बन के दर्शन को मूर्त रूप देने व ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार प्रदान करने के उद्देश्य से 1925 में अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना की गई। 
राजस्थान में 1926 में ग्राम अमरसर (जयपुर) में चरखा संघ का खादी कार्य आरंभ किया गया। राजस्थान में खादी एवं ग्राम उद्योगों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने की दृष्टि से खादी एवं ग्राम उद्योग बोर्ड की स्थापना 1955 में की गई। 

राज्य में हथकरघा के विकास हेतु कार्यालय आयुक्त, उद्योग नोडल विभाग है। हथकरघा विकास हेतु हथकरघा विकास निगम तथा राजस्थान राज्य बुनकर सहकारी संघ कार्यरत है।
राज्य में मुख्यतः सूती एवं ऊनी खादी का उत्पादन होता है। 

सिल्क व ऊनी खादी भी पश्चिमी राजस्थान में उत्पादित होती है। 
राजस्थान में सूती खादी उत्पादनों में रेजी, खेस, दरी, दोसूती आदि मुख्य हैं।

ग्रामीण गैर कृषि विकास अभिकरण, जयपुर
(Rural Non-Agriculture Development Agency - RUDA) 
ग्रामीण क्षेत्रों में गैर कृषि आजीविका के साधनों का विकास करने हेतु रूडा की स्थापना नवम्बर, 1995 में की गई। 
रूडा लघु उद्यमों के कलस्टर के विकास द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी आजीविका के साधन विकसित करने का कार्य करती है। 
वर्तमान में रूडा ऊनी उत्पाद, चर्म उद्योग, स्टोन-सिरेमिक व पॉटरी,खादी ग्रामोद्योग, हाथकरघा तथा हस्तशिल्प के उपक्षेत्रों में ही लघु उद्यमों को विकसित कर रही है। 
रूडा द्वारा सम्पादित किए जा रहे कार्य - 
ग्रामीण दस्तकारों को संगठित वं प्रशिक्षित करना तथा ग्रामीण हस्तशिल्प का तकनीकी उत्थान करना।
ग्रामीण लघु उद्यम उत्पादों का विकास तथा आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार डिजाइनों का विकास। 
ग्रामीण उद्योगों की विपणन व्यवस्था सुनिश्चित करना तथा विदेशों में प्रचार हेतु नेटवर्क स्थापित करना।
ग्रामीण लघु उद्यमों के विकास हेतु बैंक ऋण व अन्य लाभप्रद व्यवस्थाएँ सुनिश्चत करना


राजस्थान के प्रमुख लघु, कुटीर, खादी ग्रामोद्योग तथा हस्तशिल्प उत्पाद 
मेहंदी - सोजत (पाली) 
लकड़ी के खिलौने  - उदयपुर, सवाईमाधोपुर, जोधपुर 
स्टील/वुडन फर्नीचर - बीकानेर चित्तौड़गढ़ 
पापड़ भुजिया - बीकानेर
लकड़ी का नक्काशीदार फर्नीचर  - बाड़मेर 
मटके, सुराही  - रामसर (बीकानेर) 
वुडन पेंटेड फर्नीचर - किशनगढ़, अजमेर 
ब्ल्यू पॉटरी - जयपुर, नेवटा (सांगानेर)
शीशम का फर्नीचर - हनुमानगढ़, गंगानगर 
चमड़े की मोजड़ियां  - जोधपुर, जयपुर, नागौर 
कागजी टेराकोटा - अलवर 
सुनहरी टेराकोटा - बीकानेर 
कठपुतलियाँ - उदयपुर 
थेवा कला - प्रतापगढ़ 
फड़ चित्रण - शाहपुरा (भीलवाड़ा) 
रामदेवजी के घोड़े -  पोकरण (जैसलमेर) |
बादला एवं मोठड़े - जोधपुर 
ऊँट की खाल के कलात्मक कुप्पों पर मुनव्वती का काम (उस्ताकला) -  बीकानेर
मलमल व जाटा - मथानियाँ व तनसुख (जोधपुर) 
हरी मैथी व हैण्डटूल्स - नागौर
तारकशी के जेवर - नाथद्वारा 
रसदार फल - झालावाड़,गंगानगर 
नमदे व दरियाँ - टोंक 
गुलाब के फूल एवं गुलकंद चैती गुलाब (दमश्क) - खमनौर (राजसमंद) पुष्कर
गोटा किनारी - खण्डेला, सीकर, भिनाय एवं अजमेर 
नांदणे (घाघरे की छपी फड़द) - भीलवाड़ा
गरासियों की फाग (ओढ़नी) -  सोजत 
पिछवाइयाँ - नाथद्वारा 
रेजी - चक 
ऊनी बरड़ी, पटू एवं लोई  - जैसलमेर
पेचवर्क व चटापटी का कार्य -  शेखावाटी
पाव रजाई - जयपुर
जस्ते की मूर्तियाँ व वस्तुएँ – जोधपुर
खेसले -  लेटा (जालौर) 
दरियाँ - टांकला (नागौर) 
ऊनी कम्बल - गडरा रोड़ (बाड़मेर)व बीकानेर 
खेसो - चौमूं (जयपुर) व चूरू 
पीतल पर मुरादाबादी नक्काशी का काम - जयपुर 
मसूरिया व कोटा डोरिया - कैथून (कोटा) व मांगरोल(बाराँ) 
मिट्टी के खिलौने - मोलेला(नाथद्वारा),बस्सी(चित्तौड़गढ़)  
पत्थर की मूर्तियाँ - जयपुर, थानागाजी (अलवर) 
कृषिगत औज़ार - गजसिंहपुर (गंगानगर) एवं झोटवाड़ा (जयपुर) 
मिनिएचर पेंटिग्स - जोधपुर, जयपुर,किशनगढ़
आजम प्रिंट - आकोला (चित्तौड़गढ़) 
लाख की पॉटरी, माण्डे - बीकानेर 
लहरिया एवं पोमचा - जयपुर
चुनरी - जोधपुर 
अजरख एवं मलीर प्रिंट - बाड़मेर
लकड़ी के झूले - जोधपुर 
हाथीदाँत एवं चंदन पर खुदाई एवं पेटिंग्स -जयपुर 
रमकड़ा (सोप स्टोन के तराशे हुए खिलौने) - गालियाकोट (डूंगरपुर)
गलीचे - जयपुर, बीकानेर 
लाख का काम - जयपुर 
मीनाकारी एवं कुंदन कार्य- जयपुर
कोफ्तगिरी व तहनिशां कार्य - जयपुर 
पेपरमेशी (कुट्टी) का काम - जयपुर, उदयपुर 
कपड़ों पर मिरर वर्क - जैसलमेर सूंघनी नसवार
लकड़ी की कांवड़ – बस्सी (चित्तौड़गढ़)
सरसों का इंजन छाप तेल - भरतपुर 
आम पापड़ - बाँसवाड़ा 
सरसों का वीर बालक छाप तेल – जयपुर

राजस्थान की हस्तकलाएँ (Handicrafts of Rajasthan)

कपड़े पर हाथ से छपाई (ब्लॉक प्रिंटिग) 
कपड़े पर परम्परागत रूप से हाथ से छपाई का कार्य कमोबेश सम्पूर्ण राजस्थान में होता है। कपड़ों की रंगाई का कार्य नीलगरों व रंगरेजों द्वारा किया जाता है। 
छपाई कार्य करने वाले छीपे कहलाते हैं। 
बाड़मेर में खत्री जाति के लोग परम्परागत रूप से छपाई का कार्य करते हैं। 
छपाई के लिये विशेष रूप से सांगानेर (जयपुर), बालोतरा, बाड़मेर, पाली, जैसलमेर, बगरू, आकोला (चित्तौड़गढ़),आहड़ (उदयपुर), पीपाड़ (जोधपुर), कालाडेरा (जयपुर) बड़ागाँव, जावता, बस्सी (चित्तौड़गढ़) आदि स्थल प्रसिद्ध हैं। 

बाड़मेर की अजरख प्रिंट 
इसमें नीला एवं लाल रंग अधिक प्रयुक्त होता है एवं मलीर प्रिंट, जिसमें कत्थई एवं काला रंग बहुतायत से प्रयुक्त किया जाता है। दोनों प्रिंट में अलंकरण ज्यामितिक ही होते हैं। 

आकोला (चित्तौड़गढ़) की आजम प्रिंट
इसमें लाल, काले एवं हरे रंग का अधिक प्रयोग किया जाता है। यहाँ की छपाई के घाघरे प्रसिद्ध हैं। 

सांगानेर की सांगानेरी प्रिंट - सांगानेर के छीपे नामदेवी छीपे कहलाते हैं। 
बगरू की बगरू प्रिंट - इसमें काला व लाल रंग विशेष रूप से प्रयुक्त होता है।        
बंधेज का कार्य जोधपुर, जयपुर, शेखावाटी, बीकानेर, सीकर आदि स्थानों पर अधिक होता है। 
जयपुर का लहरिया एवं पोमचा प्रसिद्ध है।
पोमचा - जच्चा स्त्री पहनती है, जिसमें मुख्य रूप से पीला रंग होता है एवं चारों ओर किनारों पर लाल रंग होता है। 
लहरिया - राजस्थान की स्त्रियों द्वारा श्रावण में विशेषकर तीज पर पहनी जाने वाली ओढ़नी है। 
कढ़ाई व कशीदाकारी -  कपड़ों पर विभिन्न रंगों के रेशमी धागों से कढ़ाई का कार्य किया जाता है। यह कार्य सीकर, झंझ व आस पास के इलाकों में विशेष तौर पर होता है। 
सूती या रेशमी कपड़े पर बादले से छोटी छोटी बिदंकी की कढ़ाई मुकेश कहलाती है। 
पेच वर्क - विविध रंग के कपड़ों के टुकड़े काटकर कपड़ों पर विविध डिजाइनों में सिलना पेच वर्क कहलाता है, जो शेखावाटी क्षेत्र में विशेष रूप से प्रचलित है। 
चटापटी का कार्य चटापटी में अभिप्राय को कपड़ों में काटकर दूसरे कपड़े पर टांग (सिल) दिया जाता है। जरी एवं गोटे का काम कपड़ों पर जरी एवं गोटे का प्रयोग महिलाओं द्वारा विशेष तौर पर किया जाता है। 
गोटे का काम मुख्यतः खण्डेला, जयपुर, भिनाय व अजमेर में होता है । 
जरी का काम महाराजा सवाई जयसिंह के समय में सूरत से जयपुर लाया गया था।
गलीचे, नमदे एवं दरियाँ जयपुर गलीचे निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। अब गलीचे टोंक, ब्यावर, किशनगढ़, मालपुरा, भीलवाड़ा आदि स्थानों पर भी बनते हैं। 
नागौर के टांकला ग्राम की दरियाँ विश्व प्रसिद्ध है। 
सूत की दरियाँ जोधपुर, टोंक, नागौर, बाड़मेर, भीलवाड़ा आदि स्थानों पर बनाई जाती हैं। टोंक के ऊनी नमदे प्रसिद्ध हैं। 
ऊन को कूट-कूट कर उसे जमा कर जो वस्त्र बनाये जाते हैं उसे नमदा कहते है।
बीकानेर जेल का गलीचे का कार्य सर्वाधिक सुंदर माना जाता है। 
कपड़ों पर चित्रकारी राजस्थान में कपड़ों पर विभिन्न प्रकार के विषयों व आख्यानों को चित्रित करने की विशिष्ट परम्परा है। इसकी मुख्य कलाएँ इस प्रकार  हैं - 
पड़ चित्रण- यह भीलवाड़ा के शाहपुरा व आस पास के क्षेत्रों में कपड़े पर लोक देवी देवताओं के पौराणिक आख्यानों को चित्रित करने की विशिष्ट शैली है। मुख्यतः लाल व हरा रंग प्रयुक्त। शाहपुरा का जोशी परिवार इसमें सिद्धहस्त है। 
नाथद्वारा की पिछवाइयाँ- नाथद्वारा में कृष्ण प्रतिमा के पीछे दीवारों पर लगाये जाने वाले कपड़े पर श्री कृष्ण की लीलाओं का चित्रण किया जाता है। ये पिछवाइयाँ कहलाती हैं। 
मिनिएचर पेंटिंग्स छोटी छोटी वस्तुओं या हाथी दाँत पर अति लघु एवं सूक्ष्म चित्रांकन को कहा जाता है , जो जोधपुर, जयपुर, किशनगढ़,आदि क्षेत्रों में विशेष प्रचलित है।
माँडणा मकान की दीवारों एवं फर्श पर खड़िया मिट्टी, गेरू आदि रंगों से ज्यामितीय आकृतियाँ बनाने की कला मांडणा कहलाती है।
ब्ल्यू पॉटरी - क्वार्ट्स एवं चीनी मिट्टी के बर्तनों पर मुख्यतः नीले, हरे एवं अन्य रंगों से चित्रण 'ब्ल्यू पॉटरी' कहलाता है। 
राजस्थान में 'ब्ल्यू पॉटरी' के लिये जयपुर सर्वाधिक प्रसिद्ध है। 
यह कार्य मुगलों के समय से ही आगरा व दिल्ली से जयपुर आया। 
भारत में यह कला फारस से आयी थी। 
महाराजा रामसिंह के काल में यह जयपुर में अत्यधिक फली-फूली । 
कृपाल सिंह शेखावत इसके सिद्धहस्त कलाकार थे। 
लाख का काम राजस्थान में लाख से चूड़ियाँ, खिलौने एवं सजावटी सामान बनाए जातें हैं
लाख का काम जयपुर में सर्वाधिक होता है । जयपुर के महाराजा रामसिंह के समय लाख कला को भरपूर संरक्षण मिला।

टेराकोटा - पकाई हुई मिट्टी के बर्तन, खिलौने आदि समस्त राजस्थान में बनाए जाते हैं। नाथद्वारा के पास मोलेला गाँव एवं बस्सी (चित्तौड़गढ़) मिट्टी के खिलौनों, बर्तन आदि के लिये प्रसिद्ध है। 
कागजी टेराकोटा - अलवर में मिट्टी की बिल्कुल बारीक व परतदार कलात्मक वस्तुएं बनाई जाती हैं। इसे 'कागजी टेराकोटा' कहते हैं।
मीनाकारी - सोने चाँदी व अन्य आभूषणों एवं कलात्मक वस्तुओं पर मीना चढ़ाने की कला मीनाकारी कहलाती है। जयपुर में यह महाराजा मानसिंह प्रथम द्वारा 16वीं शताब्दी में लाहौर से लाई गई थी। यह कला मूलतः फारस से मुगलों द्वारा लाई गई थी। राजस्थान में मीनाकारी के कार्य के लिये जयपुर प्रसिद्ध है। 
थेवा कला प्रतापगढ़ में काँच की वस्तुओं पर सोने का सूक्ष्म व कलात्मक चित्रांकन कार्य किया जाता है, जिसे थेवा कला के नाम से जाना जाता है। वहाँ का सोनी परिवार इस कला के लिये सिद्धहस्त है। इसमें हरा रंग अधिक प्रयुक्त होता है। 
कुन्दन स्वर्णाभूषणों में कीमती पत्थर जड़ने की कला कुन्दन कहलाती है। यह जयपुर में अधिक प्रचलित है।
कोफ्तगिरी - फौलाद की बनी हुई वस्तुओं पर सोने के पतले तारों की जड़ाई कोफ्तगिरी कहलाती है। कोफ्तगिरी कला दमिश्क से पंजाब लाई गई और वहाँ से गुजरात एवं राजस्थान में इसे लाया गया। कोफ्तगिरी जयपुर एवं अलवर में बहुतायत से होती है।
तहनिशां के काम में डिजाइन को गहरा खोद कर उसमें पतला तार भर दिया जाता है।
अलवर के तलवार साज एवं उदयपुर के सिगलीगर यह काम सुन्दर ढंग से करते हैं।
मुरादाबादी का काम पीतल के बर्तनों पर खुदाई करके उस पर कलात्मक नक्काशी का कार्य 'मुरादाबादी' का काम कहलाता है। जयपुर में यह कार्य बहुतायत से होता है। अलवर में भी यह कार्य प्रचलित है। 
बादला - जिंक से निर्मित्त पानी की बोतलों को कहा जाता है इनके चारों ओर कलात्मक कपड़े का आवरण चढ़ा दिया जाता है। इसमें लम्बे समय तक पानी ठंडा रहता है जोधपुर के बादले सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। 
उस्ताकला या मुनव्वती - ऊँट की खाल के कुप्पों पर सोने एवं चाँदी से कलात्मक चित्रांकन व नक्काशी मुनव्वती का काम का काम कहलाता है। बीकानेर का उस्ता परिवार इस कार्य के लिये विश्व प्रसिद्ध है। 
हाथी दाँत एवं चन्दन पर यह जयपुर में मुख्य रूप से होता है। इसकी कई कलात्मक वस्तुएँ एवं खिलौने, देवी-देवताओं खुदाई का काम की मूर्तियाँ आदि बनाई जाती है। 
पेपरमैशी या कुट्टी का काम कागज की लुगदी बनाकर कलात्मकवस्तुएँ बनाना पेपरमैशी कहलाता है। यह कार्य मुख्यत: जयपुर एवं उदयपुर में होता है।
मिरर वर्क - पश्चिमी राजस्थान, विशेष कर जैसलमेर के ग्रामीण क्षेत्रों में कपड़ों पर शीशे (लुकिंग ग्लास) के छोटे छोटे टुकड़ों को सिलने का काम बहुतायत से किया जाता है।
तारकशी नाथद्वारा में चाँदी के बारीक तारों से विभिन्न आभूषण एवं कलात्मक वस्तुएँ बनाई जाती हैं। यह कला तारकशी तथा इन जेवरों कों तारकशी के जेवर कहते हैं।
रत्नाभूषण - जयपुर में मूल्यवान पत्थरों युक्त सोने चाँदी के आभूषण बनाने का कार्य परम्परागत रूप से होता आया है। इस कार्य के लिये जयपुर समस्त विश्व में प्रसिद्ध है।
पन्ने की सबसे बड़ी अंतर्राष्ट्रीय मंडी जयपुर  है।
चमड़े की कलात्मक जूतियाँ या मोजड़ियाँ जोधपुर में बहुतायत से बनती है। जयपुर, नागौर एवं वस्तुएँ जालौर इसके अन्य मख्य केन्द्र हैं। 
चाँदी की कलात्मक वस्तुएँ - बीकानेर में चाँदी की डिब्बियाँ, अफीमदानियाँ, कटोरदान, सिगरेट केस, किवाड़ जोड़ियाँ आदि वस्तुएँ बहुत ही कलात्मक एवं सुन्दर बनाई जाती हैं। उदयपुर के सिगलीगर घराने के लोग चाँदी के खिलौने, पशु-पक्षी, शस्त्रों की मूठ आदि बहुत सुन्दर बनाते हैं। 
लकड़ी के खिलौने आकर्षक खिलौने बनाने का काम उदयपुर एवं सवाई माधोपुर में अधिक होता है। 
कांवड़ - चित्तौड़ के बस्सी ग्राम में खेरादी जाति के लोगों द्वारा लकड़ी की कई कपाटों की मंदिर की प्रतिकृति 'कांवड़' बनाई जाती है। 
बाड़मेर में निर्मित्त लकड़ी पर नक्काशीदार खुदाई का फर्नीचर प्रसिद्ध है। 
मूर्तिकला  पत्थर की मूर्ति बनाने वाले सिलावट कहलाते हैं। 
राज्य में पत्थर की सुन्दर मूर्तियाँ बनाने का कार्य जयपुर में सर्वाधिक होता है।
जयपुर में मुख्यतः सफेद संगमरमर की मूर्तियाँ बनती हैं। 
डूंगरपुर में व बाँसवाड़ा के निकट तलवाड़ा में सोमपुरा जाति के मूर्तिकार काले संगमरमर की मूर्तियाँ बनाते हैं। 
लाल पत्थर की मूर्तियाँ अलवर की थानागाजी तहसील में बनती हैं।
मथैरण कला - यह बीकानेर क्षेत्र में अधिक प्रचलित है। 
धार्मिक स्थलों एवं पौराणिक कथाओं पर आधारित विभिन्न देवी-देवताओं के आकर्षक भित्ति चित्र, ईसर, तोरण, गणगौर आदि का निर्माण व इन्हें विभिन्न आकर्षक रंगों से सजाने की कला को मथैरण कला कहा जाता है l
आलागीला कारीगरी पत्थर व चूने की दीवारों पर चूने व कली के साथ आकर्षक चित्रकारी करना। चूनगरों द्वारा कलाकारी की जाती है।
बीकानेर व शेखावाटी क्षेत्र में इस कला के अधिकांश कारीगर हैं। 
जट-कतराई ऊँट के शरीर के बालों को कतर कर शरीर पर कई तरह की आकृति उकेरने की कला। ऊँटों का पालन-पोषण करने वाले रायका और रेबारी जाति के लोगों को यह विलक्षण कला धरोहर के रूप में मिली है।


राजस्थान के प्रमख उद्योग 

राजस्थान अपनी भौगोलिक परिस्थितियों के कारण प्रारम्भ से ही औद्योगिक रूप से पिछड़ा राज्य रहा है। 
स्वतंत्रता के समय राज्य में उद्योग नगण्य मात्र थे।
राजस्थान के गठन के समय मात्र 11 वृहद उद्योग-7 सूती वस्त्र, 2 सीमेंट व चीनी उद्योग तथा 207 पंजीकृत फैक्ट्रियाँ थी। 
वर्ष 1978 में केन्द्र प्रवर्तित योजना के तहत् जिला उद्योग केन्द्रों की स्थापना की गई।
वर्तमान में राज्य में 36 जिला उद्योग केन्द्र व 7 उपकेन्द्र (ब्यावर, फालना, आबूरोड़, बालोतरा, किशनगढ़, मकराना व नीमराना) कार्यरत हैं। इन केन्द्रों के माध्यम से उद्यमियों को राज्य में उद्योग स्थापित करने हेतु मार्गदर्शन, सहायता व सुविधाएँ एक ही स्थान पर उपलब्ध कराई जाती हैं।
वर्तमान में राज्य में सर्वाधिक वृहद एवं मध्यम इकाइयाँ भिवाड़ी (अलवर) व जयपुर में है। 
राज्य में सर्वाधिक पंजीकृत फैक्ट्रियाँ क्रमश: जयपुर व जोधपुर जिले में तथा न्यूनतम जैसलमेर व बारों में है।

पंचवर्षीय योजनाओं में औद्योगिक विकास पर बल  
द्वितीय पंचवर्षीय योजना 
देश में उत्प्रेरक औद्योगिक वातावरण तैयार करने हेतु द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) में महालनोबिस मॉडल के आधार पर औद्योगिक विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई एवं अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रदान की गई। 
तृतीय पंचवर्षीय योजना 
राजस्थान में तृतीय पंचवर्षीय योजना में आधारभूत सुविधाओं के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई तथा राज्य के औद्योगिक विकास हेतु एक विस्तृत कार्यक्रम बनाया गया। राज्य में औद्योगिक विकास पर सर्वाधिक व्यय किया गया (कुल परियोजना व्यय का 5.3%) 

औद्योगिक नीतियों का निर्माण
उद्योगों के संवर्द्धन हेतु राजस्थान सरकार द्वारा अब तक चार औद्योगिक नीतियाँ घोषित की गई हैं। राज्य की चारों औद्योगिक नीतियाँ श्री भैरोसिंह शेखावत के मुख्यमंत्रित्व काल में वोषित की गई। 
प्रथम नीति की घोषणा जनता पार्टी सरकार व शेष तीनों नीतियों की घोषणा भाजपा सरकार के शासन काल में हुई। राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर निम्न नीतियाँ घोषित की गई

प्रथम औद्योगिक नीति -
घोषणा की तिथि - 24 जून, 1978 | 
प्रथम नीति में रोजगारोन्मुख उद्योग यथा-खादी, ग्रामोद्योग, हथकरघा व हस्तशिल्प के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई व क्षेत्रीय असंतुलनों को दूर करने के प्रयास किए गए। 

द्वितीय औद्योगिक नीति -
घोषणा की तिथि - दिसम्बर 90 को घोषित व अप्रैल,1991 से लागू। 
द्वितीय नीति में खनन, कृषिगत व अन्य साधनों के अधिकतम उपयोग, रोजगार संवर्द्धन तथा  औद्योगिकीकरण के माध्यम से राज्य के वित्तीय साधन बढ़ाने पर जोर दिया गया।

तृतीय औद्योगिक नीति -
घोषणा की तिथि - 15 जून, 1994 
तृतीय नीति में राज्य का तीव्र गति से औद्योगीकरण का लक्ष्य रखा गया जिसमें मुख्य क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए निजी क्षेत्र में औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया गया

चतुर्थ औद्योगिक नीति -
घोषणा की तिथि - 4 जून, 1998 
चतुर्थ नीति का उद्देश्य राज्य को कुछ चुने हुए क्षेत्रों में विनियोग की दृष्टि से सर्वोच्च प्राथमिकता वाला राज्य बनाना था। इस हेतु समूहों के विकास की रणनीति अपनाई गई। 

विशेष संस्थान
विशेष क्षेत्रों के विकास हेतु राज्य द्वारा विशेष संस्थाओं का विकास किया गया है जो निम्न हैं - 
कम्प्यूटर एडेड कारपेट डिजाइन सेंटर, जयपुर
कम्प्यूटर एडेड डिजाइन सेंटर (वस्त्र), भीलवाड़ा 
वुडन वेयर सर्विस सेंटर, जोधपुर
हैण्डलूम डिजाइन डवलपमेंट एंड ट्रेनिंग सेंटर, नागौर
हस्तशिल्प डिजाइन विकास व शोध केंद्र, जयपुर 
मोती सेंटर फॉर ज्वैलरी डिजाइन एंड ट्रेनिंग व जेम बोर्स, जयपुर
पॉवरलूम सर्विस सेंटर, किशनगढ़ व भीलवाड़ा 
कुमारप्पा हस्तशिल्प कागज राष्ट्रीय संस्थान, सांगानेर (जयपुर)
सिरेमिक परीक्षण प्रयोगशाला, बीकानेर 
वुडसीजनिंग प्लांट व कॉमन सर्विस फेसिलिटी सेंटर, जोधपुर
ब्रह्मगुप्त अनुसंधान एवं विकास केन्द्र, जोधपुर 
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नॉलाजी, जोधपुर
ऊँट की खाल पर मुनव्वती की कला हेतु प्रशिक्षण केन्द्र, बीकानेर 
सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलॉजी (CIPET),जयपुर 

विभिन्न वित्तीय संस्थानों व निगमों की स्थापना 
राज्य के औद्योगिक विकास को तीव्र गति प्रदान करने हेतु सरकार ने समय समय पर विभिन्न वित्तीय संस्थानों व निगमों की स्थापना की है, जिनका विवरण निम्न प्रकार है - 

राज्य वित्त निगम (RFC) जयपुर 
स्थापना -राज्य वित्त निगम अधिनियम,  1951 के तहत् 17 जनवरी 1955 को स्थापित।  
उद्देश्य - राज्य की अति लघु, लघु व मध्यम श्रेणी की औद्योगिक इकाइयों को मध्यकालीन व दीर्घकालीन वित्तीय सहायता प्रदान करना।

रीको- राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास  व विनियोग निगम 
स्थापना - जनवरी, 1980 में कम्पनी अधि. 1956 के अधीन पंजीकृत कम्पनी लि. (RIICO) जयपुर
उद्देश्य - राज्य में औद्योगिक संरचना विकास, मध्यम व वृहद् उद्योगों को अवधि ऋण उपलब्ध कराना, तकनीकी सलाह, मर्चेन्ट बैंकिंग गतिविधियों कातथा अंश पूँजी सहभागिता द्वारा औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करना।

राजस्थान लघु उद्योग निगम (RSIC राजसीको),जयपुर 
स्थापना -3 जून, 1961, कम्पनी अधि.1956 के अधीन पंजीकृत कम्पनी 
उद्देश्य -  राज्य में लघु औद्योगिक व हस्तशिल्प इकाइयों को वित्तीय सहायता व कच्चा माल उपलब्ध कराना तथा विपणन व प्रशिक्षण सुविधाएँ प्रदान कराना।

राजस्थान खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड,जयपुर 
स्थापना - अप्रैल, 1955
उद्देश्य -  राज्य में खादी व ग्रामोद्योग क्षेत्र के विकास द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार प्रदान करना तथा रोजगार के अवसर उपब्ध कराना। 

राजस्थान कन्सल्टेन्सी ऑर्गेनाइजेशन लि.  (RAJCON)
स्थापना -1978, 
मुख्यालय - जयपुर
उद्देश्य - राज्य में छोटे व मंझले परियोजना प्रवर्तकों को समग्र रूप से तकनीकी विपणन, प्रबंधकीय, विकासात्मक व वित्तीय परामर्श सेवाएँ प्रदान करना।

राजस्थान राज्य हथकरघा विकास  निगम लि.(RSHDC)
स्थापना -मार्च,1984
मुख्यालय-जयपुर
उद्देश्य -  करघों के आधुनिकीकरण व व्यक्तिगत क्षेत्र के बुनकरों के प्रशिक्षण TI) एवं उत्पादों के विपणन में सहायता तथा कच्चा माल उपलब्धकराकर राज्य में हथकरघा क्षेत्र का विकास करना।

उद्यम प्रोत्साहन संस्थान, जयपुर
स्थापना - अक्टूबर, 1995
उद्देश्य -  नए साहसियों को प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु औद्योगिक शिविरों के आयोजन. नवीन उत्पादों के प्रचार-प्रसार हेतु औद्योगिक व हस्तशिल्प प्रदर्शनियों व मेलों का आयोजन करने तथा उनसे संबंधित साहित्य आदि का प्रकाशन कर लघु उद्यमियों, शिल्पकारों व दस्तकारों का समग्र उत्थान करना।

उद्यमिता एवं प्रबंध संस्थान, जयपुर 
स्थापना - 19 फरवरी, 1996 को पंजीकृत 
उद्देश्य -  प्रदेश में कुशल उद्यमियों के विकास, मागदर्शन व प्रशिक्षण देने विकास के उद्देश्य से जयपुर में स्थापित स्वायत्तशासी संस्थान। 

लघु उद्योग सेवा संस्थान (SISI),जयपुर
स्थापना -1958
उद्देश्य -  राज्य के उद्यमियों को विभिन्न उद्योगों के संबंध में जानकारी व आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु SIDO द्वारा स्थापित। 

आर्थिक विकास बोर्ड, जयपुर
स्थापना -अगस्त, 1999
अध्यक्ष: मुख्यमंत्री
उद्देश्य - राज्य के अर्थिक विकास में निजी सहभागिता बढ़ाने हेतु सुझाव देने तथा राज्य की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति सुदृढ़ करने हेतु दीर्घकालीन योजनाओं में सलाह देने के लिए गठित

आधारभूत ढाँचा  व विनियोग प्रोत्साहन बोर्ड(BIDIP),जयपुर 
स्थापना -विनियोग बोर्ड के पुनर्गठन के बाद मार्च, 2000 में जयपुर में स्थापित।
उद्देश्य - उद्योगों से जुड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर पर अधिक ध्यान केन्द्रित कर उस विकास के तीव्र विकास हेतु तथा 25 करोड़ रु. से अधिक की परियोजनाओं के लिए निवेश प्रस्तावों को स्वीकृति देने हेतु गठित।

राजस्थान निवेश प्रोत्साहन बोर्ड 
स्थापना -8 जून, 2009
 उद्देश्य - बीडी (BIDI) के स्थान पर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में RIPB का गठन। 

निवेश संवर्द्धन ब्यूरो (BIP)
स्थापना -1991 में स्थापित
 उद्देश्य - राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में निवेश की सुविधा प्रदान करने के लिए निवेश संवर्द्धन ब्यूरो (BIP) राजस्थान व निवेशकों के मध्य एक समन्वयक की तरह कार्य करते हुए बड़े उद्योगों के लिए शीघ्र मंजूरी व मुद्दों के निवारण हेतु निवेश सरलीकरण सेवाएं प्रदान कर रहा है। यह 10 करोड़ एवं अधिक के निवेश प्रस्तावों के लिए नोडल एजेन्सी है। 

राजस्थान फाउन्डेशन, जयपुर 
स्थापना -30 मार्च, 2001
मुख्यालय - जयपुर 
अध्यक्ष : मुख्यमंत्री
 उद्देश्य - प्रवासी राजस्थानियों को प्रदेश के विकास में भागीदारी बढ़ानेउन्हें मातृभूमि से जोड़ने हेतु प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से स्थापित।

ग्रामीण गैर कृषि विकास एजेंसी (RUDA) 
स्थापना - नवम्बर, 1995
मुख्यालय- जयपुर 
उद्देश्य -  राज्य में ग्रामीण अकृषि क्षेत्र- हैण्डलूम, हस्तशिल्प व कृषि/ ऊन/खनिज आधारित उद्योगों के विकास के प्रोत्साहन हेतु गठित।

भिवाड़ी औद्योगिक विकास एजेंसी (BIDA) भिवाड़ी (अलवर) 
स्थापना - मई, 1997
उद्देश्य -भिवाड़ी व आसपास के क्षेत्रों की औद्योगिक विकास की विपुल संभावनाओं को मद्देनजर रखते हुए इन क्षेत्रों के तीव्र व नियोजित विकास हेतु गठित। 

राजस्थान राज्य सहकारी बुनकर संघ, जयपुर
स्थापना - 26 अगस्त, 1957 
 उद्देश्य -  राजस्थान में सहकारिता के माध्यम से हथकरघा उद्योग से जुड़े बुनकरों के चहुंमुखी विकास एवं उनकी समस्याओं के निराकरण हेतु राज्य की एक शीर्ष सहकारी संस्था के रूप में गठित।

बुनकर सेवा केन्द्र, जयपुर 
स्थापना - 1978
 उद्देश्य - यह राज्य में बुनकरों, रंगरेजों एवं छीपों को समय-समय पर विभिन्न तकनीकी ज्ञान एवं सहायता देकर हथकरघा क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहन देता है।

भारतीय शिल्प व डिजाइन संस्थान, जयपुर 
स्थापना -12.4.95
 उद्देश्य -  राज्य में हस्तशिल्प के उन्नयन हेतु शिल्प प्रशिक्षण, शोध एवं प्रलेखन परामर्शी सेवाएँ देने एवं परियोजना निर्माण में सहायता देने आदि कार्यों हेतु गठित।

राजस्थान स्टेट वेयर  हाउसिंग कारपोरेशन,जयपुर
स्थापना -30.12.195  (प्रारंभ 24.3.1958) 
 उद्देश्य -निगम का मुख्य उद्देश्य राज्य में विभिन्न स्थानों पर वैज्ञानिक पद्धति से भंडारगृहों का प्रबन्ध करना तथा गोदामों का निर्माण करना है। 

भारतीय हथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर
उद्देश्य -  भारत सरकार द्वारा स्थापित यह देश का चौथा संस्थान है जो हथकरघा प्रशिक्षण का त्रिवर्षीय डिप्लोमा कोर्स आयोजित करता है। 

राजस्थान ट्रेड प्रमोशन ऑर्गेनाइनेशन
राज्य सरकार द्वारा जयपुर में सुनिश्चित प्रदर्शनी स्थल का निर्माण किए जाने  के उद्देश्य से यह संगठन बनाया गया है।
इस हेतु जयपुर के निकट टोंक रोड पर स्थित ग्राम प्रहलादपुरा में भूमि चिन्हित की गई है। 

राजस्थान स्टेट बेवेरीज निगम लिमिटेड
स्थापना - 2005-06
 उद्देश्य -  इसे भारत निर्मित्त विदेशी मदिरा एवं बीयर के क्रय एवं विक्रय का एकाधिकार दिया गया।

राजस्थान के औद्योगिक विकास हेतु कार्यरत प्रमुख निगम

राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास व विनियोग निगम लि. 
(RIICO: Rajasthan state Industrial Development and Investment Corporation Ltd.)
सर्वप्रथम 28 मार्च, 1969 को राजस्थान उद्योग व खनिज विकास निगम (RIMDC) की स्थापना की गई। नवम्बर, 1979 को इसका (राजस्थान उद्योग व खनिज विकास निगम (RIMDC) विभाजन कर राजस्थान राज्य खनिज विकास निगम(RSMDC) तथा जनवरी, 1980 में रीको की स्थापना की गई। रीको द्वारा वर्तमान में राज्य में 330 औद्योगिक क्षेत्र संचालित किए जा रहे हैं। 
उद्देश्य -  
राज्य में औद्योगिक संरचना विकास व औद्योगिक क्षेत्र विकसित करना, मध्यम व वृहद उद्योगों को अवधि ऋण उपलब्ध कराना तथा उन्हें तकनीकी सलाह, मर्चेन्ट बैंकिंग गतिविधियों व इक्विटी सहभागिता द्वारा औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करना। 
मुख्य कार्य 
वृहद, मध्यम व लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना। 
आधारभूत सुविधाएँ प्रदान कर लघु, मध्यम एवं वृहद् श्रेणी के उद्योग स्थापित करने हेतु औद्योगिक क्षेत्र विकसित करना। 
औद्योगिक व्यापार एवं विनियोजन संवर्द्धन का कार्य। 
मर्चेन्ट बैंकर के रूप में कार्य करना। 
औद्योगिक परियोजनाओं के संबंध में परियोजना प्रतिवेदन व रूपरेखा तैयार करना तथा तकनीकी सलाहकारी सेवाएं प्रदान करना। 
सरकार की ओर से उद्योगों के विकास हेतु विशेष वित्तीय रियायतें व प्रोत्साहन उपलब्ध कराना

राजस्थान वित्त निगम (RFC: Rajasthan Financial Corporation 

स्थापना - 17 जनवरी, 1955 को राज्य वित्त निगम अधिनियम, 1951 के तहत् की गई। 
मुख्यालय - उद्योग भवन, जयपुर । 
अधिकृत अंश पूँजी= 100 करोड़ रु. 
मुख्य उद्देश्य
राज्य की अति लघु, लघु व मध्यम पैमाने की औद्योगिक इकाइयों को मध्यम व दीर्घकालीन वित्तीय सहायता देना। 
राज्य के तीव्र औद्योगिकरण में सहयोग देना तथा औद्योगिक गति को नया आयाम देना।
स्थापित उद्योगों के विस्तारीकरण तथा नवीनीकरण हेतु ऋण उपलब्ध कराना।
राज्य सरकार के अभिकर्ता की भूमिका के रूप में कार्य करना। 
प्रमुख कार्य
निगम द्वारा औद्योगिक इकाइयों को 2000 रु. से लेकर 20 करोड़ रु. तक के ऋण उपलब्ध कराए जाते हैं। 
निगम द्वारा उद्योग स्थापित करने हेतु भूमिक्रय, भवन निर्माण यंत्र-संयंत्र खरीदने, ब्रिज लोन एवं कार्यशील पूँजी हेतु ऋण प्रदान किया जाता है। 
औद्योगिक इकाइयों को ऋण स्वीकृत करने हेतु केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, IDBI IFCI के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना।
ऋणों की गारन्टी देना। 
अंशों व ऋणपत्रों का अभिगोपन करना। 
उपकरण पुनर्वित्त प्रदान करना।

राजस्थान लघु उद्योग निगम
(RAJSICO: Rajasthan Small Industries Corporation Ltd.) 
स्थापना - 3 जून, 1961 को कम्पनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत सीमित दायित्व वाली कम्पनी के रूप में। 
अधिकृत पूँजी - 700 लाख रु. 
मुख्य उद्देश्य-  लघु औद्योगिक व हस्तशिल्प इकाइयों को वित्तीय सहायता व प्रोत्साहन देना, कच्चा माल उपलब्ध कराना व उनकी उत्पादित वस्तुओं को विपणन सुविधाएँ उपलब्ध कराना। 
मुख्य कार्यः 
लघु उद्योग इकाइयों को कच्चा माल, साख, तकनीकी व प्रबंध सहायता, वस्तुओं के विपणन व उद्यमियों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराना।
बड़े पैमाने व लघु पैमाने की इकाइयों में आवश्यक समन्वय व तालमेल स्थापित करना। प्रदर्शनियों, सेमीनारों, व्यापार मेलों व प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना। 
राजसीको कच्चे माल का स्वयं क्रय कर रियायती दरों पर लघु उद्योग इकाइयों को उपलब्ध कराता है। 
दस्तकारों एवं शिल्पकारों को उनके उत्पादित माल की विपणन सुविधाएँ उपलब्ध कराना  
निगम द्वारा संचालित प्रशिक्षण केन्द्र - 
राज्य की लुप्त हो रही हस्तकलाओं के पुनरुथान हेतु निगम द्वारा अग्र चार प्रशिक्षण केन्द्र संचालित किए जा रहे हैं-
फड़ चित्रकला हेतु शाहपुरा (भीलवाड़ा) में 
कोटा-बूंदी शैली चित्रकला हेतु कोटा में
मारवाड़-जोधपुर शैली चित्रकला हेतु जोधपुर में 
लकड़ी तथा ऊँट की खाल परसुनहरी नक्काशी,चित्रकला (उस्ताकला) हेतु बीकानेर में।

राजस्थान के प्रमुख वृहद् व मध्यम उद्योग

सूती वस्त्र उद्योग (Cotton Textile) 
यह देश का सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है। 
वर्तमान में देश की सूती वस्त्र मिलें गुजरात, महाराष्ट्र व तमिलनाडु में मुख्य रूप से केन्द्रित हैं। 
सूती वस्त्र उद्योग राजस्थान का परम्परागत एवं प्राचीनतम उद्योग है। 
यह उद्योग राज्य में सर्वाधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है। 
राज्य में प्रथम सूती वस्त्र मिल दी कृष्णा मिल लि0 1889 में ब्यावर (अजमेर) में निजी क्षेत्र में सेठ दामोदर दास द्वारा स्थापित की गई थी। 1906 में दूसरी मिल ब्यावर में ही एडवर्ड मिल्स लि० स्थापित की गई थी 
वृहद् राजस्थान के निर्माण के समय राज्य में 7 सूती वस्त्र मिलें थीं।
वर्तमान में राज्य में सूती वस्त्र मिलें मुख्यतः ब्यावर, पाली, भीलवाड़ा, कोटा, चित्तौड़गढ़, जयपुर, श्रीगंगानगर, किशनगढ़ एवं बांसवाड़ा में केन्द्रित हैं। 
राज्य में इस समय सूती मिलें निजी, सार्वजनिक एवं सहकारी तीनों क्षेत्रों में कार्यरत हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र की सूती मिलें:- ये निजी क्षेत्र मे स्थापित मिलें थीं जिन्हें रूग्णता के कारण 1974 से राष्ट्रीय वस्त्र निगम (N.T.C.) द्वारा अधि गृहित कर लिया गया है। ये सभी वर्तमान में बंद पड़ी है। ये निम्न हैं -
एडवर्ड मिल्स (ब्यावर) 
महालक्ष्मी मिल्स (ब्यावर) 
श्री विजय कॉटन मिल्स (विजय नगर) 

सहकारी क्षेत्र की कताई मिलें 
राजस्थान सहकारी कताई मिल लि०, गुलाबपुरा (भीलवाड़ा),स्थापना - 1965
गंगापुर सहकारी कताई मिल लि०, गंगापुर (भीलवाड़ा), स्थापना - 1981
श्रीगंगानगर सहकारी कताई मिल लि०, हनुमानगढ़, स्थापना -  1978
1 अप्रैल, 1993 को इन तीनों कताई मिलों एवं गुलाबपुरा की सहकारी जिनिंग मिल को मिलाकर राजस्थान राज्य सहकारी स्पिनिंग व जिनिंग मिल्स संघ लि. (SPINFED) की स्थापना की गई है।
शेष सूती वस्त्र मिलें निजी क्षेत्र में हैं। 
राज्य की सूती वस्त्र मिलों के समक्ष कच्चे माल की कमी, आधुनिक व उन्नत मशीनों का अभाव, शक्ति के साधनों की अपर्याप्तता, पूँजी की कमी आदि प्रमुख समस्याएँ हैं।

सीमेंट उद्योग (Cement Industry)
सीमेंट एक आधार भूत संरचनात्मक उद्योग है। 
राजस्थान में सीमेंट ग्रेड लाइम स्टोन के विपुल भंडार होने के कारण राज्य सीमेंट उत्पादन में देश में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। 
भारत में प्रथम सीमेंट कारखाना 1904 में मद्रास प्रेसीडेंसी में स्थापित किया गया।
राजस्थान में सबसे पहले सीमेंट कारखाने की शुरूआत 1917 में लाखेरी (बूंदी) में की गई।
सीमेंट कारखानों की स्थापना कच्चे माल (लाइम स्टोन व जिप्सम) के प्राप्ति स्थलों के आस पास ही अधिक की जाती है। 
राजस्थान में सीमेंट कारखाने लाखेरी, निम्बाहेड़ा, मोड़क, ब्यावर, कोटा, गोटन (नागौर), सिरोही, चित्तौड़गढ़, पाली आदि स्थानों पर स्थापित किये गये हैं। 
जे. के व्हाइट सीमेंट का कारखाना गोटन (नागौर) में है इसकी स्थापना 1984 में की गई । 
बिरला व्हाइट सीमेंट का कारखाना अल्ट्रा टैक कम्पनी का  कारखाना है यह खारियाखंगार (भोपालगढ़, जोधपुर) में है इसकी स्थापना 1988 में की गई । 
राजस्थान में सीमेंट उद्योग के तीव्र विकास के मार्ग में कुछ महत्वपूर्ण बाधाएँ - पुरानी उत्पादन तकनीक, कोयले की कमी, ब्रॉडगेज की कमी, विद्युत की अनियमित आपूर्ति व अपर्याप्त मांग आदि हैं। 
अब राज्य में बड़ी कंपनियों द्वारा सीमेंट संयंत्र स्थापित किये जा रहे हैं।

चीनी उद्योग (Sugar Industry) 
चीनी उद्योग देश का दूसरा बड़ा कृषि आधारित उद्योग है। 
देश में गन्ने का सर्वाधिक क्षेत्र उत्तरप्रदेश है 
सर्वाधिक गन्ना उत्पादन क्रमशः उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक व तमिलनाडु में होता है।
लेकिन देश में सर्वाधिक चीनी उत्पादन क्रमश: महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक व तमिलनाडु में होता है। 
राजस्थान में चीनी का उत्पादन बहुत कम मात्रा में होता है। यहाँ केवल निम्न तीन चीनी मिलें हैं।
दी मेवाड़ शुगर मिल लि०, भोपालसागर(चित्तौड़गढ़)
राजस्थान स्टेट गंगानगर शुगर मिल्स लि०, श्री गंगानगर  
केशोरायपाटन सहकारी शुगर मिल्स लि०, केशोरायपाटन (बूंदी)

दी मेवाड़ शुगर मिल लि०, भोपालसागर(चित्तौड़गढ़)
1932 में निजी क्षेत्र में स्थापित यह राज्य की पहली चीनी मिल है।

राजस्थान स्टेट गंगानगर शुगर मिल्स लि०, श्री गंगानगर  
यह 1945 में बीकानेर इंडस्ट्रियल कॉरपोरेशन लि. के नाम से स्थापित की गई। 
1956 में इसे राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहित करने पर यह सार्वजनिक क्षेत्र में आ गई। इसे अब नई इंटिग्रेटेड शुगर मिल परियोजना के तहत् गंगानगर शहर से हटाकर ग्राम कमानीपुरा (तहसील श्रीकरनपुर) में स्थानांतरित किया जा रहा है। 

केशोरायपाटन सहकारी शुगर मिल्स लि०, केशोरायपाटन (बूंदी) 
यह मिल क्षेत्र के गन्ना उत्पादकों के हितार्थ सहकारी क्षेत्र में 1965 में स्थापित की गई थी। अब यह मिल बंद हो गई है। 
प्रदेश में चीनी मिलों के समक्ष गुणवत्तापूर्ण कच्चे माल की कमी, आधुनिक व उन्नत मशीनों का अभाव, पूँजी की अपर्याप्तता,अकुशल प्रबंध आदि समस्याएँ हैं।

नमक उद्योग (Salt Industry) 
राजस्थान में खारे पानी की झीलों के विद्यमान होने के कारण नमक उत्पादन हेतु प्राकृतिक स्थितियाँ काफी अनुकूल हैं। 
देश में उत्पादित कुल नमक का लगभग 12% हिस्सा यहाँ उत्पादित होता है। 
यहाँ मुख्यतः सांभर झील, डीडवाना व पचपदरा झीलों में नमक उत्पादित किया जाता है। 
सांभर झील
यहाँ के नमक स्त्रोतों में सांभर झील का सर्वोच्च स्थान है, जहाँ भारत का 8.7% नमक उत्पादित होता है। यहाँ अच्छी किस्म का नमक उत्पादित होता है। 
सांभर में नमक उत्पादन का संचालन केंद्रीय सरकार के उपक्रम सांभर साल्ट लि० (जो कि हिंदुस्तान साल्ट्स लि० की सहायक कम्पनी है) द्वारा किया जाता है।
डीडवाना (नागौर) एवं पचपदरा (बालोतरा, बाड़मेर) के नमक स्रोत राज्य सरकार के नियंत्रण में हैं। राज्य सरकार ने डीडवाना के राजकीय लवण स्रोत निजी नमक उत्पादकों को लीज पर दे दिये गए इसका निजीकरण कर दिया गया है। पचपदरा के लवण स्रोत लीज पर दिये हुए हैं। राजस्थान स्टेट कैमिकल वर्क्स डीडवाना का निजीकरण कर दिया गया है। 
फलौदी (जोधपुर),लूणकरणसर (बीकानेर), पोकरण (जैसलमेर) एवं जाब्दीनगर (नागौर) में भी छोटे पैमाने पर निजी उद्यमियों द्वारा नमक उत्पादित किया जाता है।

मॉडल साल्टफार्म 
राज्य के लवण निर्माताओं को तकनीकी ज्ञान उपलब्ध कराने हेतु नावां (नागौर) में सांभर साल्ट्स क्षेत्र में मॉडल साल्ट फार्म की स्थापना की गई है। इसका लोकार्पण 12 जनवरी, 2002 को किया गया। 
देश में सर्वाधिक नमक उत्पादक राज्य हैं- 1. गुजरात 2. तमिलनाडु 3. राजस्थान 4. महाराष्ट्र ।
गुजरात व तमिलनाडु में समुद्र से नमक उत्पादित होता है।
आंतरिक जल स्रोत-खारी झीलों से नमक उत्पादन में राजस्थान देश में प्रथम स्थान पर है। 
राज्य में जोधपुर, नागौर, जैसलमेर, चुरू, सीकर व बाड़मेर जिलों में खुले लवण क्षेत्र घोषित हैं।

काँच उद्योग (Glass Industry) 
काँच के निर्माण में बालू मिट्टी, सिलिका, सोडियम सल्फेट, शीरा एवं कोयला आदि प्रयुक्त होते हैं। 
राजस्थान में इस उद्योग के कच्चे माल के साथ साथ काँच बनाने वाले कुशल श्रमिक भी उपलब्ध हो जाते हैं। 
राष्ट्रीय स्तर पर काँच उद्योग में कामगारों की दक्षता में वृद्धि हेतु केन्द्रीय ग्लास एवं सिरमिक अनुसंधान संस्थान,खुर्जा में कार्यरत है। 
राज्य में छोटे पैमाने पर काँच का सामान बनाने के कारखाने जयपुर, कोटा, भरतपुर, उदयपुर, बीकानेर, पाली,जोधपुर आदि स्थानों पर केन्द्रित है। 
वृहत् स्तर पर वर्तमान में राज्य में काँच निर्माण के निम्न कारखाने प्रमुख हैं
हाइटैक प्रिसिजन ग्लास फैक्ट्री धौलपुर 
धौलपुर ग्लास वर्क्स 
सेमकोर ग्लास इण्डस्ट्रीज, कोटा 
सेंट गोबेन कम्पनी, कहरानी (भिवाड़ी, अलवर) (यहाँ विश्व का सबसे बड़ा फ्लोट ग्लास संयंत्र स्थापित किया है।)
घीलोट (नीमराना, अलवर)

वनस्पति घी उद्योग (Vegetable Oil Industry) 
राजस्थान में वनस्पति घी उद्योग का प्रथम कारखाना भीलवाड़ा में खोला गया। 
राज्य में तिलहनों की पैदावार अच्छी होने की वजह से इस उद्योग के विकास की अच्छी संभावनाएँ हैं।

सार्वजनिक उपक्रम (Public Enterprises)
सार्वजनिक उपक्रम से तात्पर्य ऐसे संस्थानों, कम्पनियों, बोर्डों या निगमों से है जिनकी प्रदत्त पूँजी का 50% से अधिक सरकार (केन्द्रीय या राज्य या संयुक्त रूप से) के पास हो। 
राजकीय उपक्रम ब्यूरो (सितम्बर, 1984 में स्थापित) के अधीन वर्तमान में 23 सार्वजनिक उपक्रम इकाइयाँ हैं । 
सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य आर्थिक विकास की गति तीव्र करना, रोजगार के नए अवसर उत्पन्न करना, विनियोगों को प्रोत्साहित करना तथा लघु सहायक उद्योगों के विकास में मदद करना है। 
राजस्थान में स्थित सार्वजनिक उपक्रम दो श्रेणियों में वर्गीकृत किये जा सकते हैं - 
(A) केन्द्रीय सरकार के उपक्रम (B) राजस्थान सरकार के उपक्रम

केन्द्रीय सरकार के उपक्रम 

हिन्दुस्तान जिंक लि. (उदयपुर) -  
राज्य के जस्ते के खनन एवं परिशोधन हेतु कार्यरत इस उपक्रम की स्थापना 10 जनवरी,
1966 को हुई थी। 
राज्य में इसके जिंक स्मेल्टर देबारी (उदयपुर) एवं चन्देरिया (चित्तौड़गढ़) में है। 
इसका प्रबन्ध अब वेदान्त रिसोर्सेज को दे दिया गया है।

हिन्दुस्तान कॉपर लि.(खेतड़ी) -  
इसकी स्थापना नवम्बर, 1967 में संयुक्त राज्य अमेरिका की सहायता से की गई। 
यह राज्य के खेतड़ी व आसपास के तांबा भण्डारों से तांबे के अयस्क के खनन एवं परिशोधन का कार्य करता है। 
राज्य के अलावा इसके संयंत्र बिहार, आन्ध्रप्रदेश एवं मध्यप्रदेश में भी है।

हिन्दुस्तान मशीन टूल्स, अजमेर ( HMT)
चेकोस्लोवाकिया की मदद से 1967 में स्थापित इस फैक्ट्री में इंजीनियरिंग, मशीनरी एवं ग्राइण्डिंग मशीनों का निर्माण होता है। 
HMT की समस्त देश में कुल 13 इकाईयाँ (6 मशीन टूल्स, 3 वॉच असेम्बली तथा 4 डेयरी मशीनरी) हैं। 
अजमेर की वॉच असेम्बली इकाई बंद कर दी गई है।

सांभर साल्ट्स लि.
सांभर झील में नमक उत्पादन हेतु हिन्दुस्तान साल्ट्स लि. की सहायक इकाई के रूप में 1964 में स्थापित।

इन्स्ट्रमेंटेशन लि., कोटा
राज्य में इलेक्ट्रॉनिक्स मशीनें, विद्युत उत्पन्न करने वाले एवं रासायनिक यंत्रों का निर्माण करने हेतु इस उपक्रम की स्थापना 1965 में की गई। 
जयपुर में इसकी एक सहायक इकाई Raj. Electronics & Instruments Ltd. कनकपुरा में स्थापित की गई थी।

मॉडर्न बेकरीज
मॉडर्न फूड इण्डस्ट्रीज (इण्डिया) लि. की ब्रेड इकाई, जो 1965 में स्थापित हुई थी।

राजस्थान ड्रग्स एण्ड फार्मास्यूटिकल्स लि., जयपुर
केन्द्र सरकार की कम्पनी इण्डियन ड्रग्स एवं फार्मास्यूटिकल्स लि. की सहायक कम्पनी के रूप में रीको के साथ 1978 में जयपुर में स्थापित की गई, जो बंद पड़ी है।

राज्य सरकार द्वारा स्थापित सार्वजनिक उपक्रम 
राजस्थान सरकार द्वारा तीन प्रकार के सार्वजनिक उपक्रम संचालित किये जा रहे हैं –
वैधानिक बोर्ड/निगम (Statutory Boards/Corporations)
कम्पनी अधिनियम, 1956 के तहत् पंजीकृत कम्पनियाँ 
विभागीय उपक्रम

वैधानिक बोर्ड/निगम (Statutory Boards/Corporations)
इस श्रेणी में वे उपक्रम आते हैं जिनकी स्थापना राज्य विधान सभा द्वारा पृथक से पारित किये गये अधिनियम के तहत् होती है। 
इस श्रेणी में निम्न उपक्रम संचालित हैं

राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम (RSRTC)
राज्य में नागरिकों को पथ परिवहन सेवाएँ उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 1964 में स्थापित । 
मुख्यालय : परिवहन मार्ग, जयपुर

राजस्थान वित्त निगम ( RFC)
लघु एवं मध्यम उद्योगों को वित्त सुविधाएँ प्रदान करने के उद्देश्य से 1955 में स्थापित।
मुख्यालः उद्योग भवन, तिलक मार्ग, जयपुर।

राजस्थान आवासन मण्डल( RHB)
राजस्थान में लोगों की आवासीय आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु 1970 में गठित।
मुख्यालयः ज्योति नगर, जयपुर। 

राजस्थान राज्य भण्डारण निगम (RSWC)
राज्य के कृषकों को कृषि आदानों एवं उपजों के भण्डारण की सुविधाएँ गोदाम, भण्डारगृह आदि उपलब्ध कराने हेतु 1957 में स्थापित । 
मुख्यालयः जयपुर। 

राजस्थान भूमि विकास निगम (RLDC)
राज्य के भूमि एवं जल संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग एवं विकास कार्यों हेतु 1975 में स्थापित । 
मुख्यालयः कृषि भवन, भगवानदास रोड, जयपुर। 

राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड (RSAMB) 
यह बोर्ड प्रदेश में कृषि उत्पादों के विपणन हेतु मण्डियाँ स्थापित करने एवं उनका संचालन करने तथा मण्डी सड़कों के निर्माण के उद्देश्य से 1974 में गठित किया गया। 
मुख्यालयः कृषि भवन, भगवान दास रोड, जयपुर।


कम्पनी अधिनियम, 1956 के तहत् पंजीकृत कम्पनियाँ 
रीको
राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम लि. 
राज. राज्य हथकरघा विकास निगम लि.(1985). 
राज. राज्य पर्यटन विकास निगम लि. जयपुर 
राजस्थान स्टेट होटल निगम लि.(1964) 
गो. राज. बीज निगम लि.(1978) 
राजस्थान कृषि उद्योग निगम लि.(1969) 
राज. स्टेट रोड़ डवलपमेंट व कन्स्ट्रक्शन कार्पो. लि.(1979) 
राजस्थान जल विकास निगम लि.(1984) 
राज. स्टेट गंगानगर शुगर मिल्स लि.
राजस्थान लघु उद्योग निगम लि.(1961) 
राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम
राजस्थान विद्युत प्रसारण निगम(2000) 
जयपुर विद्युत वितरण निगम 
अजमेर विद्युत वितरण निगम(2000) 
जोधपुर विद्युत वितरण निगम 
राजस्थान राज्य खान एवं खनिज लि. (RSMML): 1974 में स्थापित। 
(इसमें 20 फरवरी, 2003 को RSMDC का विलय कर दिया गया है। अतः अब RSMDC का अस्तित्व समाप्त हो गया है।)
राजस्थान इलेक्ट्रानिक्स लि : (इसे राजकीय उपक्रम ब्यूरो के अधिकार क्षेत्र से हटा दिया गया है। )

विभागीय उपक्रम 
ये उपक्रम वर्तमान में राजकीय उपक्रम विभाग के नियंत्रणाधीन नहीं हैं। ये निम्न हैं - 

राजस्थान स्टेट केमीकल वर्क्स, डीडवाना (नागौर) 
1964 में स्थापित 
इसकी निम्न चार इकाइयाँ हैं- सोडियम सल्फेट संयंत्र, - सोडियम सल्फाइड फैक्ट्री, - क्रूड सोडियम सल्फेट इकाई व - आयोडाइजेशन संयंत्र । 

राजकीय लवण वर्क्स डीडवाना 
सन् 1960 में विभागीय उपक्रम के रूप में स्थापित । 
राज्य सरकार ने डीडवाना लवण स्त्रोत को निजी नमक उत्पादकों को लीज पर दे दिया है। राजकीय लवण स्रोत, पचपदरा: बाड़मेर जिले की बालोतरा तहसील में स्थित पचपदरा का लवण स्त्रोत भी 1992 से ही पुश्तैनी नमक उत्पादकों (खारवालों) को लीज पर दे दिया गया है। वर्तमान में पचपदरा स्थित लवण स्त्रोत राजस्व विभाग के नियंत्रण में है।


सूचना प्रौद्योगिकी 
राज्य में सूचना प्रौद्योगिकी परियोजनाओं के सुव्यवस्थित व योजनाबद्ध विकास हेतु सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग (DOIT & C) कार्यरत है। 
सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग के अंतर्गत दो एजेन्सियाँ कार्यरत हैं
राजकॉम्प इन्फो सर्विसेज लिमिटेड
राजस्थान नॉलेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (RKCL) 

राजकॉम्प इन्फो सर्विसेज लिमिटेड
वर्ष 1989 में राज्य सरकार ने राजस्थान स्टेट कम्प्यूटर सर्विसेज (राजकॉम्प) नामक उपक्रम की स्थापना की। 
इस संस्था का मुख्य उद्देश्य राज्य में सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार क्षेत्र में प्रशिक्षण, राज्य सरकार के विभागों को तकनीकी परामर्श प्रदान करना एवं परियोजनाओं को क्रियान्वित करना है। 

राजस्थान नॉलेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (RKCL) 
शहरी एवं दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा प्रदान कर डिजीटल डिवाईड को मिटाने हेतु राजस्थान नॉलेज कॉरपोरेशन (RKCL) की स्थापना कर दी गई है। आर.के.सी.एल. का 'RS-CIT' पाठ्यक्रम राजस्थान सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है।

राज्य में सूचना प्रौद्योगिकी का विकास

राजस्थान सम्पर्क
राजस्थान सम्पर्क सामान्य जन की शिकायतों और सुझावों के निवारण का एकीकृत मंच है। यह www.sampark.rajasthan.gov.in के माध्यम से क्रियाशील है।

राजनेट 
इसके अंतर्गत ग्राम पंचायत स्तर तक राजस्थान, सेकलेन, वीसेट, Captive OFC RF के द्वारा कनेक्टिविटी उपलब्ध करवायी जाएगी। 

राजई-वॉल्ट
इस परियोजना के अन्तर्गत किसी व्यक्ति/परिवार/सरकारी व गैर सरकारी संगठनों को अपने दस्तावेज/आँकड़े सुरक्षित रखने के लिए ई-स्पेस उपलब्ध करवायी जाएगी।

राज ई-साईन
दस्तावेजों को प्रमाणित एवं हस्ताक्षरित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की सुविधा उपलब्ध करवायी जा रही है। 

ई-ऑफिस 
सरकारी विभागों में डाक तथा पत्रावलियों के सुचारू निष्पादन तथा प्रबोधन हेतु सचिवालय के 59 विभाग एवं सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग, आर्थिक एंव सांख्यिकी विभाग एवं मूल्यांकन विभाग में ई-ऑफिस तंत्र प्रारंभ कर दिया गया है। 

नागरिक सेवा केन्द्र (सीएससी)
ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिकों को विभिन्न सरकारी विभागों एवं निजी क्षेत्र की सूचनाएँ तथा सेवायें सुलभता से उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार की एनइजीपी के तहत सीएससी परियोजना लागू की गई। 

ई-डिस्ट्रिक्ट
राष्ट्रीय प्रशासन योजना के अन्तर्गत ई-डिस्ट्रिक्ट परियोजना के तहत जिला प्रशासन द्वारा दी जाने वाले नागरिक सेवाओं का पूर्णतया कम्प्यूटरीकरण किया जा रहा है।

डिजिटली हस्ताक्षरित प्रमाण-पत्र 
सम्पूर्ण राज्य में घर बैठे ही इन्टरनेट के माध्यम से/एकल खिड़की/कियोस्क के माध्यम से विधिक मान्यता प्राप्त डिजिटली हस्ताक्षरित प्रमाण-पत्र उपलब्ध करवाने की प्रणाली की भी शुरूआत की गई। 

ई-स्टेम्पिंग सुविधा का शुभारंभ
स्टॉम्प पेपर्स के विकल्प के रूप में ई-स्टेम्पिंग सुविधा 22 जुलाई, 2011 से जयपुर में प्रारम्भ की गई। संपत्तियों अथवा अन्य दस्तावेजों की रजिस्ट्री के लिए चुकाया जाने वाला मुद्रांक शुल्क अब स्टाम्प पेपर्स के स्थान पर नई कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था ई- स्टेम्पिंग के माध्यम से जमा करवाया जा सकेगा, परन्तु स्टॉम्प पेपर्स का विकल्प भी
मौजूद रहेगा। 

ई-सचिवालय 
शासन सचिवालय की समस्त गतिविधयों के कम्प्यूटराइजेशन की एक महत्वाकांक्षी योजना 'ई-सचिवालय' की क्रियान्विति प्रारम्भ की गई है। 

जन सेवा केन्द्र (Common Service Centre)
राज्य के समस्त सात संभागों पर इस परियोजना का क्रियान्वयन शुरू हो गया है। इसके अन्तर्गत रेलवे रिज़र्वेशन, बस रिज़र्वेशन, नवीन बीमा पॉलिसी पंजीयन, सभी प्रकार के मोबाइल रीचार्ज समस्त डी.टी.एच. रीचार्ज, टाटा स्काई सेट टॉप बाक्स का विक्रय एवं आईटीजेड रीचार्ज किये जा रहे हैं। 
सुगम (पी.जी. पोर्टल): एन.आई.सी. के सहयोग से सुगम जन सेवा प्रदाता परियोजना क्रियान्वित की गई है। 

e-Procurement 
राजकीय विभागों/स्वायत्तशासी निकायों/राज्याधीन निकायों से विभिन्न सामग्रियों के क्रय में पारदर्शिता के उद्देश्य से, 50 लाख रु. (PWD के लिए 25 लाख) से अधिक की निविदाओं के लिए इस परियोजना को क्रियान्वित किया गया है। 

'एनी व्हेयर' रजिस्ट्री की सुविधा 
जिला स्तर पर यह योजना शुरू की गई है। इसके तहत जयपुर जिले में स्थित स्थायी संपत्ति (भूमि व भवन) की रजिस्ट्री इस जिले के किसी भी पंजीयन कार्यालय में कराई जा सकती है। 


Chief Minister Information System (CMIS) 
मुख्यमंत्री कार्यालय में विभिन्न विकास कार्यों की कम्प्यूटर की सहायता से तीव्र गति से समीक्षा करने के उद्देश्य से CMIS का क्रियान्वयन किया गया है। 

भौगोलिक सूचना तंत्र 'विकास दर्पण
विकेन्द्रित योजना के लिये एक तन्त्र है। इस तंत्र के द्वारा राज्य के 33 जिलों, 287 तहसीलों एवं 41000 गांवों का संपूर्ण नक्शा एवं सेन्सस, 2011 के संपूर्ण आंकड़े उपलब्ध करवाये गए हैं। 

ई-मित्र परियोजना 
ई-मित्र एक एकीकृत ई-प्लेटफार्म है जिसके द्वारा राजस्थान की शहरी एवं ग्रामीण जनता को विभिन्न सरकारी विभागों से संबंधित वांछित सूचनाएं एवं सेवाएं (जैसे-बिजली, पानी, टेलीफोन के बिल आदि) उपलब्ध हो रही हैं। 

सचिवालय नेटवर्किंग (SECLAN- Secretariat Local Area Network)
राज्य सचिवालय में विभिन्न उपयोगकर्ताओं को कम्प्यूटर नेटवर्क से जोड़ने हेतु स्थापित किया जाने वाला उच्च तकनीकी संचार तंत्र।





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Milan Tomic

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